क्या हम प्रलय को दे रहे हैं आमंत्रण? हिमालय से जुड़ी यह रिसर्च दे रही दहशत की दस्तक

गर्मी से बेहाल उत्तर भारतीय इन दिनों बर्फ की तलाश में पहाड़ों का रुख किए हुए हैं. लोग इतनी भारी संख्या में पहाड़ों पर पहुंच रहे हैं कि वहां इससे खतरा पैदा हो सकता है. ताजा सर्वे में दावा किया गया है कि पहाड़ों पर भीड़भाड़ बढ़ने से हिमालय (Himalayan) को नुकसान पहुंच रहा है. सर्वे में दावा किया गया है कि बढ़ते तापमान के कारण हिमालय (Himalayan) के साढ़े छह सौ ग्लेशियर पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है. एक अध्ययन में दावा किया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार दोगुनी हो गई है.

साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक 1975 से 2000 के बीच ये ग्लेशियर हर साल 10 इंच घट रहे थे, लेकिन 2000-2016 के दौरान सालाना 20 इंच तक घटने लगे. इससे करीब आठ अरब टन पानी की क्षति हो रही है.

कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थ इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने उपग्रह से लिए गए 40 साल के चित्रों को आधार बनाकर यह शोध किया है. ये चित्र अमेरिकी जासूसी उपग्रहों की ओर से लिए गए थे. सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि ये तस्वीरें भारत, चीन, नेपाल और भूटान के हिस्से में पड़ने वाले हिमालय (Himalayan) 650 ग्लेशियर की हैं. हाल ही में नेपाल सरकार ने भी हिमालय (Himalayan) के गलेशियर तेजी से पिघलने का दावा किया था.

जानकार मानते हैं कि एक तरफ हिमालय (Himalayan) तेजी से पिघल रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत सहित अन्य आसपास के देशों में तेजी से जल दोहन हो रहा है. इससे पृथ्वी में जल स्तर काफी नीचे जा रहा है. धरती पर पानी की कमी से तापमान में कमी आ रही है, जिसका सीधा असर हिमालय (Himalayan) पर पड़ रहा है. बताया जा रहा है कि हिमालय (Himalayan) के ज्यादा तेजी से पिघलने पर समुद्र के जल स्तर में विस्तार होगा, जो सीधे-सीधे मानव आबादी को प्रभावित करेंगे. यूं कहें कि धरती की पारिस्थिति तंत्र (ईको सिस्टम) में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.

हिमालय (Himalayan) पर पनप रहे घातक रोग
नेपाल सरकार ने गुरुवार को दावा किया कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर बड़ी संख्या में पर्वतारोहियों की मौत सिर्फ ‘भीड़भाड़’ होने की वजह से ही नहीं हुई है. इसके पीछे बेहद ऊंचाई पर होने वाली बीमारियां, दूसरे स्वास्थ्य कारण और प्रतिकूल मौसम भी कारक है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने माउंट एवरेस्ट पर मृतकों का आंकड़ा 11 बताया है जो इसे 2015 के बाद सबसे खतरनाक बनाता है. नेपाल पर्यटन मंत्रालय ने हालांकि मरने वालों का आंकड़ा 8 ही दिया है जबकि एक पर्वतारोही लापता बताया गया है.

पर्यटन अधिकारियों के मुताबिक इस सीजन में हिमालय (Himalayan) में कुल मिलाकर 16 पर्वतारोहियों की जान गई जबकि एक लापता है. इन 16 पर्वतारोहियों में से चार भारतीय पर्वतारोहियों की मौत 8,848 मीटर की ऊंचाई वाले माउंट एवरेस्ट पर हुई जबकि माउंट कंचनजंघा और माउंट मकालू में भी दो-दो भारतीय पर्वतारोहियों की जान गई जिससे हिमालय (Himalayan) में मरने वाले भारतीयों का आंकड़ा कुल 8 पहुंच गया.

इस वसंत में सर्वोच्च चोटी को नापने का प्रयास करने वाले अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोहियों में सबसे ज्यादा संख्या भारतीयों की थी. इस बार कुल 78 भारतीय पर्वतारोहियों को मंजूरी मिली थी.

पर्यटन विभाग के महानिदेशक डांडू राज घिमिरे ने कहा, ‘राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा माउंट एवरेस्ट पर मौतों को लेकर दी गई गलत जानकारी की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित किया गया है.’ उन्होंने कहा कि ‘भीड़भाड़’ होने से जान नहीं गईं.

‘भीड़भाड़’ तब होती है जब कई पर्वतारोहियों में एक ही समय में शिखर पर पहुंचने की होड़ रहती है और यह खास तौर पर 8000 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर खतरनाक होता है जिसे ‘डेथ जोन’ के तौर पर जाना जाता है.

‘द हिमालय (Himalayan)न टाइम्स’ की खबर के मुताबिक, विभाग का बयान ऐसे समय आया है जब पर्वतारोहियों की सुरक्षा की अनदेखी करते हुए दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने के लिये काफी ज्यादा परमिट जारी करने को लेकर उसकी तीखी आलोचना हो रही है.

घिमिरे के मुताबिक मृत पर्वतारोहियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि उनकी मौत ऊंचाई से संबंधित बीमारियों, कमजोरी या प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों की वजह से हुई.

विभाग ने बयान में कहा कि उसने 2017 में 366 परमिट जारी किये थे जबकि 2018 में 346 परमिट दिये गए थे. वहीं इस साल चढ़ाई के लिये 381 परमिट जारी किये गए थे जो तुलनात्मक रूप से काफी बड़ा अंतर नहीं है.

बयान में कहा गया, ‘इसलिये, यह असत्य है कि माउंट एवरेस्ट पर भीड़भाड़ की वजह से पर्वतारोहियों की मौत हुई और हम सभी से अनुरोध करते हैं कि गलत जानकारी के बहकावे में न आएं.’

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