महागठबंधन में छोटे दलों ने बनाई बड़ी हैसियत, बेबस बने राजद-कांग्रेस
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा), हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और नवगठित विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) जैसे छोटे दलों ने महागठबंधन में बड़ी हैसियत बना ली है। इसका सबसे बड़ा कारण उन जातियों से नेतृत्व का उभरना है, जिनके बिना चुनाव में राजद और कांग्रेस की नैया पार लगनी मुश्किल है।
मुख्य रूप से ये तीनों छोटे दल कुशवाहा, अनुसूचित जाति और निषाद समुदायों का एक तरह से प्रतिनिधित्व करते हैं। देखा जाए तो प्रदेश में क्षेत्रीय दलों द्वारा पिछले तीन दशकों से की जा रही पहचान की राजनीति (आइडेंटिटी पालिटिक्स) की आंच घूम कर वापस लालू प्रसाद तक पहुंची है। इसी कारण सीट बंटवारे में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को छोटे दलों के समाने बैकफुट पर होना पड़ा है।
रणनीति के पीछे सबसे अहम वोट ट्रांसफर की क्षमता
महागठबंधन में छोटे दलों को अधिक सम्मान देने की रणनीति कितनी लाभदायक होगी, यह तो 23 मई को पता चलेगा। मगर इस दांव के पीछे वोट ट्रांसफर की क्षमता सबसे अहम है। महागठबंधन के शीर्ष नेताओं का मानना है कि अनुसूचित जाति, कुशवाहा और निषाद समुदाय में यह संदेश जाएगा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अधिक उनकी पूछ महागठबंधन में है। रालोसपा ने राजग से नाता इसी कारण तोड़ा था कि उन्हें सम्मानजनक संख्या में वहां सीटें नहीं मिल रही थीं। इससे पूर्व ‘हम’ ने भी राजग में असहज महसूस कर उससे नाता तोड़ा था। वहीं, नवगठित वीआइपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी का भी पहले झुकाव राजग की ओर ही था। राजद ने मंजूर किया कम सीटों पर लड़ना
तीनों दलों की इस चुनाव में जरूरत महसूस कर ही राजद ने खुद अपेक्षा से कम सीटों पर चुनाव लडऩा मंजूर किया। राजद भले ही अभी 19 सीटों पर चुनाव लडऩे का दावा कर रहा है, मगर तकनीकी रूप से इसके 17 प्रत्याशी ही मैदान में उतरेंगे। शेष दो पर शरद यादव और उनके सहयोगी अर्जुन राय प्रत्याशी हैं।
सूत्रों ने बताया कि पहचान की राजनीति ने विभिन्न समुदायों के बीच से निकले नेतृत्व की बड़ी हैसियत बनानी आरंभ कर दी है, और इसका एहसास राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को है। वह खुद तो सामने नहीं हैं, लेकिन तेजस्वी यादव के माध्यम से वह अपने फैसलों से महागठबंधन के नेताओं को अवगत करा रहे हैं।
कांग्रेस की सीटें भी हुईं कम
इधर, पिछला लोकसभा चुनाव राजद के साथ तालमेल में 12 सीटों पर लडऩे वाली कांग्रेस का इस बार 14 सीटों पर दावा था। मगर उसके हिस्से में मात्र नौ सीटें ही आईं। शीर्ष नेतृत्व के खगडिय़ा सीट लेने की इच्छा के बावजूद यह सीट मुकेश सहनी के खाते में चली गई। पार्टी नेतृत्व वहां से छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में प्रभारी बने चंदन यादव को प्रत्याशी बनाना चाहता था।
कांग्रेस भाजपा से नाता तोडऩे वाले कीर्ति आजाद के लिए दरभंगा की सीट भी नहीं ले पाई। कीर्ति आजाद को अब दिल्ली की किसी सीट से चुनाव लड़ाने पर विमर्श हो रहा है। वरिष्ठ नेताओं की मानें तो कांग्रेस अपनी वोट ट्रांसफर की क्षमता बढ़ाने का लगातार प्रयास कर रही है। फिलहाल इसे कुछ कदम पीछे हटना पड़ा है।