जानें आखिर कौन था कांग्रेस के पहले अध्यक्ष ,आइए जानते हैं
देश को आजादी मिलने के बाद कांग्रेस का पहला अध्यक्ष ऐसा नेता बना जिसने अपनी जिंदगी कांग्रेस के लिए समर्पित कर दी। उसे मध्य प्रदेश का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया। आखिर कौन था वह अध्यक्ष आइए जानते हैं…
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया की शुरुआत 24 सितंबर से हो चुकी है। यह प्रक्रिया 30 सितंबर तक चलेगी। चुनाव 17 अक्टूबर को होंगे और वोटों की गिनती 19 अक्टूबर को की जाएगी। आज हम आपको ऐसे नेता के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आजादी के बाद कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने। इस नेता का नाम था- पट्टाभि सीतारमैया।
1880 में हुआ जन्म
पट्टाभि सीतारमैया का जन्म 24 नवंबर 1880 को आंध्र प्रदेश में हुआ था। उनका पूरा नाम भोगाराजू पट्टाभि सीतारमैया था। जब वे 5 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया। इस दौरान उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। मद्रास क्रिश्चियन कालेज से उन्होंने बी.ए की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की और चिकित्सा कार्य में लग गए।
कई बार जेल गए
कालेज के दिनों से ही सीतारमैया कांग्रेस के संपर्क में आ चुके थे। स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण वे कई बार जेल भी गए। जब 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो उन्होंने चिकित्सा कार्य त्याग दिया। उन्हें आंध्र प्रदेश में सहकारिता आंदोलन और राष्ट्रीय बीमा कंपनियों को शुरू करने का श्रेय जाता है
सुभाष चंद्र बोस से हारे कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव
सीतारमैया ने 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा। उन्हें महात्मा गांधी का भी समर्थन प्राप्त था, लेकिन इसके बावजूद उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उनकी हार पर गांधी ने कहा था, ‘सीतारमैया की हार उनसे अधिक मेरी हार है।’ बोस को 1580, जबकि सीतारमैया को 1377 मत मिले। सीतारमैया इसके बाद 1948 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने 1952 से लेकर 1957 तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल की भी जिम्मेदारी संभाली।
1959 में हुआ निधन
पट्टाभि सीतारमैया का निधन 17 दिसंबर 1959 को हुआ था। वे स्वतंत्रता सेनानी थे। वे महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे। उन्होंने दक्षिण भारत में आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ‘हिस्ट्री आफ द कांग्रेस’ नाम की पुस्तक भी लिखी, जो काफी लोकप्रिय हुई। इस किताब का पहला भाग 1935 में, जबकि दूसरा भाग 1947 में प्रकाशित हुआ।