भाजपा इस बार निकाय चुनावों में हारी सीटों पर बाजी पलटना चाहती है, जीत का ताना-बाना बुनने में जुटी
भाजपा इस बार निकाय चुनावों में हारी सीटों पर बाजी पलटना चाहती है। पार्टी उन सीटों पर जीत का ताना-बाना बुनने में जुटी है, जहां सामाजिक समीकरणों के चलते अब तक उसे सफलता नहीं मिल पाई है। इसके लिए भाजपा पहली बार अल्पसंख्यकों के लिए द्वार खोलने जा रही है। निकाय चुनाव में यदि यह लिटमस टेस्ट सफल हुआ तो लाभ मिशन-2024 में भी मिलेगा। अपेक्षित सफलता न मिलने की स्थिति में भी पार्टी को कोई नुकसान नहीं है।
भाजपा बीते कुछ सालों से बेहद चरणबद्ध ढंग से पसमांदा मुस्लिमों को अपने पाले में लाने के प्रयासों में जुटी है। केंद्र और राज्य की तमाम योजनाओं का लाभ बड़ी संख्या में मुस्लिमों के इस विकास की दौड़ में पिछड़े तबके को दिया गया है। दरअसल यह सारी तैयारी मिशन-2024 को लेकर है। भाजपा पहले तीन तलाक पर कानून लाकर मुस्लिम महिलाओं के एक वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने का दांव चल चुकी है। चुनावी रणनीतिकारों का कहना है कि यदि पसमांदा मुस्लिमों का दांव सफल हुआ तो इसका बड़ा लाभ भाजपा को मिल सकता है। हालांकि पार्टी के कुछ नेता दबी जुबान में इससे असहमति भी जता रहे हैं।
निकाय चुनाव में भाजपा पसमांदा मुस्लिमों के बूते मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर एक प्रयोग करने की तैयारी में है। पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि यूं भी यह सीटें भाजपा नहीं जीत पाई है। यदि प्रयोग सफल हुआ तो न सिर्फ निकायों में शानदार सफलता मिलेगी, बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी जमीन मजबूत होगी। पार्टी सूत्रों की मानें तो मुस्लिम बाहुल्य नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों की संख्या तकरीबन सौ है। ऐसी सभी सीटों को चिन्हित किया जा रहा है। इनमें से कुछ जगह भाजपा खुद लड़ेगी जबकि कुछ सीटें सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी को दी जा सकती हैं।
प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि भाजपा सर्वस्पर्शी-सर्व समावेषी पार्टी है। केंद्र और प्रदेश की सरकारों ने बिना भेदभाव के अल्पसंख्यकों का भी विकास किया है। हम इस बार अल्पसंख्यक प्रत्याशी लड़ाएंगे। वार्ड से लेकर सभापति और अध्यक्ष पद वाली ऐसी अल्पसंख्यक बाहुल्य सीटें चिन्हित कर रहे हैं। जिताऊ प्रत्याशी इन सीटों पर उतारे जाएंगे।