शांति और सुकून के लिए ऋषिकेश के शंकराचार्य नगर स्थित चौरासी कुटिया से बेहतर कोई स्थान नहीं…..

अगर आप शांति और सुकून की तलाश में हैं, तो ऋषिकेश के शंकराचार्य नगर स्थित चौरासी कुटिया से बेहतर कोई स्थान नहीं। वास्तु शिल्प की अद्भुत कृतियों वाले इस नगर को योग साधना और

महर्षि महेश योगी ने बीती सदी के साठ के दशक में तीर्थनगरी ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम क्षेत्र में शंकराचार्य नगर की स्थापना की थी। योग साधना और ध्यान के लिए यहां उन्होंने चौरासी कुटियों का निर्माण भी किया। 15 एकड़ परिक्षेत्र में फैले वास्तुकला की अद्भुत कृतियों वाले इस नगर से महर्षि की ख्याति क्या जुड़ी कि तीर्थनगरी विदेशी पर्यटक व साधकों के लिए योग की राजधानी बन गई। वर्ष 1980 में इस क्षेत्र के राजाजी नेशनल पार्क (अब राजाजी टाइगर रिजर्व) की सीमा में आने के बाद वर्ष 1985 में इसे बंद कर दिया गया। लिहाजा, तीन दशक तक योग-ध्यान एवं साधना का यह केंद्र भी आम लोगों की पहुंच से दूर रहा।

इन वर्षों में यह धरोहर खंडहर में तब्दील हो गई। आठ दिसंबर 2015 को राजाजी टाइगर रिजर्व ने चौरासी कुटी को नेचर ट्रेल और बर्ड वॉचिंग के लिए खोला। इसके पीछे मकसद महर्षि महेश योगी और यहां से जुड़े रहे पश्चिम के मशहूर बैंड बीटल्स ग्रुप की स्मृतियों को भी नई पहचान देना था। आज यह स्थान पर्यटन के साथ अध्यात्म का भी महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। तीर्थनगरी आने वाले विदेशी सैलानी यहां आकर अपनी जिज्ञासाएं शांत करना नहीं भूलते।

गुरु को शिष्य ने दी थी एक लाख डॉलर की धनराशि दान 

चौरासी कुटिया के निर्माण को 38 सालों के लिए लीज पर ली गई भूमि के लिए महर्षि की शिष्य अमेरिकन महिला डोरिक ड्यूक ने उन्हें एक लाख डॉलर की धनराशि दान में दी थी। यहां गुफाओं के आकार में बनी चौरासी कुटियों के बीच में ध्यान केंद्र बना हुआ है। साधकों के रहने के लिए केंद्र में 135 गुंबदनुमा कुटिया भी बनी हुई हैं। अथितियों के लिए तीन मंजिला अथिति गृह, एक बड़ा सभागार, महर्षि ध्यान विद्यापीठ और महर्षि का आवास बना हुआ है। 84 कुटियों और अन्य आवासों को गंगा नदी के छोटे पत्थरों से सजाया गया है और गुफाओं की दीवारों पर इन्ही पत्थरों से 84 योग आसनों की मुद्राएं अंकित की गई हैं।

बीटल्स ग्रुप ने दी नई पहचान 

चौरासी कुटिया महर्षि महेश योगी और भावातीत ध्यान के कारण ही नहीं, मशहूर इंग्लिश रॉक बैंड द बीटल्स के कारण भी चर्चाओं में रही। इंग्लैंड के लिवरपूल के 4 युवकों जॉन लेनन, पॉल मैक-कार्टने, रिंगो स्ट्रार्र और जॉर्ज हैरिसन ने वर्ष 1960 में इस बैंड की स्थापना की थी। 16 फरवरी 1968 को ये युवक अपनी पत्नियों और महिला मित्र के साथ पहली बार ऋषिकेश महर्षि महेश योगी के ध्यान केंद्र में आए थे। नशे के आदी ये चारों युवक नशे के जरिये शांति तलाशने यहां आए थे, लेकिन यहां महर्षि के संपर्क में आने के बाद योग और अध्यात्म के अनुभव ने उनकी जिंदगी और जीने का नजरिया ही बदल डाला।

करीब 45 दिन महर्षि के आश्रम में रहे बीटल्स से जुड़े ये चारों युवा ‘फेब फोर’ के नाम से मशहूर हुए। जिस नशे के जरिये फेब फोर शांति की खोज कर रहे थे, वही अब नशे की दुनिया छोड़ योग और अध्यात्म की दुनिया में इस कदर लीन हो गए कि यहां के शांत वातावरण में उन्होंने ‘ऊं शांति’ का जाप करते हुए 48 गीतों की रचना कर डाली। इन गीतों ने व्हाइट एलबम और ऐबी रोड नामक पाश्चात्य एलबम में जगह पाकर दुनियाभर में धूम मचाई। 80 के दशक में चौरासी कुटिया के राजाजी नेशनल पार्क के अधीन आने के कारण महर्षि महेश योगी यहां से चले गए।

फिर पुराने अंदाज में नजर आ रही धरोहर 

अब गुंबदनुमा 84 कुटियों, योग हॉल और अन्य इमारतों का उनके मूल स्वरूप और पर्यावरण से छेड़छाड़ किए बिना जीर्णोद्धार कर दिया गया है। ईको पर्यटन समिति के माध्यम से यहां योग-ध्यान की कक्षाएं भी संचालित की जा रही है। उद्देश्य है यहां आने वाले पर्यटक महर्षि महेश योगी और बीटल्स के उस दौर को उसी अंदाज में महसूस करने के साथ योग-ध्यान और साधना भी कर सकें।

आज भी दुनिया की पसंद है बीटल्स 

दुनियाभर में अपने गीतों से धूम मचा देने वाले प्रसिद्ध रॉक बैंड बीटल्स को लेकर आज भी विश्वभर की खासी रुचि है। इस ग्रुप की चौरासी कुटिया से जुड़ी 50 साल पुरानी यादों को लेकर पर्यटन विभाग की ओर से वर्ष 2018 में लंदन में आयोजित कार्यक्रम इसका प्रमाण है।

दुनिया को अनुभवातीत ध्यान से जोड़ा 

पश्चिम में जब हिप्पी संस्कृति का बोलबाला था, तब दुनियाभर में लाखों लोग महर्षि महेश योगी के दीवाने हो रहे थे। वो महर्षि महेश योगी ही थे, जिन्हें योग और ध्यान को दुनिया के कई देशों में पहुंचाने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन (अनुभवातीत ध्यान) के जरिये दुनियाभर में अपने लाखों अनुयायी बनाए थे।

महेश प्रसाद से महर्षि योगी तक का सफर 

महर्षि महेश योगी (महेश प्रसाद वर्मा) का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गांव में हुआ था। महर्षि ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की उपाधि अर्जित की। 13 वर्ष उन्होंने ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के सानिध्य में रहकर दीक्षा ली। इसी दौरान शंकराचार्य की मौजूदगी में उन्होंने रामेश्वरम में दस हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी। हिमालय क्षेत्र में दो वर्ष का मौन व्रत करने के बाद वर्ष 1955 में उन्होंने टीएम (ट्रान्सेंडैंंटल मेडिटेशन) की तकनीकी शिक्षा देने की शुरुआत की और वर्ष 1957 में टीएम आंदोलन शुरू कर विश्व के विभिन्न भागों का भ्रमण किया।

महर्षि के इस आंदोलन ने तब जोर पकड़ा, जब रॉक ग्रुप बीटल्स ने उनके आश्रम का दौरा किया। इसी के बाद महर्षि का ट्रान्सेंडैंटल मेडिटेशन पूरी पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय हुआ। उनके शिष्यों में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर आध्यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा तक शामिल रहे। महर्षि ने वेदों में निहित ज्ञान पर अनेक पुस्तकों की रचना की। अपनी शिक्षाओं एवं उपदेशों के प्रसार के लिए वह आधुनिक तकनीकों का सहारा लेते थे। उन्होंने महर्षि मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसके माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा दी जाती है। महर्षि वर्ष 1990 में हॉलैंड (नीदरलैंड) में एम्सटर्डम के पास एक छोटे-से गांव व्लोड्राप में अपनी सभी संस्थाओं का मुख्यालय बनाकर वहीं स्थायी रूप से बस गए। वहीं से वे संगठन से जुड़ी गतिविधियों का संचालन करते थे। 5 फरवरी 2008 को यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली।

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