लखनऊ की बेटी ने चांद पर लिखी सफलता की कहानी, बनी मिशन निदेशक

बड़े सपने देखो और उसे पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करो। सफलता की कहानी चांद पर भी लिखी जा सकती है। लखनऊ की बेटी रितु करिधल श्रीवास्तव ने इस वाक्य को जीवन में ऐसे उतारा कि आज वास्तव में उन्होंने सफलता की उड़ान चांद की ओर भर दी है। रितु चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर हैं। सफल लांचिंग के बाद इसरो की इस वरिष्ठ वैज्ञानिक के गृह नगर में जश्न का माहौल है।

रितु के भाई-बहन राजाजीपुरम स्थित पैतृक आवास में रहते हैं। भाभी विनुशी कहती हैं कि रितु ने न केवल परिवार, बल्कि देश का नाम रोशन किया है। परिवार और शहर के लिए यह समय बेहद गौरव का है। हम सभी मिशन के सफल होने की प्रार्थना कर रहे हैं।

कुछ ऐसा ही खुशनुमा माहौल लखनऊ विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग का भी है। यहां के अध्यापक अपनी इस पूर्व छात्र पर गर्व महसूस कर रहे हैं। लविवि कीं डॉ. पूनम टंडन कहती हैं, एल्यूमनाई की सफलता से सभी विद्यार्थी उत्साहित हैं। हमें उन पर गर्व है और इस बात की खुशी कि उन्होंने यहां से शिक्षा प्राप्त की और देश को चांद तक का सफर पूरा कराने में अहम रोल निभाया।

बड़े सपने देखने वालीं

रितु की शुरुआती पढ़ाई सेंट एगनिस स्कूल और नवयुग कन्या विद्यालय से हुई। इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से एमएससी की। फिर वर्ष 1997 में प्रो. मनीषा गुप्ता के अंडर में पीएचडी शुरू की। प्रो. गुप्ता बताती हैं कि वह बेहद मेधावी छात्र थीं। उनके बड़े-बड़े सपने थे, जिनके लिए बहुत मेहनत करती थीं। प्रो. गुप्ता के मुताबिक, रिसर्च को एक साल ही हुआ था कि रितु ने ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट (गेट) पास कर लिया। इसके बाद वह बंगलुरु चली गईं। अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि थी। इसलिए रितु ने इसरो ज्वाइन किया और फिर कभी कदम नहीं रुके। वह 2007 में इसरो की प्रथम युवा वैज्ञानिक चुनी गईं। विभिन्न अभियानों का हिस्सा रहीं रितु ने मंगलयान मिशन में डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर की जिम्मेदारी का निर्वाह किया।

मंगलयान अभियान में भी अहम भूमिका

पांच नवंबर, 2013 को मंगलयान उपग्रह को लांच किया गया था, जो 24 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचा था। रितु ने अभियान की सफलता के बाद कहा था कि यह मेरी और मेरी टीम की जिम्मेदारी थी कि सुनिश्चित किया जाए कि पूरी प्रक्रिया उसके तय तरीके से हो। यह पहला भारतीय उपग्रह था, जिसमें खुद की खामियों को तलाशने और उन्हें दूर करने की क्षमता थी। सबसे महत्वपूर्ण बात, महिला वैज्ञानिकों ने इस मिशन को सफल बनाने के लिए पुरुष वैज्ञानिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया।

रितु ने अपनी कामयाबी का श्रेय बड़े ही सीधे अंदाज में अपने परिवार को दिया था। उन्होंने कहा था, ‘मैं लखनऊ की एक साधारण लड़की थी, जो बाहरी अंतरिक्ष के बारे में जानने के लिए उत्सुक थी और जिसे मंगल मिशन के साथ जुड़े रहने का मौका मिला। परिवार के समर्थन के बिना महिलाएं अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकतीं। जब आपका साथी आपका समर्थन करता है, तो आप बड़ी सी बड़ी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। पति अविनाश, बेटा आदित्य और बेटी अनीषा मेरे हर प्रोजेक्ट की अहमियत को समझते हैं और यही वजह है कि मुङो उनकी चिंता नहीं करनी पड़ती।’ यहां इस बात का उल्लेख बेहद जरूरी है कि विज्ञान में पारंगत रितु का भारतीय परंपराओं में भी पूरा यकीन है। वह पूरी निष्ठा से पति की लंबी उम्र के लिए वटसावित्री का व्रत भी रखती हैं।

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