समलैंगिक विवाह को मान्यता की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में दिलचस्प बहस जारी
समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में इन तीखी बहस चल रही है। मंगलवार को एक बार फिर से इस पर दिलचस्प चर्चा हुई। इसी दौरान समलैंगिक विवाह को मान्यता का विरोध करते हुए अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कई तर्क रखे। उन्होंने कहा कि समलैंगिक विवाह से संतान की उत्पत्ति नहीं हो सकती, जो शादी का एक अहम मकसद होता है। द्विवेदी ने कहा कि यदि शादी की परिभाषा को सही ढंग से नहीं समझा गया तो दिक्कतें आएंगी। उन्होंने कहा कि यदि शादी को लेकर कोई नियम या कानून ही नहीं रहेगा, तब तो भाई और बहनें भी शादी करना चाहेंगी। यही नहीं उन्होंने कहा कि समलैंगिक विवाह से संतान नहीं होंगी और फिर तो मानव सभ्यता पर ही संकट होगा। द्विवेदी ने कहा कि कई देशों में तो बच्चे पैदा नहीं हो रहे हैं और लोग बूढ़े हो रहे हैं।
उन्होंने साफ कहा कि शादी को इतना भी अपरिभाषित नहीं रख सकते। उन्होंने कहा कि शादी का एक अर्थ यह भी है कि सामाजिक उद्देश्य से स्त्री और पुरुष का मिलन हो। मानव सभ्यता को बनाए रखने के लिए भी यह अहम और संतानोत्पत्ति इसका एक जरिया है। लेकिन यह संतानोत्पत्ति समलैंगिक विवाह के जरिए तो नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि इस तरह शादी की परिभाषा बदलना ठीक नहीं होगा। इस पर बेंच में शामिल जस्टिस रवींद्र भट ने कहा कि बदलाव गलत कैसे हो सकता है? उन्होंने कहा कि भारत का संविधान ही पुराने प्रचलनों को तोड़ने वाला है।
बदलाव की बात पर बोले जज- संविधान ने भी तोड़ीं परंपराएं
जस्टिस भट ने कहा कि पहले अंतर-जातीय विवाह की अनुमति नहीं थी और अंतर-धार्मिक विवाह 50 साल पहले अनसुना था। लेकिन अब तो ऐसा हो रहा है और इसकी वजह यह है कि संविधान में इसके लिए लोगों को अनुमति दी गई है। उन्होंने कहा, ‘संविधान अपने आप में परंपरा को तोड़ने वाला है क्योंकि पहली बार आप अनुच्छेद 14 लाए हैं। अगर आप अनुच्छेद 14, 15 और 17 लाए हैं तो वे परंपराएं टूट गई हैं।’ इस पर द्विवेदी ने तर्क रखा कि बदलाव विधायिका ने किए जो रीति-रिवाज बदल सकती है। यह काम अदालत नहीं कर सकती।
वकील बोले- शादी कोई नई व्यवस्था तो नहीं
मध्य प्रदेश सरकार के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि शादी एक ऐसी परंपरा है, जिसे दो लोग, उनके परिवार और समाज की भी मान्यता रही है। ऐसा नहीं है कि कोई दो लोग अचानक से आकर कहते हैं कि हम साथ आए गए हैं और यह शादी है। विवाह की व्यवस्था समाज से ही पैदा हुई है और यह जरूरत है। इस दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी माना कि शादी परिवार का एक अहम घटक है। शादी का मुख्य मकसद संतान की उत्पत्ति भी रहा है। लेकिन क्या उन लोगों की शादी मान्य नहीं होती है, जिनके बच्चे नहीं होते।