लोहड़ी पर्व किसानों के लिए बहुत की खास होता है, जानिए इस पर्व का महत्त्व ..
मानव जीवन आत्मिक निर्मलता और परोपकार के मार्ग पर चलने से आनंद का उत्सव बन जाता है। ये उत्सव आनंद के साथ ही परस्पर मेलजोल के अवसर भी प्रदान करते हैं। लोहड़ी मूल रूप से पंजाब का ऐसा त्योहार है, जिसे स्वयं की उपलब्धियों का आनंद व्यक्त करने हेतु मनाया जाता है।
आदिकाल से ही यह क्षेत्र कृषि केंद्रित रहा है। रबी की फसल जनवरी के मध्य तक पककर तैयार हो जाती है। खेत में किसान की लहलहाती फसल उसके श्रम व समर्पण का प्रतीक होती है। इससे वह आनंदित हो उठता है और अपने आनंद को सामाजिक स्तर पर व्यक्त करने को लालायित हो उठता है।
गुरु नानक साहिब की वाणी में कृषि कार्य की श्रेष्ठता अनेक अवसरों पर प्रकट हुई है। उन्होंने कृषि को आध्यात्मिक श्रेष्ठता प्राप्त करने हेतु प्रतीक बनाया। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित अपनी वाणी में गुरु नानक जी ने कहा कि मनुष्य अपने मन को खेत में हल चलाने वाला हलवाहा और जीवन आचरण को कृषि कार्य समझे। अपने यत्नों को जल व तन को खेत समझ कर उसमें परमात्मा के नाम का बीज बोये। वह इस खेत की सुरक्षा के लिए नम्रता की बाड़ लगाए और संतोष की हसिया बनाकर फसल काटे। जब वह प्रेम भावना से ऐसी खेती करता है तो उत्तम फसल तैयार होती है और उसका भाग्योदय हो जाता है। इससे अधिक आनंददायी कुछ नहीं। अपने खेतों में पकी हुई फसल का आनंद मनाने का त्योहार ही लोहड़ी है।
इस दिन रात्रि में अग्नि जलाकर उसके चारों ओर सामूहिक लोक नृत्य होते हैं और लोक गीत गाये जाते हैं। विशेष रूप से मक्के की रोटी और सरसों का साग बनाया जाता है। गन्ने के ताजे रस में चावल डालकर खीर पकाई जाती है। सभी अपने परिश्रम का आनंद आपस में बांटते हैं।
खेत की फसल कृषक की ही नहीं, समाज की आवश्यकताओं की भी पूर्ति करती है, इससे आनंद का व्यापक आधार बनता है। लोहड़ी के साथ ही पंजाब के एक लोकनायक दूला भट्टी की कथा भी जुड़ी हुई है। वह स्थानीय राजपूत राजा था, जो मुगल शासन से विद्रोह के कारण निर्वासन में जी रहा था। वह धनी लोगों को लूटता था और निर्धनों की सहायता करता था। इससे बड़ा उसका सम्मान था।
एक कन्या को उसने मुगल फौजदार से मुक्त कराया और उसे अपनी बेटी बनाकर उसका विवाह इसी दिन कराया था। लोहड़ी के दिन उसके इस परोपकार के गीत भी गाये जाते हैं। लोहड़ी के त्योहार की मुख्य प्रेरणा जीवन को मोक्ष प्राप्ति के एक दुर्लभ अवसर की तरह देखते हुए इसका सदुपयोग करने की है। गुरु नानक जी द्वारा बताये तन को खेत बनाकर भक्ति का बीज बोने के मार्ग से जीवन सहज व सरल हो जाता है। जीवन का प्रत्येक दिन लोहड़ी का आनंदोत्सव बन जाता है।