जब अटल विहारी वाजपेयी ने कहा, ‘इस बारात के दूल्हा वीपी सिंह हैं’
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 25 दिसंबर को 94वीं जयंती हैं. इस साल उनका लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. वाजपेयी ओजस्वी वक्ता तो थे ही लेकिन उनकी वाकपटुता और हाजिरजवाबी भी कमाल की थी. 50 से अधिक वर्षों के संसदीय जीवन में उनके इस तरह के अनेक किस्से मशहूर हैं. ऐसे ही कुछ किस्से यहां पेश किए जा रहे हैं:
1984 का चुनाव
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को 401 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला था. उसके बाद उस तरह का प्रचंड बहुमत आज तक किसी दल को नहीं मिला है. कांग्रेस बहुत मजबूत दिख रही थी लेकिन बोफोर्स कांड (1987) के बाद माहौल बदलने लगा. इस मसले पर केंद्रीय मंत्री विश्वनाथ प्रताप (वीपी) सिंह, कांग्रेस से अलग हो गए. उन्होंने गैर कांग्रेसी दलों को गठबंधन के लिए एकत्र करना शुरू किया.
विपक्ष को भी ऐसा लग रहा था कि मजबूत कांग्रेस को टक्कर देने के लिए दलों के गीच गठबंधन की दरकार है. इसी कड़ी में वीपी सिंह और बीजेपी के गठबंधन की चर्चा चली. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि वीपी सिंह, बीजेपी के साथ गठबंधन के पक्षधर नहीं थे लेकिन सियासी नफे-नुकसान को देखते हुए आखिरकार समझाने पर समझौते के लिए राजी हो गए. इस तरह वीपी सिंह और बीजेपी का गठबंधन हो गया.
उसके बाद 1989 के चुनाव प्रचारा के दौरान जब वाजपेयी और वीपी सिंह दोनों ही एक साथ एक प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद थे तो वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने वाजपेयी से पूछा कि यदि चुनावों के बाद अगर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती हे तो क्या आप प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी लेने को तैयार होंगे? इस पर वाजपेयी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ”इस बारात के दूल्हा वीपी सिंह हैं.” पत्रकार विजय त्रिवेदी ने अटल बिहारी वाजपेयी पर एक किताब लिखी है. उनकी किताब ‘हार नहीं मानूंगा: एक अटल जीवन गाथा’ में इस तरह के अनेक रोचक किस्सों को शामिल किया गया है. यह किताब हार्पर कॉलिंस प्रकाशन से छपी है.
पदयात्रा पर सवाल
इसी तरह का एक अन्य किस्सा बहुत मशहूर है. इंदिरा गांधी के दौर में उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार की घटना घटी. इसके विरोध में वाजपेयी पदयात्रा पर निकल पड़े. उस दौरान उनके मित्र अप्पा घटाटे ने पूछा, आपकी ये यात्रा कब तक चलेगी? इस पर तपाक से वाजपेयी ने जवाब दिया, ‘जब तक पद नहीं मिलता, यात्रा चलती रहेगी.’
‘मैं बिहारी भी हूं’
साल 2004 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी बिहार में एक चुनावी जनसभा में पहुंचे. जब भाषण के लिए वह मंच पर आए तो बिहार से रिश्ता जोड़ते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं अटल हूं और बिहारी भी हूं.’ इस पर जनता ने खूब तालियां पीटीं.