अफगानिस्तान को भारत की मदद का ट्रंप ने उड़ाया मजाक
अब अमेरिका के राष्ट्रपति Donald Trump के ‘अधूरे ज्ञान’ की बात करते हैं. क्योंकि, वर्ष 2019 की अपनी पहली कैबिनेट मीटिंग के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में Trump ने भारत के संदर्भ में एक ऐसी बात कही है, जिसका सच्चाई से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. ट्रंप ने अफगानिस्तान में भारत द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों का मज़ाक उड़ाया, लेकिन जानकारी की कमी की वजह से ये दांव उन पर उल्टा पड़ गया.
Trump ने कहा, कि वो भारत के प्रधानमंत्री का साथ दे रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर उन्हें अफगानिस्तान की उस लाइब्रेरी के बारे में बताते रहते हैं, जिसका निर्माण भारत ने किया है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अफगानिस्तान में लाइब्रेरी का इस्तेमाल करता कौन है ? इतना खर्च तो अमेरिका सिर्फ पांच घंटे में कर देता है. भारत को अगर कुछ करना ही है तो उसे अफगानिस्तान में अपने सैनिक भेजने चाहिएं.
आप इसे डॉनल्ड ट्रंप का कूटनीतिक कटाक्ष भी कह सकते हैं. लेकिन ऐसा करते हुए वो ये भूल गए, कि अधूरा ज्ञान बहुत खतरनाक होता है. हम Trump के इस अधूरे ज्ञान का विश्लेषण करेंगे. लेकिन उससे पहले आप उनका ये पूरा बयान सुनिए.
आप जानते हैं, कि जब कोई देश 200 सैनिकों को इराक भेजता है, या 100 सैनिकों को सीरिया या अफगानिस्तान भेजता है, और इसके बाद ऐसे देश हमें बार-बार इस बात की याद भी दिलाते हैं, कि हमने आपकी मदद के लिए सैनिक भेज दिए. इसपर होने वाला खर्च उनको दी जाने वाली मदद का सिर्फ एक प्रतिशत हिस्सा है. वो सिर्फ मुझे खुश करने के लिए ऐसा करते हैं. मैंने पूर्व राष्ट्रपतियों को ये कहते हुए सुना है कि वो अफगानिस्तान युद्ध में शामिल थे क्योंकि उन्होंने कुछ सौ सैनिकों को युद्ध के लिए भेजा.
बावजूद इसके हमें करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. मैं भारत और भारत के प्रधानमंत्री के साथ मिलकर काम करता हूं. नरेंद्र मोदी बहुत तेज़ हैं और वो मुझे हमेशा उस लाइब्रेरी के बारे में बताते हैं, जिसका निर्माण उन्होंने अफगानिस्तान में किया है. पता है वो क्या है ? वो उतना ही है जितना हम 5 घंटे में खर्च करते हैं. और वो चाहते हैं, कि हम इस लाइब्रेरी के लिए उन्हें शुक्रिया कहें. मुझे नहीं पता, कि अफगानिस्तान में उस लाइब्रेरी का इस्तेमाल कौन करता है.
मुझे लगता है कि भारत को अफगानिस्तान में अपने सैनिक भेजने चाहिए. अफगानिस्तान का पड़ोसी होकर भी भारत वहां पर क्यों नहीं है ? जबकि हम साढ़े 9 हज़ार किलोमीटर दूर होकर भी वहां मौजूद हैं.))
मज़ेदार बात ये है, कि Donald Trump अफगानिस्तान की जिस लाइब्रेरी के बारे में बात कर रहे हैं, वो वजूद में है ही नहीं. अभी तक ना तो ऐसा कोई कूटनीतिक दस्तावेज़ उपलब्ध है. और ना ही ऐसे सार्वजनिक बयान मौजूद हैं, जिनमें किसी लाइब्रेरी का ज़िक्र किया गया हो. ऐसे में सवाल ये है, दुनिया के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति होने के नाते Donald Trump से इतनी बड़ी ग़लती कैसे हो गई ? इसका जवाब अफगानिस्तान के पत्रकार Parwiz Kawa ने, एक Tweet के ज़रिए दिया है.
Donald Trump ने अपनी Press Conference में जिस लाइब्रेरी का ज़िक्र किया, वो दरअसल अफगानिस्तान की संसद थी. जिसके निर्माण में भारत सरकार की अहम भूमिका थी.
दिसम्बर 2015 में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान की संसद का उद्धघाटन किया था.
क़रीब 600 करोड़ रुपये की लागत से बनी अफगानिस्तान की संसद, भारत की तरफ से दोस्ती का उपहार थी.
और ऐसा लगता है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति…. लाइब्रेरी और अफगानिस्तान की संसद को लेकर Confuse हो गए.
वैसे ये Donald Trump की पुरानी आदत है. वो हमारे देश के डिज़ाइनर पत्रकारों और नेताओं की तरह, पूरे आत्मविश्वास के साथ झूठ और भ्रम फैलाते हैं.
The Washington Post की एक Fact Check Report में Trump की पोल पहले ही खुल चुकी है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, 20 जनवरी 2017 से 30 अक्टूबर 2018 तक Trump ने कम से कम 6 हज़ार 420 बार झूठ बोला है. यानी इस दौरान राष्ट्रपति रहते हुए 640 दिनों के कार्यकाल में Trump ने हर रोज़.. 9 झूठे दावे किए.
2019 की शुरुआत भी उन्होंने झूठ से की है. आज Zee News, Donald Trump को ये बताएगा, कि भारत ने अफगानिस्तान में कितने बड़े पैमाने पर विकास कार्य किए हैं. और अमेरिका के मुकाबले, अफगानिस्तान में भारत का योगदान कितना ज़्यादा है.
लेकिन उससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति को ये बताना भी ज़रुरी है, कि अफगानिस्तान जैसे देश में लाइब्रेरी का होना कितना आवश्यक है. क्योंकि, Trump को शायद ये नहीं पता, कि अफगानिस्तान के युवा किताब और कलम की मदद से, आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा संभाल रहे हैं.
अब हम Donald Trump के अधूरे ज्ञान में थोड़ी सी वृद्धि करते हैं. और उन्हें ये बताते हैं, कि भारत ने अफगानिस्तान में क्या-क्या किया है.
भारत का मानना है, कि अफगानिस्तान में लोगों की ज़िन्दगी तभी बदली जा सकती है, जब वहां पर विकास होगा. अंतर्राष्ट्रीय News Channel, Wion को सूत्रों से ये बात पता चली है, कि भारत, अफगानिस्तान में अपने सैनिक नहीं भेजेगा. भारत सिर्फ
UN Peacekeeping Operations के तहत ही अपने सैनिकों को किसी दूसरे देश में भेजता है. रही बात विकास कार्यों की, तो अफगानिस्तान की सरकार की ज़रुरत के मुताबिक भारत सरकार उसकी मदद करती है. और इसके लिए दोनों देश आपस में मिल बैठकर बात भी करते हैं.
Development Assistance के तहत भारत ने अफगानिस्तान को 21 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा की आर्थिक मदद दी है.
भारत Infrastructure Projects में भी अफगानिस्तान की मदद कर रहा है. वहां भारत की मदद से 218 किलोमीटर लम्बे Highway का निर्माण किया गया.
भारत की मदद से अफगानिस्तान के 11 प्रांतों में Tele-Communications Network खड़ा किया जा रहा है.
Television नेटवर्क का दायरा बढ़ाया जा रहा है.
इसके अलावा भारत, वहां के 31 प्रांतों में 116 नए Community Development Projects पर भी काम कर रहा है.
सलमा Dam के नाम से मशहूर, India-Afghanistan Friendship Dam के निर्माण में भी भारत ने बड़ी भूमिका निभाई है
1 हज़ार 930 करोड़ रुपये से ज़्यादा की लागत से बने इस Dam को बनाने के लिए भारत और अफगानिस्तान के 15 सौ Engineers ने दिन-रात मेहनत की है.
मानवीय मदद की बात करें, तो भारत प्रति महीने, अफगानिस्तान के 20 लाख बच्चों के लिए High-Protein Biscuits सप्लाई करता है.
इसके अलावा प्रति महीने, ढाई लाख Metric Tonne गेंहू भेजा जाता है.
Free Medical Consultation की सुविधा दी जाती है. और हर महीने 30 हज़ार अफगानी नागरिकों को दवाईयां दी जाती हैं.
अफगानिस्तान के साढ़े 3 हज़ार से ज़्यादा नागरिक, भारत में अलग-अलग Training Programmes का हिस्सा हैं.
Global Experts मानते हैं, कि अफगानिस्तान में भारत, जिस प्रकार के विकास कार्य कर रहा है, उनकी तारीफ होनी चाहिए. क्योंकि, किसी देश की ज़मीन पर सिर्फ सैनिक उतार देने से उस देश का भला नहीं हो सकता. बल्कि उस देश का भला तब होगा, जब वहां के बच्चे शिक्षित होंगे. जब वो देश आर्थिक रुप से तरक्की करेगा. और अपनी समस्याओं का सामना खुद कर पाएगा.
लेकिन अमेरिका को विकास की बातें समझ में नहीं आती. अमेरिका ने अपने फायदे के लिए और एशिया में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए अफगानिस्तान में सैनिक उतारे हुए हैं. और अब वो ये चाहता है, कि भारत भी अपने सैनिक वहां भेज दे. लेकिन…भारत…सकारात्मक निर्माण में यकीन करता है. विध्वंस और बर्बादी में नहीं.