बारह सौ साल बाद पकड़ी ध्वजा को गिरने न देना: साध्वी ऋतम्भरा जी

  • रामायण यात्रा के साथ सात दिवसीय श्रीरामकथा का शुभारम्भ।

31 दिसम्बर तक चलेगी कथा:-

लखनऊ, 25 दिसम्बर। ‘’देश का नेतृत्व जब जयश्रीराम का उद्घोष करता है तो दानवी भावनाएं तिलमिला उठती हैं। प्रधानमंत्री गंगा में डुबकी लगाते हैं तो उनके पेट में दर्द होता है। जिनके ज्ञान चक्षु फूटे हैं उन्हें राम झूठे लगते हैं। वे राम का प्रमाण मांगते हैं, राम सेतु का प्रमाण मांगते हैं। श्रीराम अलौकिक युगनायक और धर्म के साक्षात विग्रह हैं। वे मानवता के उद्धारक, दानवता के संहारक, विश्व भर के सनातनियों की आस्था के केन्द्र और देश की अस्मिता हैं।’’

ये बातें साध्वी ऋतम्भरा ने सीतापुर रोड स्थित रेवथी लान में शनिवार से शुरू हुई रामकथा के पहले दिन कहीं। भारत लोक शिक्षा परिषद के तत्वावधान में पूर्वाह्न ग्यारह बजे से शुरू हुई कथा में उन्होंने सत्संग और नाम की महिमा के साथ ही सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया। छुआछूत मिटाने, पर्यावरण की रक्षा के लिए सनातनी दृष्टि अपनाने के आग्रह के साथ ही नारियों से भारतीय संस्कृति के रक्षा हेतु आगे आने की भावुक अपील की। रामकथा शुभारंभ से पहले दुन्दुभि, शंखनाद और गाजे बाजे सहित साध्वी ऋतम्भरा के साथ मुख्य यजमान डा. नीरज बोरा ने सिर पर रामायण व बिन्दू बोरा समेत अनेक महिलाओं ने मंगल कलश लेकर कथा मण्डप में प्रवेश किया।

साध्वी ने सन्तों की महिमा का बखान करते हुए कहा कि जड़ जंगम के प्रति सन्तों की सदय दृष्टि है। वे परिव्राजक होते हैं और उनका चित्त प्राणि मात्र का कल्याण चाहता है। संतो ंके दर्शन मात्र से चित्त निर्मल हो जाता है। उन्होंने कहा कि मैंने बहुत कम उम्र में ही दीक्षा ली थी। लगभग चालीस वर्ष पूर्व बुन्देलखण्ड में साध्वियों की शिष्यमंडली में वे अपने गुरू के साथ एक यज्ञ के निमंत्रण में गईं। वहां पता चला कि बाबा यज्ञ का पैसा लेकर भाग गये हैं और अब यज्ञ नहीं होगा। सांझ होते कुछ लोगों ने गुरुदेव सहित हम सबको अपने साथ चलने को कहा। वे हम सबको खण्डहर में ले गये, उनके मन में वासना थी। कोई चारा न देख गुरु जी ने ईश्वर का ध्यान किया। थोड़ी देर में उनमें से कुछ का चित्त सन्त दर्शन के कारण निर्मल हो गया। वे आपस में लड़ पड़े। भोर में उन लोगों ने गुरुदेव से दीक्षा ली तथा पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। उन्होंने कहा कि संतों का वेश धारण करने वाले कालनेमि, रावण और राहु जैसे लोग पहचान में आ ही जाते हैं।

लौटना होगा सनातन की ओर:-

साध्वी ने कहा कि यदि सारे संसार को सुखी होना है तो सनातन को अपनाना होगा। उन्होंने यूज एण्ड थ्रो की पद्धति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ये हमारी परम्परा नहीं है। प्लास्टिक की बोतल व दोने फेंककर शस्य श्यामला मां का आंचल गंदा किया जा रहा है। आधुनिक जीवन पद्धति ने बड़ा नुकसान किया है। हमें सनातन का अनुसरण करना होगा। उन्होंने कहा कि वृक्ष वल्लरियां भारत मां के वस्त्र हैं इसका ध्यान रहे, नदियों को जीवन मिले। ऐसी निष्ठा रखें कि न पाप करेंगे न करने देंगे।

भेदभाव मिटाकर एक हो समाज:-

अपने पुराने चिरपरिचित अंदाज में साध्वी ने कोट के उपर जनेऊ पहनने वालों को रामद्रोही बताते हुए कहा कि ऐसे बहुरुपियों से सावधान रहने की जरुरत है। श्रद्धालुओं को झंकझोरते हुए कहा कि बारह सौ साल बाद पकड़ी ध्वजा को गिरने न देना। देश और प्रदेश का नेतृत्व जब लोक भावना को देखता है, आस्था का सम्मान करता है, गंगा में डुबकी लगाता है तो रामद्रोहियों की तिलमिलाहट बढ़ जाती है। निधि समर्पण अभियान के दौरान एक नब्बे वर्षीय महिला द्वारा दिये गये पचास रुपये के मुड़े-तुड़े नोट और रामलला के प्रति श्रद्धा के भाव का प्रसंग सुनाते हुए साध्वी भावुक हो उठीं। कहा कि लोग पूछते थे तो मैं कहती थी कि राम जी का मन्दिर धूमधाम से बनेगा। हमारे रामलला हिन्दू स्वाभिमान की पुनर्प्रतिष्ठा अवश्य करायेंगे। उन्होंने कहा कि आप सनातन का उत्कर्ष देखिए और आपसी भेदभाव मिटाइये। अपने दादा गुरु का स्मरण करते हुए कहा कि बुन्देलखण्ड में बेतवा व यमुना के बीच उन्होंने समता की बयार बहाई, मेहतर के हाथ की रोटी खाई और समाज को एक सूत्र में बांधा। साध्वी ने कहा कि राम का नाम संजीवनी है। भारतवर्ष में जो सुहाग के गीत गाये जाते हैं वे राम-जानकी के होते हैं, सोहर में रामलला होते हैं। ये हमारी संस्कृति के प्राण हैं।

महिलाओं से संस्कारों की रक्षा का आह्वान:-

साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि देश ने लम्बे समय तक राजनैतिक गुलामी झेली किन्तु हार नहीं मानी। धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक दृष्टि से कभी गुलाम नहीं हुए किन्तु आज सेटेलाइट चैनलों ने हमारे आंगन में डाका डाल दिया है। चरित्र और नैतिकता का जो हमारा धन था उसकी धज्जियां उड़ा दीं। उन्होंने नारी से मर्यादा की रेखा पार न करने का अनुरोध करते हुए कहा कि बच्चों के चित्त में राम को प्रतिस्थापित करो। भारत की देवियां लक्ष्यविहीन नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि घूंघट हमारी प्रथा नहीं है। उत्तर भारत आक्रान्ताओं से त्रस्त रहा तो यह कुरीति जन्मी। देखना है तो दक्षिण भारत देखो। उन्होंने कहा कि भारत की देवियो ने,कैकेयी के रूप में युद्ध मैदान में, मैत्रेयी-गार्गी के रूप में शास्त्रार्थ समर में और मन्दालसा आदि रूपों में सदैव सनातन गौरव गरिमा का प्रतिनिधित्व किया है तथा सावित्री के रूप यमराज का मार्ग रोकने में सक्षम रही हैं।
आरती के साथ पहले दिन की कथा का समापन हुआ।

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