इस आरती के बिना अधूरी है गुरु पूर्णिमा की पूजा

गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन लोग अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता जाहिर करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। हिंदू धर्म में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना गया है, ऐसे में इस खास अवसर पर उनकी भव्य आरती जरूर करें। कहा जाता है कि इस मौके सच्चे भाव से पूजा-पाठ करने से जीवन का अंधकार समाप्त होता है। साथ ही करियर में सफलता मिलती है।

इस साल गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2025 Date) का पर्व 10 जुलाई यानी आज के दिन मनाया जा रहा है। ऐसे में आइए देवों के गुरुओं की प्रसन्न करते हैं।

॥बृहस्पति देव की आरती॥
जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।

छिन छिन भोग लगा‌ऊँ, कदली फल मेवा ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटा‌ओ, संतन सुखकारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

जो को‌ई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।

बोलो बृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥

॥भगवान विष्णु की आरती॥ (Lord Vishnu Aarti)
ॐ जय जगदीश हरे आरती

ॐ जय जगदीश हरे,

स्वामी जय जगदीश हरे ।

भक्त जनों के संकट,

दास जनों के संकट,

क्षण में दूर करे ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

जो ध्यावे फल पावे,

दुःख बिनसे मन का,

स्वामी दुःख बिनसे मन का ।

सुख सम्पति घर आवे,

सुख सम्पति घर आवे,

कष्ट मिटे तन का ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

मात पिता तुम मेरे,

शरण गहूं किसकी,

स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।

तुम बिन और न दूजा,

तुम बिन और न दूजा,

आस करूं मैं जिसकी ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम पूरण परमात्मा,

तुम अन्तर्यामी,

स्वामी तुम अन्तर्यामी ।

पारब्रह्म परमेश्वर,

पारब्रह्म परमेश्वर,

तुम सब के स्वामी ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम करुणा के सागर,

तुम पालनकर्ता,

स्वामी तुम पालनकर्ता ।

मैं मूरख फलकामी,

मैं सेवक तुम स्वामी,

कृपा करो भर्ता॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम हो एक अगोचर,

सबके प्राणपति,

स्वामी सबके प्राणपति ।

किस विधि मिलूं दयामय,

किस विधि मिलूं दयामय,

तुमको मैं कुमति ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,

ठाकुर तुम मेरे,

स्वामी रक्षक तुम मेरे ।

अपने हाथ उठाओ,

अपने शरण लगाओ,

द्वार पड़ा तेरे ॥

॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

विषय-विकार मिटाओ,

पाप हरो देवा,

स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,

सन्तन की सेवा ॥

ॐ जय जगदीश हरे,

स्वामी जय जगदीश हरे ।

भक्त जनों के संकट,

दास जनों के संकट,

क्षण में दूर करे ॥

Related Articles

Back to top button