क्यों बदलता रहता है एशिया कप का फॉर्मेट, कब से हुई इस बदलाव की शुरुआत

एशिया कप क्रिकेट की दुनिया के बड़े टूर्नामेंट्स में से एक है। जैसा इस टूर्नामेंट के नाम से पता चलता है, इस टूर्नामेंट में सिर्फ एशिया की टीमें खेलती हैं। भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान, यूएई, हॉन्ग कॉन्ग इसमें हिस्सा लेती हैं। टूर्नामेंट जब से शुरू हुआ है तब से काफी कुछ बदल चुका है। क्रिकेट भी और इसका खेलने का तरीका भी। इन बदलावों का असर एशिया कप पर भी पड़ा है।

1984 में पहली बार एशिया कप खेला गया था। इस टू्र्नामेंट का कर्ता-धर्ता एशियन क्रिकेट काउंसिल है। इसी पर जिम्मेदारी होती है कि एशिया कप का आयोजन हर दो साल में किया जाए। टूर्नामेंट की शुरुआत जब हुई थी तब टेस्ट क्रिकेट और वनडे क्रिकेट ही थे। ऐसे में वनडे फॉर्मेट में ये टूर्नामेंट खेला जाता था।

2016 में बदल गया सब कुछ
फिर आया साल 2016 जब इस टूर्नामेंट का आयोजन पहली बार टी20 फॉर्मेट में किया गया है। तब से ये टूर्नामेंट अल्टरेनेट तौर पर एक बार वनडे और एक बार टी20 फॉर्मेट में खेला जाता है। दरअसल, 2015 में आईसीसी में कई बदलाव हुए और ये बदलाव इसके कार्य करने की शैली में हुए। इस दौरान एसीसी की ताकत को कम किया गया, हालांकि एशिया कप की मेजबानी का जिम्मा अभी भी एसीसी के पास ही रखा गया था।

आईसीसी में जब बदलाव हुए तब तय किया गया कि एशिया कप का फॉर्मेट अब रोटेशनल होगा। जो गाइडलाइंस जारी की गईं तब ये तय गया है कि एक बार ये फॉर्मेट वनडे फॉर्मेट में होगा तो अगली बार टी20 फॉर्मेट में खेला जाएगा और इस बात का फैसला एशिया कप के बाद होने वाले आईसीसी इवेंट के आधार पर किया जाएगा।

यानी अगर एशिया कप के कुछ महीनों बाद या अगले साल वनडे वर्ल्ड कप है तो ये टूर्नामेंट 50 ओवरों का होगा। वहीं अगर टी20 वर्ल्ड कप है तो एशिया कप भी इसी फॉर्मेट में खेला जाएगा। ये फैसला इसलिए किया गया था ताकि एशिया की टीमों को वर्ल्ड कप की तैयारी के लिए एक बड़ा मंच मिल जाए। इसी कारण 2016 में एशिया कप पहली बार टी20 फॉर्मेट में हुआ था क्योंकि कुछ ही महीने बाद भारत की मेजबानी में टी20 वर्ल्ड कप होना था।

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