गरुड़ों को बचाने के लिए युवाओं की स्वैच्छिक भागीदारी, वन विभाग ने भी की यह अनूठी पहल
स्थानीय युवाओं के माध्यम से वन एवं पर्यावरण संरक्षण की एक अनूठी पहल की गई है। इसमें युवाओं की स्वैच्छिक भागीदारी है, न कि इसके लिए उन्हें कोई भुगतान किया जाएगा। यह पहल वन विभाग ने की है।
युवा उन एक-एक पेड़ों को गोद लेंगे, जिस पर गरुड़ों का बसेरा है। वे गिरकर घायल हो जाते हैं तो अस्पताल पहुंचाएंगे। साथ ही उनकी रक्षा भी करेंगे, ताकि कोई उन्हें चुराकर न ले जा सके। भागलपुर के नवगछिया के कदवा दियारा में पक्षियों की प्रजातियों में दुर्लभ माने जाने वाले गरुड़ अच्छी खासी संख्या में हैं। ये असम में भी पाए जाते हैं, लेकिन देश में भागलपुर सर्वाधिक गरुड़ों वाला केंद्र बन चुका है। विदेश की बात करें तो कंबोडिया में भी पाए जाते हैं।
पौराणिक मान्यताएं भी हैं
पौराणिक मान्यताओं में ये भगवान विष्णु का वाहन माने जाते हैं। बौद्ध धर्म में भी गरुड़ों का महत्व है। कदवा के ग्रामीण इनसे इतने भावनात्मक रूप से जुड़े हैं कि एक बार सड़क बनाने के लिए पेड़ काटने की नौबत आई तो विरोध कर दिया। गरुड़ों ने सबसे पहले 2006 में यहां अपना बसेरा बनाया था, जब पहली बार इन्हें चिह्नित किया गया।
यहां का वातावरण अनुकूल
इनका मुख्य आहार मछली, सांप और केकड़ा है, जो गंगा और कोसी के बीच होने के कारण प्रचुर मात्रा में मिल जाता है। यही वजह है कि यह इलाका गरुड़ों का प्रजनन केंद्र बन चुका है। अब यहां साढ़े पांच सौ से अधिक गरुड़ घोसला बनाकर रह रहे हैं। पिछले वर्ष तक 130 घोसले थे, जो इस वर्ष 155 के करीब हैं। मार्च में अंडे से बच्चा निकलेगा। एक मादा गरुड़ एक बार में दो से चार अंडे तक देती है। इस तरह दो महीने बाद गरुड़ों की संख्या में 400 से अधिक वृद्धि होने की उम्मीद है।
लगाए जाएंगे पांच हजार से अधिक पौधे
कदंब, पाकड़, पीपल, सेमल आदि पेड़ों पर गरुड़ के घोसले हैं। ऊंचे होने के कारण ये पेड़ गरुड़ों के लिए सुरक्षित और अनुकूल हैं। इस वर्ष कदवा दियारा में पांच हजार से अधिक कदंब, पाकड़, पीपल और सेमल के पौधे लगाए जाएंगे। गरुड़ों के साथ तनिक भी छेड़छाड़ हुई तो वे भाग जाते हैं। लेकिन कदवा दियारे में प्रचुर भोजन, जलवायु और सुरक्षा के कारण वे यहां के मुरीद हो चुके हैं।
देश का पहला पुनर्वास केंद्र
भागलपुर के सुंदरवन में 2014 में देश का पहला गरुड़ पुनर्वास केंद्र खोला गया था, जो अब काफी समृद्ध हो चुका है। यहां घायल गरुड़ों को लाकर उनका इलाज किया जाता है और ठीक होने पर वापस दियारा क्षेत्र में छोड़ दिया जाता है।
कोसी कदवा दियारा दुर्लभ पक्षियों का बसेरा बनता जा रहा है। पक्षियों को यहां की आबोहवा पसंद आ रही है। संख्या बढऩे का प्रमुख कारण भोजन, जलवायु और सुरक्षा है। -अरविंद मिश्रा, पक्षी विशेषज्ञ
गरुड़ों के संरक्षण के लिए युवाओं को जिम्मेदारी दी गई है। उन्हें प्रशिक्षण भी दिया गया है। एक युवा एक पेड़ पर रहने वाले गरुड़ों की रक्षा करेंगे। – एस. सुधाकर, वन प्रमंडल पदाधिकारी