बछ बारस : साल में 4 बार आती है गोवत्स द्वादशी, जानिए पूजा की सरल विधि
27 अगस्त 2019, मंगलवार को गोवत्स द्वादशी है। यूं तो कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को भी गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे बच्छ दुआ, बछ बारस और वसु द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। अधिकांश हिस्सों में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है।
पुराणों में लिखा है बछ बारस/गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक, माघ, वैशाख और श्रावण महीनों की कृष्ण द्वादशी को होता है। कार्तिक में वत्स वंश की पूजा का विधान है। इस दिन के लिए मूंग, मोठ तथा बाजरा अंकुरित करके मध्यान्ह के समय बछड़े को सजाने का विशेष विधान है। व्रत करने वाले व्यक्ति को भी इस दिन उक्त अन्न ही खाने पड़ते हैं। हम बात करेंगे भाद्रपद मास की गो वत्स द्वादशी की… इसे बछ बारस का पर्व भी कहते हैं।
गोवत्स द्वादशी के दिन गाय माता और बछड़े की पूजा की जाती है।
क्या है गोवत्स द्वादशी
भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है। इसे और भी कर्इ नामों से जाना जाता है जैसे वन द्वादशी, वत्स द्वादशी और बछ बारस आदि। यह त्योहार संतान की कामना व उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसमें गाय-बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है।
इस दिन महिलाएं असली गाय और बछड़े की पूजा भी करती हैं। गोवत्स द्वादशी के व्रत में गाय का दूध, दही, गेहूं और चावल नहीं खाने का विधान है। इनके स्थान पर इस दिन अंकुरित मोठ, मूंग, तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है और इन्हीं से बना प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है। साथ ही चाकू द्वारा काटा गया कोई भी पदार्थ भी खाना वर्जित होता है। व्रत के दिन शाम को बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
वत्स द्वादशी पूजा विधि : कैसे करें पूजन
व्रत के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
दूध देने वाली गाय को बछड़े सहित स्नान कराएं, फिर उनको नया वस्त्र चढ़ाते हुए पुष्प अर्पित करें और तिलक करें।
कुछ जगह पर लोग गाय के सींगों को सजाते हैं और तांबे के पात्र में इत्र, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर गौ का प्रक्षालन करते हैं।
इस दिन पूजा के बाद गाय को उड़द से बना भोजन कराएं। पूजन करने के बाद वत्स द्वादशी की कथा सुनें। गो
धूलि में सारा दिन व्रत करके गौमाता की आरती करें। उसके बाद भोजन ग्रहण करें।
जो लोग इस पर्व को वन द्वादशी के रूप में मनाते हैं वे पूजा के लिए प्रात:काल स्नान करके लकड़ी के पाटे पर भीगी मिट्टी से 7 गाय, 7 बछड़े, एक तालाब और 7 ढक्कन वाले कलश बनाएं।
इसके बाद पूजा की थाली में भीगे हुए चने-मोठ, खीरा, केला, हल्दी, हरी दूर्वा, चीनी, दही, कुछ पैसे तथा चांदी का सिक्का रखें।
अब एक कलश में पानी लेकर उसमें थोड़ा कच्चा दूध मिला लें। माथे पर हल्दी का टीका लगा कर व्रत की कहानी सुनें। कथा के बाद कुल्हड़ में पानी भरकर पाटे पर चढ़ा दें और खीरा, केला, चीनी व पैसे भी चढ़ा दें।
इसके बाद एक परात को पटरे के नीचे रख कर तालाब में 7 बार लोटे में कच्चा दूध मिला जल चढ़ाएं। गाय तथा बछड़ों को हल्दी से टीका लगाएं। परात का जल, चांदी का सिक्का व दूब हाथ में लेकर चढ़ाएं। इस पटरे को धूप में रख दें और जब उसकी मिट्टी सूख जाए तो उसे किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें तथा पटरे का सामान मालिन आदि को दे दें।