शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना संपादकीय के जरिए एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना संपादकीय के जरिए एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है. अपने ताजा संपादकीय में पार्टी ने कहा है ‘हिंदुस्तान जल्द ही आर्थिक महासत्ता बननेवाला है. इस तरह की अफवाहें बीच-बीच में उड़ाई जाती रही हैं. केंद्र की सरकार किसी भी दल की हो, फिर भी आर्थिक क्षेत्र में देश का ग्राफ किस तरह तेजी से बढ़ रहा है, यह बात भुजाएं फड़काकर कहने की परंपरा ही हो गई है.’ पार्टी ने दावा किया है कि इस तथाकथित आर्थिक उन्नति का कोई भी फल आम आदमी की झोली में नहीं गिरने के कारण देश की जनता इस तरह की पटाखाबाजी करनेवालों पर तिल मात्र भी विश्वास नहीं करती, यह भी उतना ही सच है!
संपादकीय में आगे लिखा है, ‘आर्थिक विकास और देश के सर्वांगीण उन्नति का ढोल सत्ताधारी कितना ही क्यों न पीटें पर सच्चाई इसके विपरीत है. आर्थिक क्षेत्र में कार्य करनेवाली प्रतिष्ठित संस्था ‘ऑक्सफेम’ द्वारा घोषित की गई वार्षिक रिपोर्ट ने ‘सबका विकास’ दावे की पोल खोल दी है. हिंदुस्तान के अमीर और गरीब के बीच की दूरी तेजी से बढ़ रही है, यह सच्चाई दुनिया के सामने इस रिपोर्ट ने रख दी है.यह रिपोर्ट हर संवेदनशील इंसान को बेचैन करनेवाली है.’
रिपोर्ट से सामने आई अमीर गरीब की सच्चाई
शिवसेना ने लिखा है कि दुनिया के साथ-साथ हिंदुस्तान की असली तस्वीर बतानेवाली इस रिपोर्ट ने अमीर और गरीब के बीच की सच्चाई को सामने लाकर रख दिया है. लेख में आगे लिखा है, ‘हिंदुस्तान की कुल संपत्ति में से 51.53 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास है. देश के 10 प्रतिशत लोगों के पास हिंदुस्तान की कुल संपत्ति का 77.4 प्रतिशत हिस्सा है. ऐसी बात यह रिपोर्ट बताती है. इसका सीधा अर्थ ऐसा होता है कि देश के सिर्फ एक प्रतिशत अमीर लोगों की तिजोरी में देश के आधे से अधिक लोगों की संपत्ति पड़ी है. यह विषमता यहीं पर नहीं थमती.जो एक प्रतिशत धनाढ्य वर्ग है, उनकी संपत्ति में पिछले एक वर्ष में प्रतिदिन 2 हजार 200 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है. जिसके चलते साल भर में हिंदुस्तान के ये ‘कुबेर’ 39 प्रतिशत और अमीर बन गए.’
‘भयंकर विषमता लोकतंत्र की नींव को खोखला करने वाली है’
इसके विपरीत आर्थिक दृष्टि से कमजोर होनेवाली जनता की संपत्ति में सिर्फ 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ऐसा ऑक्सफेम ने कहा है. एक तरफ एक प्रतिशत अमीर और दूसरी तरफ दो वक्त का निवाला भी जिन्हें नसीब नहीं होता, इस तरह की विषम तस्वीर यह रिपोर्ट दर्शाती है. गांव में रहनेवाली, बस्तियों में जीनेवाली और शहरी झोपड़पट्टियों में जीवन व्यतीत करनेवाली गरीब जनता को रोटी के लिए तो संघर्ष करना ही पड़ता है. साथ ही बीमारी और उसके लिए जरूरी दवाओं के लिए भी उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ता है. एक प्रतिशत लोगों के पास होनेवाली असीमित संपत्ति, 26 प्रतिशत अमीरों के पास होनेवाला असीम धन और उसी देश में बची जनता के पास अनाज के लिए भी पैसे न हों, विषमता की ऐसी खाई देश में होने के बावजूद देश में सबसे बड़ा लोकतंत्र होने की डींगें हांकी जाती हैं.
‘ऑक्सफेम इंटरनेशनल’ ने इसी विषमता पर उंगली उठाई है. ‘एक ओर एक प्रतिशत धनाढ्य और दूसरी ओर शेष गरीब जनता की भयंकर विषमता हिंदुस्तान की सामाजिक रचना और लोकतंत्र की नींव को खोखला करनेवाली है.’ इस तरह की चेतावनी ही ‘ऑक्सफेम’ ने दी है. किताब में लोकतंत्र की लिखी गई व्याख्या ‘लोगों द्वारा लोगों के लिए चलाए जानेवाले जनकल्याणकारी राज्य मतलब लोकतंत्र’, कागज पर ही रहा और मुट्ठी भर लोगों द्वारा मुट्ठी भर लोगों के लिए चलाया जानेवाला राज मतलब लोकतंत्र, ऐसी बिगड़ी हुई व्याख्या सत्ताधारियों ने बना दी है, यही इसका अर्थ है.
सत्ता सिर्फ एक प्रतिशत अमीरों के लिए ही चलाई जा रही है क्या?
वैश्विक आर्थिक परिषद की पार्श्वभूमि पर प्रतिवर्ष दुनियाभर की अर्थव्यवस्था का अध्ययन कर गरीब और अमीर की विषमता पर ‘ऑक्सफेम’ अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती रहती है. इसके पहले भी इसी तरह की विषमता बार-बार सामने आई है. मगर इस विषमता को कम करने की दृष्टि से गरीबों को आर्थिक रूप से अधिक सक्षम करने के लिए किसी तरह की कोई ठोस उपाय योजना दिखाई नहीं देती. इसीलिए विषमता की यह खाई कम होने की बजाय दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है.
हिंदुस्तान का किसान मेहनतकश, बेरोजगार और निम्न मध्यमवर्गीयों की आत्महत्या की जड़ इसी विषमता में छिपी है. एक प्रतिशत धनाढ्य लोगों के पास देश से आधे लोगों से अधिक की संपत्ति और शेष देश के गरीबों के घरों में नित दरिद्रता का वास ही हिंदुस्तान की विषमता की भयानक सच्चाई ‘ऑक्सफेम’ की रिपोर्ट दर्शाती है. हिंदुस्तान की समस्त जनता को चाहिए कि इस रिपोर्ट को देखकर सत्ताधारियों से यह सवाल पूछे कि आखिर इतनी विषमता क्यों है? ‘अच्छे दिन’ तथा ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसी घोषणा इस तरह की रिपोर्ट के सामने सूखे पत्ते की तरह उड़ जाती हैं और सत्ता सिर्फ एक प्रतिशत अमीरों के लिए ही चलाई जा रही है क्या? यह जो सवाल खड़ा होता है, वो अलग से!