जींद में हो रहा उपचुनाव हरियाणा की राजनीति के कई सवालों का जवाब देगा, चौटाला की विरासत और कांग्रेस की आस
हरियाणा की जींद विधानसभा सीट पर हो रहा उपचुनाव राज्य की राजनीति से जुड़े कई सवालाें के जवाब देगा। इस उपचुनाव में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की साख, चौटाला परिवार की राजनीतिक विरासत और प्रदेश में कांग्रेस की वापसी की आस दांव लगी है। जींद के मतदाता भी इन के सवालों का जवाब देने को तैयार हैं। अब मतदान में सिर्फ पांच दिन बाकी बचे हैं और सभी दलों ने जीत हासिल करने के लिए तमाम कोशिशें तेज कर दी हैं।
जींद का रण बताएगा मतदाताओं का मिजाज, तय होगी भविष्य की राजनीति
सत्तारूढ़ भाजपा से लेकर कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी और इनेलो के तमाम रणनीतिकार किसी भी सूरत में जींद का रण जीतना चाहते हैं। जाट बाहुल्य इस सीट के चुनाव नतीजे लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के मिजाज की तरफ इशारा करेंगे।
एक लाख 70 हजार मतदाताओं वाली जींद विधानसभा सीट भले ही जाट बाहुल्य है, मगर ताज्जुब की बात यह है कि यहां से आज तक कोई जाट उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका। इस सीट से वैश्य और पंजाबी नेता ही चुनाव जीतते रहे हैं। कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला को जींद के रण में उतारकर इस मिथक को तोड़ने की रणनीति तैयार की है।
सभी राजनीतिक दलों के रणनीतिकारों ने दौड़ाए जीत के लिए घोड़े
सुरजेवाला ने जींद में ताल ठोंककर न केवल मुकाबले को रोचक बना दिया, बल्कि दूसरे दलों की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं। रणदीप को जिताने के लिए हुड्डा, तंवर, किरण, सैलजा, कुलदीप और कैप्टन अजय समेत पहली बार पूरी कांग्रेस एकजुट है। यहां तक कि एक समय सुरजेवाला के धुर विरोधी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कलायत के आजाद विधायक जयप्रकाश जेपी ने भी उन्हें अपना समर्थन दे दिया है।
दरअसल, जींद का रण सीधे तौर पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल की प्रतिष्ठा से जुड़ा है। इसलिए सत्तारूढ़ भाजपा इस रण को फतेह करने का कोई कसर नहीं छोड़ रही है। हरियाणा भाजपा के प्रभारी डाॅ. अनिल जैन ने यहां डेरा डाल लिया है। भाजपा के लोकसभा चुनाव प्रभारी कलराज मिश्र बृहस्पतिवार को जींद आ रहे हैं। सह चुनाव प्रभारी विश्वास सारंग पहले ही मोर्चा संभाल चुके हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल एक बार प्रचार कर चले गए और दूसरी बार शुक्रवार को फिर प्रचार की कमान संभालेंगे।
सीएम मनोहरलाल से नगर निगम चुनाव जैसे करिश्मे की उम्मीद
पिछले दिनों पांच राज्यों के चुनाव नतीजे भाजपा की अपेक्षा के अनुरूप नहीं आए थे। इसके बाद हरियाणा के पांच नगर निगमों के चुनाव में बड़ी ही खूबसूरती के साथ कमल खिला तो पार्टी कार्यकर्ताओं में जान आ गई। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इसका पूरा श्रेय मुख्यमंत्री मनोहरलाल को दिया। पांच निगमों के चुनाव नतीजों के तुरंत बाद हो रहे जींद उपचुनाव में भी पार्टी को ऐसे ही करिश्मे की आस मुख्यमंत्री मनोहर लाल से है। भाजपा ने इनेलो को दिवंगत विधायक डाॅ. हरिचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्ढा पर दांव खेला है।
हरियाणा के लालों में जुड़ा मनोहर लाल का नाम
अब हरियाणा की राजनीति के लालों की बात करते हैं। हरियाणा में आज तक तीन लालों देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल का दबदबा रहा है। उनके बाद हालांकि ओमप्रकाश चौटाला और भूपेंद्र हुड्डा ने भी बखूबी राज किया, लेकिन लालों की फेहरिस्त में अब मुख्यमंत्री मनोहर लाल का नाम भी जुड़ रहा है। आज देवीलाल का परिवार विरासत की जंग से जूझ रहा है।
जींद का उपचुनाव तय करने वाला है कि देवीलाल की विरासत किसकी होगी। एक समय देवीलाल ने अपनी विरासत ओमप्रकाश चौटाला को सौंपी थी, लेकिन अब ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अजय और अभय आमने-सामने हैं। चौटाला ने अपनी पार्टी इनेलो की कमान छोटे बेटे अभय चौटाला के सुपुर्द कर दी तो बड़े बेटे अजय चौटाला और पोते दुष्यंत चौटाला ने नई जननायक जनता पार्टी बना ली।
असली जंग देवीलाल की विरासत पर कब्जे की
अजय चौटाला ने अपने छोटे बेटे दिग्विजय चौटाला को जननायक जनता पार्टी से चुनाव मैदान में उतार दिया। अब दुष्यंत और दिग्विजय जींद उपचुनाव में ताल ठोंककर दादा देवीलाल की विरासत पर अपना दावा ठोंक रहे हैं। कप-प्लेट चुनाव चिह्न लेकर वह इनेलो के ऐनक चुनाव निशान के खिलाफ मैदान में हैं, जबकि इनेलो उम्मीदवार उम्मेद सिंह रेढू के लोकल होने का दावा करते हुए उन्हें जिताने तथा देवीलाल व ओमप्रकाश चौटाला की राजनीतिक विरासत पर अपना हक जताने के लिए अभय सिंह चौटाला कोई मौका नहीं चूक रहे हैं।
इनेलो व बसपा का प्रदेश में राजनीतिक गठजोड़ है। इनेलो को दलित व पिछड़े वर्ग के मतदाताओं से भी आस है। चौटाला परिवार की राजनीतिक जंग इस कदर बढ़ गई कि अब ओमप्रकाश चौटाला व उनकी पत्नी स्नेहलता ने अपने पोतों दुष्यंत व दिग्विजय तक को भला बुरा कहना शुरू कर दिया। ऐसे हालात तब बने, जब जननायक जनता पार्टी को आम आदमी पार्टी ने अपना समर्थन दे दिया।
भाजपा के बागी सांसद बढ़ा रहे मुश्किलें, जाट नेताओं से करिश्मे की उम्मीद
कुरुक्षेत्र से भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी भी जींद के रण में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। उन्होंने लोकतंत्र रक्षा पार्टी का गठन कर ब्राह्मण समुदाय के विनोद आश्री को मैदान में उतार रखा है। राजकुमार सैनी पिछड़ों की राजनीति करते हैं। उनके उम्मीदवार का सीधा नुकसान भाजपा को पहुंच रहा है। हालांकि भाजपा के पास वैश्य व पंजाबी मतों का सहारा है, लेकिन पार्टी को अपने जाट नेताओं से किसी करिश्मे की उम्मीद है। भाजपा अगले दो-तीन दिन तक पूरे जींद के भगवामय बनाने की तैयारी में हैं। महा जनसंपर्क अभियान के तहत ऐसा होगा।
कुछ गठबंधन बनेंगे तो कुछ नेताओं को मिलेगा नया ठोर
जींद के रण के चुनाव नतीजे भविष्य की राजनीति तय करेंगे। इन चुनाव नतीजों से कई नए गठबंधन बनेंगे और कुछ गठबंधन टूट या नए सिरे से जुड़ सकते हैं। कई नेता प्रदेश में ऐसे हैं, जिन्हें नए राजनीतिक ठोर की तलाश है। इस चुनाव की राजनीतिक दिशा के आधार पर यह नेता अपनी अपनी पसंद की पार्टियां चुन सकेंगे।
राज्य में अभी इनेलो व बसपा का गठबंधन है। आम आदमी पार्टी ने जननायक जनता पार्टी को समर्थन दिया है, जो अगले चुनाव में एक मजबूत रिश्ते में बदल सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा और पूर्व गृह मंत्री गोपाल कांडा समेत करीब 12 नेता ऐसे हैं, जिन्हें नए राजनीतिक ठिकाने की तलाश है।