जानें कब हैं मौनी अमावस्या, जानिए व्रत नियम और शुभ मुहूर्त
माघ माह में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या या माघ अमावस्या कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवतागण पवित्र संगम में निवास करते हैं, इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। मुनि शब्द से मौनी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस दिन मौन रहने वाले व्यक्ति को मुनि पद की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या के दिन दान-पुण्य करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस साल मौनी अमावस्या 11 फरवरी 2021 (गुरुवार) को है।
माघ या मौनी अमावस्या 2021 तिथि और शुभ मुहूर्त-
फरवरी 11, 2021 को 01:10:48 से अमावस्या आरम्भ।
फरवरी 12, 2021 को 00:37:12 पर अमावस्या समाप्त।
मौनी अमावस्या का महत्व-
पुराणों के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन मौन रहने का विशेष महत्व होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं। अगर मौन रहना संभव न हो तो माघ अमावस्या के दिन लड़ाई-झगड़े से बचना चाहिए। इसके साथ ही इस दिन कटु वचनों को नहीं बोलना चाहिए।
मौनी अमावस्या के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं होते-
वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक कहा गया है। अमावस्या के दिन चंद्र देव के दर्शन नहीं होते हैं। इससे मन की स्थिति कमजोर रहती है। इसलिए अमावस्या के दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान बताया गया है। मौनी अमावस्या के दिन भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा की जाती है।
मौनी अमावस्या व्रत नियम-
1. मौनी अमावस्या के दिन सुबह स्नान नदी, सरोवर या पवित्र कुंड में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
2. इस दिन व्रत रखकर जहां तक संभव हो मौन रहना चाहिए। गरीब व भूखे व्यक्ति को भोजन अवश्य कराएं।
3. अनाज, वस्त्र, तिल, आंवला, कंबल, पलंग, घी और गौ शाला में गाय के लिए भोजन का दान करें।
4. यदि आप अमावस्या के दिन गौ दान, स्वर्ण दान या भूमि दान भी कर सकते हैं।
5. हर अमावस्या की भांति माघ अमावस्या पर भी पितरों को याद करना चाहिए। इस दिन पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माघ अमावस्या व्रत कथा-
कांचीपुरी नगर में एक ब्राह्मण देवस्वामी था। उसकी पत्नी धनवती और पुत्री गुणवती थी। ब्राह्मण के सात पुत्र भी थे। देवस्वामी ने सभी पुत्रों का विवाह करने के बाद पुत्री के विवाह के लिए योग्य वर की तलाश के लिए अपने बड़े बेटे को नगर से बाहर भेज दिया। फिर उसने गुणवती की कुंडली एक ज्योतिषी से दिखाई। ज्योतिषी ने बताया कि विवाह के समय सप्तपदी होते ही यह कन्या विधवा हो जाएगी।
यह सुनकर देवस्वामी दुखी हो गया, उसने उपाय पूछा। ज्योतिषी ने बताया कि इस योग का निवारण सिंहलद्वीप निवासी सोमा नामक धोबिन को घर बुलाकर उसकी पूजा करने से ही संभव होगा। यह सुनकर देवस्वामी ने अपने सबसे छोटे पुत्र के साथ पुत्री गुणवती को सोमा धोबन को घर लाने के लिए सिंहलद्वीप भेजा। वे दोनों समुद्र तट पर पहुंचे और समुद्र को पार करने का उपाय सोचने लगे, लेकिन कोई उपाय नहीं सूझा तो दोनों भाई-बहन भूखे-प्यासे एक वट वृक्ष की छाया में उदास हो कर बैठ गए।
उस वट वृक्ष पर एक गिद्ध का परिवार रहता था। उसके बच्चों ने देखा कि दोनों भाई-बहन दिन भर परेशान रहे। जब शाम को गिद्धों की मां अपने बच्चों के लिए कुछ भोजन लेकर आई और उन्हें खिलाने लगी, तो उन बच्चों ने कुछ नहीं खाया और वृक्ष के नीचे बैठे भाई-बहन की बात बताई। बच्चों की बातें सुनकर गिद्धनी को दया आ गई। उसने दोनों भाई-बहन के पास जाकर कहा कि तुम दोनों की इच्छा उसे पता है। तुम दोनों भोजन कर लो। सुबह तुम दोनों को समुद्र पार सोमा के पास पहुंचा दूंगी।
गिद्धनी की बात सुनकर वे दोनों बेहद खुश हुए। सुबह होते होते गिद्धनी ने उन्हें सोमा के घर पहुंचा दिया। फिर वे सोमा धोबिन को घर लेकर आए और उसकी पूजा की, जिसके बाद ब्राह्मण देवस्वामी की पुत्री का विवाह हुआ। सप्तपदी होते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। तब सोमा ने गुणवती को अपने पुण्य का फल दान कर दिया, जिससे उसका पति जीवित हो उठा। इसके बाद सोमा उन दोनों को आशीर्वाद देकर वह सिंहलद्वीप चली गई।
सोमा का पुण्य चले जाने से उसके पुत्र, दामाद और पति की मौत हो गई। तब उसने एक नदी के किनारे स्थित एक पीपल के वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की पूजा की और पीपल की 108 बार परिक्रमा की। ऐसा करने से उसके पुण्य फिर से प्राप्त हो गए। उसके पति, पुत्र और दामाद फिर जीवित हो उठे।