जानिए शनि देव के जन्म की कथा और शनि जयंती का महत्व
शनि जयंती के दिन बहुत से उपाय किए जा सकते हैं और पूजा कर उन्हें खुश किया जा सकता है. आइए जानते हैं शनि देव की जन्म कथा और शनि जयंती का महत्व.
शनि देव के जन्म की कथा – शनि जन्म के संदर्भ में एक पौराणिक कथा बहुत मान्य है जिसके अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं. सूर्य देव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ. कुछ समय बाद उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई.
इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ रिश्ता निभाने की कोशिश की, लेकिन संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं. इसी वजह से संज्ञा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़कर वहां से चली चली गईं. कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ.
शनि जयंती का महत्त्व – कहा जाता है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन हुआ है. जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे. इस दिन प्रमुख शनि मंदिरों में पूजा होती है और शनि से संबंधित चीजों का दान किया जाता है ऐसा करने से जिससे कुंडली में शनि की अशुभ स्थिति का असर कम हो जाता है.
कहा जाता है शनि जयंती के दिन शनिदेव की पूजा करने से या उनसे जुड़ी चीजें दान करने से शनि के दोष दूर हो जाते हैं. इसी के साथ इस दिन शनि देव की जो भक्तिपूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं और शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता. शनि देव की पूजा से जाने-अनजाने में किए पाप कर्मों के दोष से भी मुक्ति मिल जाती है.