शिव भगवान ने पार्वती माता को सुनाई थी हरतालिका तीज की यह कथा
हर साल हरतालिका तीज का त्यौहार आता है. ऐसे में इस साल यह त्यौहार 1 सितम्बर को मनाया जाने वाला है. वहीं इस दिन सभी महिलाओं को व्रत कथा पढ़नी चाहिए और सुननी भी चाहिए क्योंकि इसे सुनकर और पढ़कर बहुत लाभ होता है और व्रत सफल हो जाता है. कहते हैं यह कथा शिवजी ने ही मां पार्वती को सुनाई थी और शिव भगवान ने इस कथा में मां पार्वती को उनका पिछला जन्म याद दिलाया था. आइए आज हम आपको बताते हैं इस व्रत की कथा.
कथा – ‘हे गौरा, पिछले जन्म में तुमने मुझे पाने के लिए बहुत छोटी उम्र में कठोर तप और घोर तपस्या की थी. तुमने ना तो कुछ खाया और ना ही पीया बस हवा और सूखे पत्ते चबाए. जला देने वाली गर्मी हो या कंपा देने वाली ठंड तुम नहीं हटीं. डटी रहीं. बारिश में भी तुमने जल नहीं पिया. तुम्हें इस हालत में देखकर तुम्हारे पिता दु:खी थे. उनको दु:खी देख कर नारदमुनि आए और कहा कि मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं. वह आपकी कन्या की से विवाह करना चाहते हैं. इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं. ‘नारदजी की बात सुनकर आपके पिता बोले अगर भगवान विष्णु यह चाहते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं. परंतु जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम दुःखी हो गईं. तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तो तुमने कहा कि मैंने सच्चे मन से भगवान् शिव का वरण किया है, किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है. मैं विचित्र धर्मसंकट में हूं. अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा.
तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी. उसने कहा-प्राण छोड़ने का यहां कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिए. भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करें. मैं तुम्हें घनघोर वन में ले चलती हूं जो साधना स्थल भी है और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी नहीं पाएंगे. मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे… तुमने ऐसा ही किया. तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए. इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं. तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया. तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुंचा और तुमसे वर मांगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा, ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूं.
यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए. तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया. उसी समय गिरिराज अपने बंधु-बांधवों के साथ तुम्हें खोजते हुए वहां पहुंचे. तुमने सारा वृतांत बताया और कहा कि मैं घर तभी जाउंगी अगर आप महादेव से मेरा विवाह करेंगे. तुम्हारे पिता मान गए औऱ उन्होने हमारा विवाह करवाया. इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मनवांछित फल देता हूं. इस पूरे प्रकरण में तुम्हारी सखी ने तुम्हारा हरण किया था इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत हो गया.