माइक्रो फाइनेंस में हुआ 36 फीसद का इजाफा, कर्ज की गुणवत्ता में भी आया सुधार
गरीबों को कारोबार आदि करने के लिए माइक्रो फाइनेंस संस्थानों से कर्ज मुहैया कराने में 36 फीसद का इजाफा हुआ है। इन संस्थानों को कर्ज उपलब्ध कराने में बैंकों की हिस्सेदारी भी बढ़कर 60 फीसद हो गई है। कोटक इंस्टीट्यूशनल सिक्युरिटीज की तरफ से सोमवार को जारी एक रिपोर्ट बताती है कि जिन राज्यों में पिछले वर्ष बाढ़ का प्रकोप काफी ज्यादा था उन राज्यों में एमएफआइ से कर्ज लेने पर असर पड़ा है। इसके अलावा किसी भी राज्य में एमएफआइ की तरफ से वितरित होने वाले कर्ज की रफ्तार में कोई बड़ी गिरावट नहीं आई है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि एमएफआइ की तरफ से वितरित कर्ज की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। केरल और ओडिशा में वितरित कर्ज की स्थिति ही खराब हुई है। इन दोनों राज्यों में पिछले वर्ष बाढ़ का प्रकोप हुआ था और यही वजह है कि इन राज्यों में जिन लोगों ने एमएफआइ से कर्ज लिया था उन्हें चुकाने में समस्या पैदा हुई है। बंगाल, असम और झारखंड में भी स्थिति थोड़ी कमजोर हुई है, लेकिन दक्षिणी राज्यों के मुकाबले इनकी स्थिति अभी भी काफी बेहतर है। उक्त पांचों में राज्यों में उन लोगों की संख्या बढ़ी है जो निर्धारित अवधि के एक महीने बाद तक (30 दिनों) तक कर्ज की वापसी नहीं कर पाए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक बावजूद इसके असम, बिहार, बंगाल, झारखंड में माइक्रो फाइनेंस संस्थानों की तरफ से दिए जाने कर्जे की रफ्तार में 50 से 110 फीसद तक का इजाफा हुआ है। रिपोर्ट से यह बात भी सामने आती है कि इन संस्थानों का असर ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी काफी ज्यादा है। पहली तिमाही में एमएफआइ से वितरित कर्ज में ग्रामीण क्षेत्र की हिस्सेदारी 74 फीसद है जबकि शेष हिस्सेदारी शहरी क्षेत्र की है। 87 फीसद कर्ज नकद रहित दिया गया है यानी सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर किए गए हैं।
कोटक सिक्युरिटीज और पिछले दिनों आरबीआइ की जारी रिपोर्ट बताती है कि कॉरपोरेट सेक्टर ने भले ही कर्ज लेने की रफ्तार कम कर दी हो, लेकिन कम आय वाला वर्ग अभी भी अच्छी मात्र में कर्ज ले रहा है। आरबीआइ की इस रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई, 2018 से जुलाई, 2019 के बीच बैंकों की तरफ से वितरित होने वाले एक लाख रुपये से कम राशि के कर्ज की रफ्तार 26.1 फीसद रही है।
दूसरी तरफ कॉरपोरेट सेक्टर को मिलने वाले कर्ज में महज 6 फीसद का इजाफा हुआ है। सनद रहे कि माइक्रो फाइनेंस कंपनियां बैंकों व एनबीएफसी या अन्य वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेती हैं और उसे समाज के बेहद निम्न तबके के लोगों या छोटे स्तर के कारोबार करने वालों को कर्ज देती हैं।