भारत और म्यांमार सेना ने उग्रवाद को उखाड़ फेंकने का लिया संकल्प, चल रहा है ‘ऑपरेशन सनराइज-2’
नॉर्थ ईस्ट सीमा से सटे बॉर्डर इलाके में भारत और म्यांमार की सेना उग्रवादियों के खिलाफ ज्वाइंट ऑपरेशन कर रही है. पिछले कुछ समय से म्यांमार सेना को इस ऑपरेशन में दिक्कत आ रही है. ‘ऑपरेशन सनराइज-2’ नाम से जारी इस ऑपरेशन में भारतीय सेना से जुड़े सूत्रों ने दावा किया है कि उन्होंने अपने इलाके में जहां 60 से ज्यादा अलग-अलग गुटों के उग्रवादियों को हिरासत में लेकर उनके कई कैंप को तबाह कर दिए हैं, वहीं म्यांमार सेना को इस ऑपरेशन में काफी नुकसान होने की खबर है.
सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक उग्रवादी गुट आराकन आर्मी के खिलाफ पिछले महीने 15 से 19 मई के ऑपरेशन में कम से कम 13 म्यांमार सैनिकों के भी मारे जाने की खबर है.
भारत म्यांमार सीमा पर नज़र रखने वाले अधिकारियों के मुताबिक 1640 किलोमीटर लम्बी सीमा पर उग्रवादियों के कई कैंप हैं. ऐसे में म्यांमार आर्मी को कई फ्रंट पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है, जिससे उनके लिए स्थितियां और जटिल होती जा रही है.
एक अधिकारी के मुताबिक, ‘रखाइन में आतंकी गुट आराकन रोहिंगिया सोलवेसन आर्मी (ARSA) लगातार म्यांमार सेना पर हमले कर रहा है, वहीं आराकन आर्मी और NSCN (K) जैसे उग्रवादी गुटो के खिलाफ भी उसे ऑपरेशन करना पड़ रहा है. म्यांमार सेना के पास इन उग्रवादी गुटों के खिलाफ लड़ने के लिए आधुनिक हथियारों की भी जरूरत है, जो अब तक उनके पास नहीं है. ऐसे में उग्रवाद की ये समस्या सिर्फ उनकी नहीं है, क्योंकि इसका असर भारत पर भी पड़ सकता है.
भारत और म्यांमार सेना ने उग्रवादी गुटो के खिलाफ ‘ऑपरेशन सनराइज’ का फर्स्ट फेज 17 फ़रवरी से 2 मार्च तक किया था, जिसमे उग्रवादी गुटों को काफी ज्यादा नुकसान हुआ था. सेना से जुड़े सूत्रों के मुताबिक आराकन आर्मी समेत कुछ और उग्रवादी गुट भारत और म्यांमार के बीच बन रहे कालादान ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट को निशाना बनाने की साजिश रच रहे हैं.
म्यांमार सेना ने आराकन आर्मी के खिलाफ काफी बड़े ऑपरेशन किये थे, लेकिन आराकन आर्मी को पुरी तरह खत्म नहीं किया जा सका है. भारतीय सेना के सूत्रों के मुताबिक भारतीय सेना ने सीमा क्रॉस न करते हुए अपने ही इलाके में आराकन आर्मी के कैंप पर कार्रवाई की थी जो कालादान प्रोजेक्ट के लिए खतरा बने हुए थे. साउथ मिजोरम के इलाके में किये गए ऑपरेशन को सेना ने बड़ी कामयाबी बताया था, लेकिन म्यांमार सेना को भारत से बड़े मदद की उम्मीद है और तभी जाकर कालादान प्रोजेक्ट की सुरक्षा पुख्ता की जा सकती है.
सुरक्षा से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक कालादान प्रोजेक्ट को आरकान आर्मी की तरफ से लगातार निशाना बनाये जाने की कोशिशें जारी है और भारत इस हालात पर
चुप नहीं बैठ सकता, क्योंकि ये प्रोजेक्ट दोनों देशों के लिए बेहद जरूरी है. आराकन आर्मी ने हमले में जिस वेसल को हमले में तबाह कर दिया था वो कालादान प्रोजेक्ट के लिए कंस्ट्रक्शन मटेरियल लेकर जा रहा था, जिसमें 300 स्टील के फ्रेम थे. इसे पेल्त्वा नदी पर इस्तेमाल होना था जो इस प्रोजेक्ट से जुड़ा हुआ है.
2008 में कालादान प्रोजेक्ट पर भारत और म्यांमार के बीच सहमती बनी थी. इस प्रोजेक्ट के पूरा हो जाने के बाद मिजोरम म्यांमार के रखाईन स्टेट के सित्व्वे पोर्ट से जुड़ जायेगा. इस प्रोजेक्ट के लिए भारत में ऐजवाल -साईंइहा नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट पर कम किया जा रहा है.