अरबपति गौतम अडानी की तरह ही वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल भी संकट से घिरे..
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद मुश्किलों का सामना कर रहे अरबपति गौतम अडानी की तरह ही वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल भी संकट से घिरे हैं और इससे निपटने के लिए उपाय कर रहे हैं। दरअसल, कर्ज में डूबी कंपनी को ऊबारने के लिए अरबपति अनिल अग्रवाल रकम जुटाने की तैयारी में हैं। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अनिल अग्रवाल एक बिलियन डॉलर जुटाने के लिए बार्कलेज और स्टैंडर्ड चार्टर्ड सहित बैंकों के साथ बातचीत कर रही है। इस फंड का उपयोग लोन चुकाने में किया जाएगा। इस खबर के बाद आज बुधवार को वेदांता के शेयरों में 2% से ज्यादा की तेजी है। कंपनी के शेयर सुबह 9.38 बजे 273.95 रुपये पर ट्रेड कर रहे थे। बता दें कि वेदांता के शेयर पिछले 8 कारोबारी दिन से लगातार टूट रहे थे। कंपनी के शेयर मंगलवार को पांच महीने के निचले स्तर पर पहुंच गए थे।
क्या है मैटर, समझें?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वेदांता रिसोर्सेज फ्यूचर रि-फाइनेंसिंग के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर निर्भर है। मतलब ये कि कंपनी भविष्य की किसी भी योजना के लिए बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कर्ज पर निर्भर रहेगी। वेदांता समूह का नेट कर्ज करीब 11.8 अरब डॉलर है। यह कर्ज 3.5 अरब डॉलर के कैश कंपोनेंट को समायोजित करने के बाद है। खबर यह भी है कि अगर वेदांता रिसोर्सेज 2 अरब डॉलर जुटाने की योजना पर नाकाम रहती है तो एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स घट सकती है।
खबर ये भी है कि वेदांता समूह की सब्सिडयरी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल) प्रवर्तक कंपनी वेदांता लिमिटेड की विदेशी एसेट्स के अधिग्रहण प्रस्ताव पर सरकार के साथ मतभेद दूर करने के लिए खान मंत्रालय से संपर्क साधने की तैयारी में है। वेदांता लिमिटेड की विदेशी एसेट्स के अधिग्रहण को लेकर सरकार की तरफ से कुछ चिंताएं जाहिर की गई हैं।
हिंदुस्तान जिंक को बेचने की योजना हुई फेल
अनिल अग्रवाल की अगुवाई वाली वेदांता ने पिछले महीने कहा था कि वह अपनी वैश्विक जिंक एसेट्स 298.1 करोड़ डॉलर के नकद सौदे में हिंदुस्तान जिंक को बेचने जा रही है। हालांकि, इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे शेयरधारकों का कहना है कि जब दोनों कंपनियों का स्वामित्व वेदांता के ही पास है तो विदेशी एसेट्स की बिक्री की कोई जरूरत नहीं है। बता दें कि वेदांता के पास हिंदुस्तान जिंक की 64.92 प्रतिशत हिस्सेदारी है। लगभग दो दशक पहले निजीकरण के बाद भी इस कंपनी में सरकार की हिस्सेदारी 29.54 प्रतिशत पर बनी हुई है।