कुलभूषण का PAK के आतंकी संगठन ने ईरान से किया अपहरण, ISI को सौंपा

कुलभूषण जाधव की रिहाई के संबंध में बुधवार शाम को अंतरराष्‍ट्रीय कोर्ट (ICJ) का निर्णय आने वाला है. इस केस के बारे में भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि कुलभूषण जाधव का ईरान के चाबहार से पाकिस्‍तान के एक आतंकी संगठन ने अपहरण किया था और बाद में उनको पाकिस्‍तान में ले जाकर खुफिया एजेंसी आईएसआई के हवाले कर दिया गया. सूत्रों के मुताबिक ये भी बताया कि आईएसआई ने जैश-अल अदल संगठन का इस्‍तेमाल कुलभूषण को पकड़ने के लिए किया. भारतीय एजेंसियों के पास इस बात के पर्याप्‍त सबूत हैं कि किस तरह पाक एजेंसियों ने जाधव को जासूसी के झूठे केस में फंसाया.

पाकिस्‍तान और ईरान का सीमावर्ती इलाका अस्थिर क्षेत्र माना जाता है. पाकिस्‍तान जैश अल अदल संगठन का इस्‍तेमाल ईरान के खिलाफ भी करता है. ईरानी अधिकारियों के मुताबिक इस सीमावर्ती इलाकों में होने वाली आतंकी गतिविधियों में पाकिस्‍तान का समर्थन माना जाता है. हाल में अमेरिका ने जैश अल अदल संगठन को ईरान के आतंकी संगठन जुनदुल्‍लाह से संबद्ध घोषित किया है. जुनदुल्‍लाह को अमेरिका ने वैश्विक आतंकी संगठन के रूप में खासतौर पर चिन्हित किया है.

मार्च 2016 में हुई गिरफ्तारी
पाकिस्तान ने 3 मार्च 2016 को उन्हें गिरफ्तार करने का दावा किया. पाकिस्तान का आरोप है कि कुलभूषण जाधव एक बिजनेसमैन नहीं बल्कि जासूस हैं. अप्रैल 2017 में पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट ने कुलभूषण को मौत की सजा सुनाई थी. मई 2017 में भारत में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में यह मामला उठाया.

भारत का तर्क
आठ मई, 2017 को भारत ने आईसीजे का दरवाजा खटखटाते हुए गुहार लगाई थी कि कुलभूषण के केस में पाकिस्‍तान ने 1963 की वियना संधि का उल्‍लंघन किया है. इसके तहत भारतीय नागरिक जाधव की गिरफ्तारी, पूछताछ और ट्रायल के संबंध में उनके अधिकारों को उन्‍हें वंचित किया गया. जाधव को उनकी पसंद के कानूनी काउंसल को चुनने की आजादी नहीं दी गई. उनको इस अधिकार से वंचित किया गया. पाकिस्‍तान ने 2015 में मिलिट्री कोर्ट का गठन किया था. उसके बाद से ही ये कोर्ट कई केसों में मौत की सजा सुना चुका है. मिलिट्री कोर्ट ने ही जाधव को भी मौत की सजा सुनाई थी.

इस केस में भारत को अभी तक आईसीजे में सफलता मिली है. भारत के प्रयासों का ही नतीजा है कि कुलभूषण की फांसी की सजा पर आईसीजे ने रोक लगा दी. पाकिस्‍तान ने हालांकि ये तर्क दिया था कि इसमें आईसीजे का क्षेत्राधिकार नहीं है लेकिन आईसीजे ने उसकी बात को मानने से इनकार कर दिया.

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