कांग्रेस-बसपा का गठबंधन होता तो नतीजे कुछ और होते, क्या है 2019 

हिंदी पट्टी के तीन राज्यों के नतीजे सामने हैं. कांग्रेस इन राज्यों में सरकार बनाने जा रही है. यहां बीएसपी का प्रदर्शन मिलाजुला रहा है. राजस्थान में बीएसपी की सीटें तीन से बढ़कर छह हो गईं, जबकि मध्य प्रदेश में पार्टी सात से घटकर दो के आंकड़े पर आ गई. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि अगर चुनाव से पहले कांग्रेस और बीएसपी का गठबंधन होता तो आज नतीजों की सूरत क्या होती.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 41% वोट मिले हैं, जबकि बीएसपी के वोट 4.9% हैं. अगर ये दोनों वोट मिला दिए हैं, जो राज्य में ये गठबंधन एक तरफा जीत दर्ज कर सकता था. ऐसी ही सूरत राजस्थान में बनती, जहां बीएसपी को 4% वोट मिले. हालांकि ये पूरे विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि गठबंधन की सूरत में दोनों पार्टियों के वोट एक दूसरे को किस हद तक ट्रांसफर होते. गौरतलब है कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की बात चल रही थी, लेकिन सीटों की सहमति नहीं बन पाने के चलते गठबंधन नहीं हो सका.

छत्तीसगढ़ में चूकी बीएसपी
बीएसपी का अनुमान छत्तीसगढ़ में सबसे गलत रहा, जहां उसने अजीत जोगी की पार्टी के साथ गठबंधन किया. यहां कांग्रेस पार्टी ने भारी जीत दर्ज की. अगर बीएसपी ने यहां कांग्रेस के साथ गठबंधन किया होता तो उसे जीत का श्रेय मिलता. छत्तीसगढ़ में बीएसपी ने दो सीटें जीती हैं, लेकिन उसका वोट प्रतिशत पिछले चुनाव के मुकाबले 4.45% से घटकर 3.8% हो गया.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को करीब 41% वोट मिले हैं और यहां उनके बीच कांटे के मुकाबले में कांग्रेस को बढ़त मिली है. अगर कांग्रेस के 41% वोट में बीएसपी के 4.9% वोट मिला दिए जाएं, तो कांग्रेस पार्टी बीजेपी को कहीं ज्यादा पीछे छोड़ देती. हालांकि कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यहां बीजेपी के परंपरागत सवर्ण वोट एससी/एसटी एक्ट के मुद्दे पर पार्टी से नाराज थे, और अगर कांग्रेस बीएसपी के साथ गठबंधन करती, तो हो सकता है कि इस गुस्से का फायदा उसे न मिलता. मध्य प्रदेश में भी पिछले चुनाव के मुकाबले बीएसपी का वोट 6.29% से घटकर 4.8% हो गया है.

लोकसभा चुनाव के लिए संदेश
राजस्थान में कांग्रेस को बहुमत से दो सीट कम मिली हैं. यहां बीएसपी को 3.8% वोट मिले हैं और अगर दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ होता, तो यहां तस्वीर कुछ और हो सकती है. ताजा चुनाव में बीजेपी को हार मिली है, लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव की नजर से देखें तो निष्कर्ष यही है कि विपक्षी दल एकजुट होकर ही 2019 में सत्ता का सफर तय कर सकते हैं.

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