शक्तिपीठ
हिंदू धर्म में हिंदू धर्म में शक्तिपीठों का बहुत महत्व है। दक्ष के यज्ञ में जब सती ने आत्मदाह किया तब महारुद्र ने वीरभद्र को भेजकर यज्ञ का ध्वंस करवा दिया। फिर वे सती का मृतशरीर उठा कर इधर-उधर घूमने लगे। महादेव को इस प्रकार व्यथित देख कर ब्रह्माजी के सुझाव पर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के ५१ खंड कर दिए। वे अंग जहाँ-जहाँ भी गिरे वो स्थान शक्तिपीठ कहलाया। ये पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं (सबसे अधिक पश्चिम बंगाल में)। तो आज हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि जब सती के शव को भगवान शिव अपने कंधे पर उठाकर ले जा रहे थे तो उनके अंग कहां – कहां गिरे और वहां पर कौन-कौन सी शक्तिपीठ स्थापित हुए।
- हिंगुल (पाकिस्तान): कराची से लगभग १२५ किलोमीटर उत्तर-पूर्व में हिंगलाज स्थित है। यहाँ देवी का ब्रह्मरंध्र (सिर का ऊपरी भाग) गिरा। यहाँ देवी “कोट्टरी” नाम से स्थापित हैं।
- शर्कररे (पाकिस्तान): कराची के सुक्कर स्टेशन के निकट ये मंदिर मौजूद है। हालाँकि एक अन्य मान्यता के अनुसार इसे नैनादेवी मंदिर, बिलासपुर में भी बताया जाता है। यहां देवी की आंख गिरी थी और वे “महिष मर्दिनी” कहलाती हैं।
- सुगंध (बांग्लादेश): बांग्लादेश के शिकारपुर, बरिसल से २० किमी दूर सोंध नदी के किनारे देवी की नासिका गिरी थी और उसका नाम “सुनंदा” है।
- अमरनाथ (जम्मू-कश्मीर): पहलगांव, काश्मीर के पास देवी का गला गिरा था और वे यहाँ “महामाया” के रूप में स्थापित हैं।
- ज्वाला जी (हिमाचल प्रदेश): कांगड़ा जिले में स्थित इस मंदिर में देवी की जीभ गिरी थी और उनका नाम पड़ा “सिधिदा (अंबिका)”।
- जालंधर (पंजाब): जालंधर में छावनी स्टेशन निकट देवी तलाब में उनका बांया वक्ष गिरा और वे “त्रिपुरमालिनी” नाम से स्थापित हुईं।
- अम्बाजी मंदिर (गुजरात): यहाँ देवी का हृदय गिरा था और वे “अम्बाजी” कहलाईं।
- गुजयेश्वरी (नेपाल): विश्वप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर के साथ ही गुजयेश्वरी देवी का मंदिर है जहाँ माता के दोनों घुटने गिरे बताये जाते हैं। यहाँ देवी का नाम “महाशिरा” है।
- मानस (तिब्बत): कैलाश पर्वत, मानसरोवर के निकट एक पाषाण शिला के रूप में मौजूद हैं देवी। यहाँ उनका दायाँ हाथ गिरा और वे “दाक्षायनी” कहलाईं।
- बिराज (उड़ीसा): उत्कल में देवी की नाभि गिरी और वे “विमला” बनीं।
- पोखरा (नेपाल): गंडकी नदी के तट पर मुक्तिनाथ मंदिर में देवी का मस्तक गिरा और वे “गंडकी चंडी”कहलाईं।
- बाहुल (पश्चिम बंगाल): अजेय नदी तट, केतुग्राम, कटुआ वर्धमान जिले के लगभग ८ किलोमीटर दूर “बहुला” देवी हैं जहां देवी का बायाँ हाथ गिरा था।
- उज्जनि (पश्चिम बंगाल): वर्धमान जिले के गुस्कुर स्टेशन के पास माता की दाईं कलाई गिरी और “मंगल चंद्रिका” देवी की स्थापना हुई।
- उदरपुर (त्रिपुरा): माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर राधाकिशोरपुर गाव के निकट माता का दायाँ पैर गिरा और वे देवी “त्रिपुरसुन्दरी” बनीं।
- चिट्टागौंग (बांग्लादेश): छत्राल में चंद्रनाथ पर्वत शिखर जो सीताकुण्ड स्टेशन के निकट है वहाँ देवी की दायीं भुजा गिरी और नाम पड़ा “भवानी”।
- जलपाइगुड़ी (पश्चिम बंगाल): त्रिस्रोत, सालबाढ़ी गांव, बोडा मंडल में माँ का बायाँ पैर गिरा और वे “भ्रामरी देवी” कहलाईं।
- गुवाहाटी (असम): कामगिरि, कामाख्या में नीलांचल पर्वत के निकट उनकी योनि गिरी और वे “कामाख्या देवी” के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
- खीरग्राम (पश्चिम बंगाल): वर्धमान जिले के पास माता के दायें पैर का अंगूठा गिरा और नाम मिला “जुगाड्या”।
- कोलकाता (पश्चिम बंगाल): कलकत्ता के प्रसिद्ध कालीघाट में माता के दायें पैर का अंगूठा गिरा और वे माँ “कालिका” बनीं।
- प्रयाग (उत्तर प्रदेश): संगम पर माँ के हाथ की अंगुली गिरी और वहाँ वे “ललिता” के नाम से प्रसिद्ध हुई।
- कालाजोर (बांग्लादेश): भोरभोग गांव, खासी पर्वत, जयंतिया परगना, सिल्हैट जिला में देवी की बायीं जंघा गिरी। वहाँ वे “जयंती” नाम से स्थापित है।
- मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल): किरीटकोण ग्राम में देवी का मुकुट गिरा और वे “विमला” कहलाईं।
- वाराणसी (उत्तर प्रदेश): मणिकर्णिका घाट, काशी में उनकी मणिकर्णिका गिरी और वे “विशालाक्षी (मणिकर्णी)” रूप में प्रसिद्ध हुईं।
- कन्याश्रम (तमिलनाडु): भद्रकाली मंदिर में देवी की पीठ गिरी और वे “श्रावणी” कहलाईं।
- कुरुक्षेत्र (हरियाणा): यहाँ माता की एड़ी गिरी और माता “सावित्री” का मंदिर स्थापित हुआ।
- पुष्कर (राजस्थान): मणिबंध, गायत्री पर्वत में देवी की दो पहुंचियां गिरी थीं। यहां देवी का नाम है “गायत्री”।
- जैनपुर (बांग्लादेश): श्री शैल के पास सिल्हैट टाउन में देवी का गला गिरा। यहाँ उनका नाम “महालक्ष्मी”है।
- कांची (पश्चिम बंगाल): कोपई नदी तट पर देवी की अस्थि गिरी और वे “देवगर्भ” रूप में स्थापित हुईं।
- अमरकंटक (मध्यप्रदेश): अमरकंटक में कमलाधव नाम के स्थान पर शोन नदी के किनारे एक गुफा में माँ “काली” स्थापित हैं जहां उनका बायां नितंब गिरा।
- अमरकंटक (मध्य प्रदेश): यहीं शोन्देश में उनका दायां नितंब गिरा और नर्मदा नदी का उद्गम होने के कारण देवी “नर्मदा” कहलाईं।
- चित्रकूट (उत्तर प्रदेश): रामगिरि, चित्रकूट में दायां वक्ष गिरा नाम पड़ा “शिवानी”।
- वृंदावन (उत्तर प्रदेश): भूतेश्वर महादेव मंदिर के पास उत्तर प्रदेश में दवी के केशों का गुच्छ और चूड़ामणि गिरी। वे यहां “उमा” नाम से प्रसिद्ध हुईं।
- कन्याकुमारी (तमिलनाडु): शुचि, शुचितीर्थम शिव मंदिर के पास में ऊपरी दाढ़ गिरी और नाम पड़ा “नारायणी”।
- कन्याकुमारी (तमिलनाडु): वहीं पंचसागर में उनकी निचली दाढ़ गिरी और नाम पड़ा “वाराही”।
- भवानीपुर (बांग्लादेश): यहाँ उनकी बायीं पायल गिरी और वे “अर्पण” नाम से जानी गई।
- कुर्नूल (आँध्रप्रदेश): श्रीशैलम में उनकी दायीं पायल गिरी और स्थापित हुईं देवी “श्री सुंदरी”।
- मेदिनीपुर (पश्चिम बंगाल): विभाष, तामलुक में देवी की बायीं एड़ी गिरी। यहाँ उन्हें “कपालिनी (भीमरूप)”के नाम से जाना जाता है।
- जुनागढ (गुजरात): प्रभास तीर्थ के निकट देवी “चंद्रभागा” का आमाशय गिरा।
- उज्जैन (मध्यप्रदेश): भैरव पर्वत पर क्षिप्रा नदी के किनारे देवी के ऊपरी होंठ गिरे यहां वे “अवंति” नाम से जानी जाती हैं।
- नासिक (महाराष्ट्र): जनस्थान में माता की ठोड़ी गिरी और देवी “भ्रामरी” रूप में स्थापित हुईं।
- सर्वशैल (आंध्र प्रदेश): राजमहेंद्री में उनके गाल गिरे और देवी को नाम मिला “राकिनी (विश्वेश्वरी)”।
- बिरात (राजस्थान): यहाँ उनके बायें पैर की उंगुली गिरी। देवी कहलाईं “अंबिका”।
- हुगली (पश्चिम बंगाल): रत्नावली में देवी का दायां कंघा गिरा और उनका नाम है “कुमारी”।
- मिथिला (भारत-नेपाल सीमा): यहाँ देवी का बायां कंधा गिरा था। नाम पड़ा “उमा”।
- बीरभूम (पश्चिम बंगाल): नलहाटी में पैर की हड्डी गिरी और देवी का नाम पड़ा “कलिका” देवी।
- कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश): कर्नाट में देवी के दोनों कान गिरे और नाम पड़ा “जय दुर्गा”।
- वक्रेश्वर (पश्चिम बंगाल): यहाँ भ्रूमध्य गिरा और वे कहलाईं “महिषमर्दिनी”।
- यशोर (बांग्लादेश): ईश्वरीपुर, खुलना जिला में हाथ एवं पैर गिरे और माँ कहलायी “यशोरेश्वरी”।
- अट्टहास (पश्चिम बंगाल): यहाँ माता के होठ गिरे और वे “फुल्लारा” देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
- नंदीपुर (पश्चिम बंगाल): यहाँ माता के गले का हार गिरा और वे “नंदनी” के नाम से प्रसिद्ध हुई।
- ट्रिंकोमाली (श्रीलंका): यहाँ एक मंदिर था जो पुर्तगली बमबारी में ध्वस्त हो चुका है और महज एक स्तंभ शेष है। यह प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट है। देवी की पायल यहाँ गिरी यहां वे “इंद्रक्षी” कहलाती हैं।
इन सब के अतिरिक्त एक सबसे बड़ी शक्तिपीठ हम सबके घर में विद्यमान है वह है हमारी “माँ” जिसकी सेवा, जिसका आशीर्वाद इन सब से ऊपर है। यदि हमने वह प्राप्त कर लिया तो हमें और कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है।