चाणक्य नीति: संतुलित शैली से रखें बात, उपलब्धियों के लिए भाव प्रदर्शन से बचना है अनिवार्य

व्यक्ति जितने बड़े पद पर पहुंच जाता है उतना ही उसे भाव मुक्त संवाद की कला से जुड़ना होता है. संवाद में प्रेषित तथ्यों से अधिक का संचार न होने देना सबसे महत्वपूर्ण है. सामान्य चर्चा में व्यक्ति बातों से कम भावों से अधिक जुड़ता है. मित्रों और करीबियों में शब्द संवाद का न्यूनतम अर्थ रखता है. लोगों की आपसी भाषा ऐसी ही होती है. बड़े स्तर पर चर्चा के दौरान संवाद औपचारिक, स्पष्ट और सीमित संप्रेषण करने वाला होना बेहतर होता है. 

आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य अनुयायियों और शिष्यों की सार्वजनिक सभाएं लेते थे. इसमें वे दृढ़ता से बात रखते थे. वे वही संप्रेषित होने देते थे जो जरूरी होता था. चाणक्य की भाव व्यंजना और देहभाषा यानी बॉडी लेंग्वेज अत्यंत सीमित हुआ करती थी. इसका कारण था कि उनके आसपास विरोधियों के गुप्तचर घूमा करते थे. वे छोटे से छोटे भाव को पढ़ने और समझने में सक्षम होते थे. प्राचीन काल में गुप्तचरों की इस बात की शि़क्षा दी जाती थी कि लोगों के व्यवहार से छिपे तथ्यों का उद्घाटन हो सके.

चाणक्य स्वयं इस विद्या के जानकार थे. इसलिए इसके महत्व को भलीभांति समझते थे. इसी भाव मुक्त संवाद की क्षमता से वे सार्वजनिक जीवन जीते हुए भी शत्रुओं की पहुंच से दूर रहे. वर्तमान में कूटनीतिक गलियारों में इस तथ्य का खासा महत्व अनुभव किया जाता है कि किस सभा से कौन कैसे भाव और व्यवहार के साथ निकला. इससे अंदाजा लग जाता है कि उसके मन में क्या चल रहा है अथवा, उसके पक्ष में वहां निर्णय हुआ है या नहीं.

अति महत्व के पदों की जिम्मेदारी निभा रहे लोगों को इस बात की गंभीरता का अंदाजा होता है. इसलिए वे बहुत थोड़ा दिखाते और जताते हैं. शब्दों में सीमित रहते हैं. राजनीतिक संभाषणों में भले ही राजनेता कितना भी अधिक बोले लेकिन गंभीर सभाओं में वह अत्यंत सीमित संप्रेषण की भूमिका में रहता है. बड़ी उपलब्धियों के लिए इस कला में हर एक जिम्मेदार को पारंगत होना चाहिए.

Related Articles

Back to top button