अगर आप भी सभी संकटों से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन श्रीसत्यनारायणाष्टकम् स्तोत्र का जरूर करें पाठ

सनातन धर्म में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा उपासना करने का विधान है। गुरुवार और पूर्णिमा के दिन श्रीसत्यनारायण की पूजा-उपासना की जाती है। श्रीसत्यनारायण कथा का श्रवण से साधक के जीवन में व्याप्त सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। साथ ही घर में सुख, शांति और धन का आगमन होता है। अगर आप भी सभी संकटों से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन श्रीसत्यनारायणाष्टकम् स्तोत्र का पाठ जरूर करें। आइए जानते हैं-

श्रीसत्यनारायणाष्टकम् स्तोत्र

आदिदेवं जगत्कारणं श्रीधरं लोकनाथं विभुं व्यापकं शंकरम् ।

सर्वभक्तेष्टदं मुक्तिदं माधवं सत्यनारायणं विष्णुमीशम्भजे ॥१॥

सर्वदा लोककल्याणपारायणं देवगोविप्ररक्षार्थसद्विग्रहम् ।

दीनहीनात्मभक्ताश्रयं सुन्दरम् श्रीसत्यनारायणाष्टकम् ॥२॥

दक्षिणे यस्य गंगा शुभा शोभते राजते सा रमा यस्य वामे सदा ।

यः प्रसन्नाननो भाति भव्यश्च तं श्रीसत्यनारायणाष्टकम् ॥३॥

संकटे संगरे यं जनः सर्वदा स्वात्मभीनाशनाय स्मरेत् पीडितः ।

पूर्णकृत्यो भवेद् यत्प्रसादाच्च तं श्रीसत्यनारायणाष्टकम् ॥४॥

वाञ्छितं दुर्लभं यो ददाति प्रभुः साधवे स्वात्मभक्ताय भक्तिप्रियः ।

सर्वभूताश्रयं तं हि विश्वम्भरं श्रीसत्यनारायणाष्टकम् ॥५॥

ब्राह्मणः साधुवैश्यश्च तुंगध्वजो येऽभवन् विश्रुता यस्य भक्त्यामराः ।

लीलया यस्य विश्वं ततं तं विभुं श्रीसत्यनारायणाष्टकम् ॥६॥

येन चाब्रम्हाबालतृणं धार्यते सृज्यते पाल्यते सर्वमेतज्जगत् ।

भक्तभावप्रियं श्रीदयासागरं श्रीसत्यनारायणाष्टकम् ॥७॥

सर्वकामप्रदं सर्वदा सत्प्रियं वन्दितं देववृन्दैर्मुनीन्द्रार्चितम् ।

पुत्रपौत्रादिसर्वेष्टदं शाश्वतं श्रीसत्यनारायणाष्टकम् ॥८॥

अष्टकं सत्यदेवस्य भक्त्या नरः भावयुक्तो मुदा यस्त्रिसन्ध्यं पठेत् ।

तस्य नश्यन्ति पापानि तेनाग्निना इन्धनानीव शुष्काणि सर्वाणि वै ॥९॥

॥श्रीसत्यनारायणाष्टकम् सम्पूर्णम्॥

श्री सत्यनारायणजी की आरती

जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

सत्यनारायण स्वामी,

जन पातक हरणा ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

रत्‍‌न जडि़त सिंहासन,

अद्भुत छवि राजै ।

नारद करत निराजन,

घण्टा ध्वनि बाजै ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

प्रकट भये कलि कारण,

द्विज को दर्श दियो ।

बूढ़ा ब्राह्मण बनकर,

कंचन महल कियो ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

दुर्बल भील कठारो,

जिन पर कृपा करी ।

चन्द्रचूड़ एक राजा,

तिनकी विपत्ति हरी ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

वैश्य मनोरथ पायो,

श्रद्धा तज दीन्ही ।

सो फल भोग्यो प्रभुजी,

फिर-स्तुति कीन्हीं ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

भाव भक्ति के कारण,

छिन-छिन रूप धरयो ।

श्रद्धा धारण कीन्हीं,

तिनको काज सरयो ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

ग्वाल-बाल संग राजा,

वन में भक्ति करी ।

मनवांछित फल दीन्हों,

दीनदयाल हरी ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

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