कई भूकंप झेल चुके ये भवन, वैज्ञानिक भी हैं हैरत में; 400 साल पहले कैसे किए इतने मजबूत निर्माण
गंगा-यमुना के मायके उत्तरकाशी जिले में भवन निर्माण की चौकट व पंचपुरा शैली आज भी जीवंत है। कई भूकंप त्रासदी झेल चुके इस शैली में निर्मित भवन सदियों बाद भी अपने गौरवशाली अतीत को कायम रखे हुए हैं। पुरातत्वविदों, भूकंप विज्ञानियों, यांत्रिक इंजीनियरों और इतिहासकारों के सर्वे में इन भवनों का निर्माण काल 350 वर्ष से लेकर 400 वर्ष पूर्व तक आंका गया। वैज्ञानिक भी हैरत में हैं कि आखिर साधनविहीन उस कालखंड में लोगों ने इतने मजबूत निर्माण कैसे किए होंगे।
सीमांत उत्तरकाशी जिले का क्षेत्र गंगा-यमुना घाटी के नाम से जाना जाता है। यमुना घाटी में रवांल्टा जाति का बाहुल्य होने के कारण इस क्षेत्र को रवांई घाटी भी कहा जाता है। गंगा-यमुना का उद्गम होने के कारण यहां की सभ्यताएं जितनी पुरानी हैं, उतना ही यहां का शिल्प भी। इसकी बानगी यहां पारंपरिक ढंग से बने भवनों में देखी जा सकती है। यमुना घाटी में तहसील मुख्यालय बड़कोट से 30 किमी दूर कोट बनाल गांव में घाटी का सबसे पुराना भवन स्थित है। यह भवन पांच मंजिला है, जिसे स्थानीय भाषा में पंचपुरा या चौकट भी कहते हैं।
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर में पुरातत्व विभाग के डीन रहे प्रोफेसर विनोद नौटियाल बताते हैं कि विभाग के पूर्व प्रोफेसर स्व. प्रदीप सकलानी ने नब्बे के दशक में कोटी गांव के पंचपुरा भवन का गहन सर्वे किया था। जब 1991 का भूकंप आया, तब भी वे इस घर को देखने के लिए गए। भूकंप से भी घर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था। जब उन्होंने इस भवन की कॉर्बन डेटिंग कराई तो पता चला कि यह 350 से 400 वर्ष पुराना है।
लोकगीतों में कोटी गांव के भवन का उल्लेख
प्रो.सकलानी ने अपने अध्ययन में पाया कि यमुना घाटी में इस तरह के भवन खास डिजाइन में बने हैं। इनके अंदर खाद्यान्न भंडार, मल्टी वॉचिंग टॉवर, शौचालय व भोजनालय की अलग-अलग व्यवस्था है। सकलानी लिखते हैं कि जब वर्ष 1804 में गोरखाओं ने गढ़वाल पर आक्रमण किया, तब के रवांई घाटी के लोकगीतों में कोटी गांव के इस भवन का जिक्र मिलता है।
150 गांवों में तिपुरा, दोपुरा भवन
रवांई घाटी के 150 से अधिक गांवों में इसी तरह की भवन शैली के तीन मंजिल वाले भवन (तिपुरा), दो मंजिल वाले भवन (दोपुरा) आज भी मौजूद हैं, जबकि गंगा घाटी में जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 42 किमी दूर रैथल गांव में सबसे पुराना पांच मंजिला भवन है। भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) अहमदाबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल बताते हैं कि रैथल में एक पंचपुरा भवन की कॉर्बन डेटिंग उन्होंने की थी, जिसमें यह भवन 340 वर्ष पुराना निकला। कोटगांव के भवन की कॉर्बन डेटिंग भी उन्होंने की है, जिसकी रिपोर्ट अभी आनी बाकी है।
ये बड़े भूकंप झेले इन भवनों ने
- वर्ष———–क्षेत्र
- 1720———–कुमाऊं और गढ़वाल
- 1803———–गढ़वाल
- 1991———–गढ़वाल
- 1999———–गढ़वाल
तिपुरा, पंचपुरा और चौकट शैली की विशेषता
- आसान आयताकार प्रबंधन
- ऊपरी मंजिल में विस्तृत, ठोस और उभरे हुए मंच पर निर्माण
- ऊपरी मंजिल में शौचालय और स्नानागार
- स्थानीय रूप से उपलब्ध निर्माण सामग्री का बेहतर उपयोग
- पूरे भवन पर लकड़ी के बीम का उपयोग
- हर कमरे की छत की कम ऊंचाईं
- भवन की भूकंपरोधी दीवारें
- छोटे दरवाजे, छोटी-छोटी खिड़कियां
- ऊपरी मंजिल पर बालकनी
विरासत को बचाना जरूरी
सदियों पुरानी इस विरासत को बचाने के लिए सरकार के स्तर पर अब तक कोई प्रयास नहीं हुए। कोटी गांव निवासी दिनेश रावत कहते हैं कि तिपुरा, पंचपुरा और चौकट हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के प्रतीक हैं। सरकार को शिल्प कला के इन अद्भुत घरों के संरक्षण की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। तभी भविष्य की पीढ़ियां इस विरासत को देख पाएंगी।
यह थी निर्माण शैली
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) अहमदाबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल कहते हैं कि भूकंप के लिहाज से ये भवन पूरी तरह सुरक्षित हैं। इनके निर्माण के लिए पत्थरों को तराशा गया और भवन पर लकड़ी के बीम का उपयोग बेहतर तरीके से किया गया। कुशल कारीगरी से फंसाए गए पत्थर व लकड़ी के बीच फ्लेक्सिबिलिटी उत्पन्न होने के कारण इनमें दरारें नहीं आती। दो से लेकर पांच मंजिल तक के भवनों में प्रवेश के लिए सबसे निचली मंजिल पर छोटा दरवाजा होता है। इसे स्थानीय भाषा में ‘खोली’ कहते हैं। एक मंजिल से दूसरी मंजिल में जाने के लिए अंदर ही अंदर लकड़ी की सीढ़ी होती है।
इन गांवों में हैं अधिक पुराने भवन
रैथल, झाला, बनगांव, कोटी बनाल, कोटी ठकराल, गौना, गौल, धराली, सुनारगांव, बलाड़ी, पुरोला, खलाड़ी, जखोल, लिवाड़ी, फिताड़ी, ढाटमीर, दोणी, सर, पौंटी, सरनौल, डिंगाड़ी आदि।