17 वीं लोकसभा का बजट सत्र शुरू हो गया मगर अब तक कांग्रेेेस की ओर से विपक्ष में नेता और उपनेता कौन होगा?

सोमवार को 17 वीं लोकसभा का बजट सत्र शुरू हो गया मगर अब तक कांग्रेेेस की ओर से विपक्ष में नेता और उपनेता कौन होगा? ये ही तय नहीं किया जा सका है। कांग्रेस पार्टी की ओर से लोकसभा में कांग्रेस का नेता और उपनेता बनाए जाने को लेकर कुछ पर खास नामों पर चर्चा चल रही है मगर नाम फाइनल नहीं हो सके हैं। इस दौड़ में दो नाम सबसे आगे चल रहे हैं। इनमें पंजाब के गुरूदासपुर से जीतने वाले कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी शामिल हैं। दूसरा नाम तिरूवनंतपुरम से लगातार तीन बार सांसद चुने गए शशि थरूर का है। मनीष तिवारी को नेता बनाए जाने की संभावना सबसे अधिक है क्योंकि वो सांगठनिक तौर पर भी सबसे मजूबत माने जाते हैं, इसके अलावा अच्छी हिंदी बोल लेते हैं। उनकी संगठन पर पकड़ भी मजबूत है।अक्सर राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेस और कांग्रेस की ओर से सफाई देने के लिए वो ही आगे दिखते रहे हैं। दूसरी ओर शशि थरूर की संगठन में मजबूती थोड़ी हल्की है। वो हिंदी तो बोल लेते हैं मगर मनीष तिवारी से उनका मुकाबला हल्का ही है।

सोमवार को नेता सदन किसे चुना जाए को लेकर सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका की मीटिंग भी हुई। देर शाम तक नाम फाइनल हो जाने की चर्चाएं भी चलती रही। चूंकि सोनिया गांधी कांग्रेस नेता के नाम की घोषणा करने के लिए अधिकृत है, इस वजह से उनकी ओर से घोषणा का इंतजार किया जा रहा है। सोनिया गांधी भी कांग्रेस अध्यक्ष और कुछ अन्य प्रमुख नेताओं से इस पर सहमति चाहती है। दरअसल दो दिन बाद 19 जून को संसद में बैठक होनी है उसमें नेता सदन का होना जरूरी है। इस वजह से अब कांग्रेस के पास मात्र एक दिन ही बचा हुआ है। इसी में उनको नाम की घोषणा करनी है और नेताओं की मीटिंग भी बुलानी है। 

विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के साथ पश्चिम बंगाल के कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी और केरल से पार्टी के नेता के. सुरेश रविवार को सर्वदलीय बैठक में शामिल हुए थे। इससे ये अटकलें लगाई जा रही थी कि इन दोनों नेताओं में से एक को लोकसभा में कांग्रेस का नेता बनाया जा सकता है। अधीर चौधरी और के. सुरेश के साथ-साथ कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी और तिरूवनंतपुरम से लगातार तीन बार सांसद शशि थरूर भी लोकसभा में कांग्रेस के नेता पद की दौड़ में शामिल हैं। मगर इनमेें से किसी का नाम तय नहीं किया जा सका है। इससे पहले ये अंदाजा लगाया जा रहा था कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश के बाद राहुल खुद ही लोकसभा में यह जिम्मेदारी संभाल सकते हैं लेकिन उनके अध्यक्ष पद पर बने रहने के बारे में कांग्रेस के जोर देने के बाद इस पर पूरी तरह से विराम लग गया है।

विपक्ष ने 23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से अब तक कोई बैठक नहीं की है। 17 वीं लोकसभा का प्रथम सत्र 17 जून से 26 जुलाई तक चलेगा। इसी तरह से कांग्रेस पार्टी में कई मुद्दों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद से ही कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। ये तो सर्वविदित है कि कांग्रेस का मतलब सिर्फ गांधी परिवार से है और उनकी बिना मर्जी के न तो कोई पद पर आ सकता है ना ही गांधी परिवार का कोई सदस्य पद छोड़ सकता है। यदि किसी वजह से कोई प्रमुख पद पर पहुंच भी जाता है तो वो बिना गांधी परिवार को विश्वास में लिए कुछ कर नहीं सकता है। गांधी परिवार ही प्रमुख पदों पर अपने मनचाहे नेता को बिठा सकता है और हटा भी सकता है। यही कारण है कि कांग्रेस में परिवारवाद का खात्मा नहीं हो सका है ना ही निकट भविष्य में इसके आसार नजर आ रहे हैं।

आज से संसद का सत्र शुरू हो गया मगर कांग्रेस ने अभी तक यह फैसला नहीं किया है कि लोकसभा में पार्टी का नेता किन्हें नियुक्त किया जाए। यह मुद्दा अब तक शीर्ष नेतृत्व के पास लंबित है। शीर्ष नेतृत्व में सिर्फ दो नेता माने जाते हैं, उनकी सहमति के बिना कुछ नहीं होगा। जहां तक सदन में विपक्षी दलों के बीच समन्वय स्थापित करने की बात है, विपक्ष उधेड़-बुन की स्थिति में है। एक बात ये भी कही जा रही है कि अहम मुद्दों पर सरकार को घेरने की रणनीति पर चर्चा के लिए कांग्रेस की कोई बैठक नहीं हुई है। तो वो अचानक से नेता किसे नियुक्त कर दें। इसके लिए कोई तैयारी ही नहीं की गई है।

अभी तक ये भी तय नहीं हुआ है कि विपक्षी दलों की इस तरह की बैठक कब होगी। सूत्रों के अनुसार ज्यादातर विपक्षी दलों को लोकसभा में अपने नेता को लेकर फैसला करना अभी बाकी है और इन प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद एक बैठक आयोजित की जाएगी। खुद कांग्रेस ने भी इस बारे में फैसला नहीं किया है कि वह लोकसभा में अपना नेता किसे नियुक्त करेगी। पार्टी के एक नेता ने दबी जुबान से कहा कि अब तक कोई फैसला नहीं किया गया है और यह मुद्दा नेतृत्व के पास अब तक लंबित है।

एक बात ये भी कही जा रही है कि लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिले भारी जनादेश के बाद उसके सामने विपक्ष का नेता बनने को कोई तैयार नहीं हो रहा है। मोदी सरकार को तमाम मुद्दों पर घेरने के लिए विपक्षी पार्टियों के बीच अभी तक कोई समन्वय करने की कोशिश भी नहीं दिख रही है और न ही इन दलों की तरफ से आधिकारिक तौर पर अभी तक कोई बयान दिया गया है। कांग्रेस नेता पीएल पुनिया का कहना है कि अभी तो समय है, ठीक तरह से लोकसभा में 20 जून से ही काम शुरू होगा, शुरू के तीन दिन तो नव निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाने और प्रशासनिक कामों को पूरा करने में लग जाएंगे उसके बाद काम शुरू होगा। उनका मानना है कि लोकसभा में मोदी सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने के लिए विपक्ष के नेता एक मंच पर आएंगे और रणनीति तय करेंगे।

राजनीति से जुड़े लोगों का कहना है कि कांग्रेस में आज भी गांधी परिवार से इतर कुछ सोचा नहीं जा सकता है, जो भी बड़ा बदलाव या उलटफेर होगा वो उनकी रजामंदी से ही होगा। पार्टी से जुड़े जो भी बड़े नेता है वो सब किसी भी बड़े पद पर नियुक्ति में उनकी हर हाल में रजामंदी ही चाहते है। उसके बिना वो कुछ सोच भी नहीं सकते है, या यूं कह सकते है कि गांधी परिवार की सहमति या हरी झंडी दिखाए बिना कोई भी यहां पद नहीं पा सकता है।

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