क्लासिक फिल्मों में लगा AI का तड़का!

12 साल पहले आई फिल्म रांझणा वाराणसी में जाकर बस गए तमिल ब्राह्मण परिवार के बेटे कुंदन (धनुष) और जोया (सोनम कपूर) की कहानी थी। कालेज में जसजीत (अभय देओल) की जोया से मुलाकात के बाद दोनों की शादी होने वाली होती है, तभी कुंदन उसका झूठ उजागर कर देता है। उसमें जसजीत की जान चली जाती है। जोया इसके लिए कुंदन को जिम्मेदार समझती है।

आखिर में प्रेम के लिए कुंदन बलिदान दे देता है। इस क्लाइमेक्स ने दर्शकों को झकझोर दिया था। अब इस फिल्म के अंत को सुखद बनाया जा रहा है एआइ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की मदद से। इस फिल्म के नए डब वर्जन को एक अगस्त को तमिलनाडु में प्रदर्शित किया जाएगा। यह हिंदी फिल्म 2013 में तमिल में अंबिकापथी के नाम से प्रदर्शित हुई थी। फिल्म के अधिकार इरोस इंटरनेशनल के पास हैं।

‘रांझणा’ के साथ एआइ का खेल

फिल्म के निर्देशक आनंद एल राय ने ‘रांझणा’ के पुनः प्रदर्शित होने वाले संस्करण में एआइ-जनित सुखद अंत का कड़ा विरोध किया है। इस संदर्भ में फिल्म की निर्माता कंपनी इरोस इंटरनेशनल के ग्रुप सीईओ प्रदीप द्विवेदी कहते हैं कि तमिलनाडु में रांझणा का पुनः प्रदर्शन इरोस इंटरनेशनल की क्षेत्रीय बाजार को पुनर्जीवित करने की रणनीति का हिस्सा है।

तमिलनाडु का इस फिल्म से खास जुड़ाव है। न सिर्फ अभिनेता धनुष के शानदार अभिनय के कारण, बल्कि नायक के तमिल जुड़ाव के कारण भी। यहां एआइ ने कहानी कहने में सहायक की भूमिका निभाई है। वैकल्पिक अंत एक रचनात्मक रीइंटरप्रिटेशन (पुनर्व्याख्या) है, न कि उसका रीप्लेसमेंट (प्रतिस्थापन)।

फिलहाल रांझणा को हिंदी में वैकल्पिक अंत के साथ प्रदर्शित करने की कोई योजना नहीं है। आनंद एल राय ने कहा था कि एआइ भविष्य है, लेकिन इसका इस्तेमाल भविष्य के लिए करें, अतीत को विकृत करने के लिए नहीं। इस बाबत प्रदीप कहते हैं कि हम फिल्म को विकृत नहीं कर रहे हैं। एआइ किस्सागोई को रुचिकर बनाने का तरीका हो सकता है। मूल रांझणा का आकर्षण अछूता है।

शोले का रीस्टोर वर्जन

बीते दिनों शोले का रीस्टोर वर्जन पेश किया गया था, जिसमें गब्बर मारा जाता है। फिल्म ट्रेड एनालिस्ट कोमल नहाटा कहते हैं कि चाहे शोले हो या रांझणा उसका पांच-सात मिनट का क्लाइमेक्स बदलकर नई फिल्म की तरह नहीं लिया जा सकता है। शोले एक लैंडमार्क फिल्म है, नई फुटेज देखने को मिलेगी तो चर्चा यकीनन होगी, पर ये ट्रेंड बनेगा इसकी संभावना कम ही है।

एआइ से होने वाले बदलाव भविष्य में फिल्म निर्माण के लिए खतरे का संकेत माने जा रहे हैं। इस बाबत फिल्म निर्माता दीपक मुकुट कहते हैं कि एआइ में इमोशन नहीं होते हैं। सनम तेरी कसम फिल्म के पुन: प्रदर्शन के समय हमने उसमें कोई बदलाव नहीं किया था। उसका परिणाम अच्छा ही आया। अगर मैं उसमें बदलाव करूंगा तो वह गलत हो जाएगा। लगेगा कि उस वक्त हमने रचनात्मक तौर पर सही नहीं किया था। अब उसे बदल रहे हैं।

मुझे नहीं लगता कि जिन फिल्मों को हम बनाकर प्रदर्शित कर चुके हैं उनमें एआइ सरीखी चीजों को लाने करने की जरूरत है। अगर आप कोई नई फिल्म एआइ की मदद से बनाते हैं तो उसे एआइ फिल्म ही कहा जाएगा। मेरा मानना है कि बदलाव के साथ अंत को प्रदर्शित करना महज प्रयोग है। हाउसफुल 5 को भी दो क्लाइमेक्स के साथ प्रदर्शित किया गया था। निर्माता के पास फैसले लेने का हक है। बाकी निर्णय जनता ही करेगी।

वहीं फिल्म एग्जीबिटर अक्षय राठी कहते हैं कि एआइ से बदलाव रोचक प्रयोग हो सकता है, लेकिन आडियंस फिल्म को वापस इसलिए देखने आती है क्योंकि उन्हें पहले भी पसंद आई थी। रांझणा हिट रही थी। यह बता पाना मुश्किल है कि नए क्लाइमेक्स पर लोगों की प्रतिक्रिया क्या होगी, लेकिन जिस फिल्म की कल्ट वैल्यू हो उसमें संभावनाए इसके विरुद्ध ही दिखती हैं।

एआइ का मनमाना प्रयोग ना हो

एआइ के प्रयोग से कल्ट फिल्मों पर क्या असर पड़ेगा? इस संदर्भ में रांझणा की निर्माता कंपनी इरोस इंटरनेशनल के ग्रुप सीईओ प्रदीप कहते हैं कि किसी भी उपकरण की तरह, एआइ का इस्तेमाल जिम्मेदारी और स्पष्ट रचनात्मक उद्देश्य के साथ किया जाना चाहिए। इरोस सिनेमाई उत्कृष्टता को बदलने के लिए एआइ के मनमाने इस्तेमाल का समर्थन नहीं करता है। रांझणा के मामले में यह एक सोचा-समझा प्रयास था, जिसे एक खास दर्शक वर्ग के लिए हमने तैयार किया है। एआइ रीमेक का व्यापक ट्रेंड हमारा रुख नहीं है। हम नवाचार और कहानी कहने के उद्देश्य में विश्वास करते हैं।

देखने वाली ‍बात

बीते दिनों शोले के रीस्टोर्ड वर्जन को इटली के प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल में मूल क्लाइमेक्स के साथ प्रदर्शित किया गया था। इसमें गब्बर (अमजद खान) मरता है। हालांकि 50 साल पहले जब फिल्म आई थी तब सेंसर बोर्ड के निर्देश पर क्लाइमेक्स को बदलना पड़ा था और गब्बर की गिरफ्तारी दिखाई गई थी।

कल्ट फिल्मों के अंत को बदलाव के साथ पुन: प्रदर्शित करने पर ट्रेड एनालिस्ट कोमल नहाटा कहते हैं कि यह देखने वाली बात होगी कि दर्शकों को बदला हुआ कांसेप्ट पसंद आएगा या नहीं। बदले हुए क्लाइमेक्स के साथ दर्शक स्वीकार लेते हैं तो माना जाएगा कि तकनीक से बदलाव करके तो बात बन जाती है।

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