योगेश राज की खौफनाक साजिश, बुलंदशहर में पता नहीं फिर क्या होता
एक दिसंबर से तीन दिसंबर तक बुलंदशहर में देश और दुनिया भर से आए करीब दस लाख मुसलमान एक इज्तिमा में हिस्सा ले रहे थे. तीन दिसंबर को इज्तिमा खत्म होता है. दस लाख की भीड़ अब अपने-अपने घर को लौटने लगती है. और ठीक उसी वक्त करीब चार सौ लोगों की भीड़ एक रास्ता जाम कर देती है. इज्तिमा से लौट रहे बहुत सारे लोग इसी रास्ते से गुजरने वाले थे. हालात बेहद तनाव भरे थे. आगे कुछ भी हो सकता था. और यहीं से ये सवाल उठ रहा है कि सोमवार को जो कुछ बुलंदशहर में हुआ क्या उसके पीछे साज़िश कुछ और थी?
दस लाख से ज़्यादा लोग इज्तिमा से लौट रहे थे. चार सौ के क़रीब भीड़ रास्ता रोके थी. मुट्ठी भर पुलिस वाले सामने खड़े थे. तीन दिसंबर को कुछ भी हो सकता था बुलंदशहर में.
आलमी इज्तिमा कमेटी, दरियापुर ने बुलंदशहर में इज्तिमा का आयोजन किया था. इज्तिमा में अमूमन शरई यानी शरीयत से जुड़े मसले और उनके हल की बातें की जाती हैं. साथ ही दीन के बारे में तालीम दी जाती है. तकरीरें होती हैं. इसका राजनीति या राजनीतिक बातों से कोई लेना-देना नहीं होता. अमूमन ऐसे इज्तिमा में देश के अलावा दुनिया के अलग-अलग मुल्कों के भी लोग शिरकत करते हैं. ये इज्तिमा एक दिसंबर से तीन दिसंबर तक होना था और इसके लिए बाकायदा प्रशासन से ज़रूरी इजाजत भी ली गई थी. हालांकि कहते हैं कि प्रशासन ने दो लाख लोगों की इजाजत दी थी. जबकि इज्तिमा में दस लाख से ज्यादा लोग आए थे. इज्तिमा के लिए बुलंदशहर के दरियापुर गांव के अलावा अरौली, अकबरपुर और मिरगूपुर गांव में भी इंतजाम किए गए थे. इज्तिमा के पहले दो दिन पूरी तरह शांति से गुजर जाते हैं. अब बस इज्तिमा का आखिरी दिन था.
सुबह के करीब 11 बजे महाव गांव के करीब जंगल में जानवरों के कुछ अवशेष पड़े मिले. जिसपर आस-पास के गांवों के लोगों की नज़र पड़ी. कहा गया कि इज्तिमा में शामिल लोगों के लिए जो खाना बन रहा था. जंगल में उसी के अवशेष फेंके गए हैं. हालांकि किसी ने ये जानने की कोशिश नहीं की कि ये गाय के अवशेष थे, भैंस के या बकरे के. बस इसी के बाद स्थानीय लोग भड़क गए, या फिर उन्हें भड़काया गया.
शुरूआत 50-60 लोगों से हुई. उन्होंने चौकी चिंगरावठी के सामने प्रदर्शन शुरू कर दिया. उनकी मांग थी कि पुलिस मामले की जांच कर फौरन एफआईआफ दर्ज करे और दोषियों को गिरफ्तार करे. प्रदर्शन के दौरान कुछ लोग बुलंदशहर स्याना मार्ग पर भी पहुंच गए और रोड जाम कर दिया.
अब इसे इत्तेफाक कहिए या साजिश कि जिस वक्त ये सब शुरू हुआ ठीक उसी वक्त इज्तिमा खत्म हो चुका था और अब लाखों की भीड़ बुलंदशहर से अपने-अपने घर लौट रही थी. उनके घर जाने का एक रास्ता वो बुलंदशहर स्याना मार्ग भी था जिसे जाम कर दिया गया था.
पुलिस की सांसें फूल चुकी थीं. भीड़ उग्र थी. उधर, इज्तिमा से लोग वापस जा रहे थे. रास्ते में कुछ भी हो सकता था. भीड़ और इज्तिमा से लौट रहे लोगों में भिड़ंत हो सकती थी. कहते हैं कि इस चीज का अंदाजा पुलिस को भी था और पुलिस ने सुबह ही प्रशसान से और फोर्स की मांग की थी. मगर वक्त रहते फोर्स मुहैया नहीं कराई गई.
बाकी उस वक्त जो फोर्स मौजूद थी वो इस नाजुक हालात से निपटने के लिहाज से बेहद कम थी. और इसी का फायदा भीड़ ने उठाया. मौके पर अचानक अफवाह फैलाई जाती है. लोगों को उकसाया जाता है. दंगा भड़काया जाता है. भीड़ एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाती है. ये सब होते-होते भीड़ ने जब पुलिस चौकी पर हमला बोला तब तक तीन गांवों के करीब 400 लोग जमा हो चुके थे.
तलवार, लाठी, डंडे और देसी कट्टे से लैस भीड़ ने पहले पुलिस पर हमला किया, फिर चौकी पर, फिर गाड़ियों को आग के हवाले किया और आखिर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी. हालांकि जिस जगह भीड़ ने ये तमाम हंगामा किया, वो जगह इज्तिमा के आयोजन स्थल से करीब 50 किलोमीटर दूर थी. वर्ना अंदाजा लगाइए क्या कुछ हो सकता था.