देश में सिंगल यूज प्लास्टिक के घातक कचरे से मुक्त करने के अभियान की शुरूआत
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयंती 02 अक्टूबर से एक साथ पूरे देश में सिंगल यूज प्लास्टिक के घातक कचरे से मुक्त करने के अभियान की शुरूआत की जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस अभियान में खुद दिलचस्पी ले रहे हैं, जिससे साफ है कि समस्या गंभीर है और सरकार इसके दुष्प्रभाव से देश को हर हाल में मुक्त कराना चाहती है। असल में कभी जीवन को आसान बनाने के लिए ईजाद किया गया प्लास्टिक आज इंसानों की जान का दुश्मन बन गया है। हवा, पानी और जमीन में मौजूद प्लास्टिक के विषैले और कैंसरकारक तत्व जीवन को दीमक की तरह चाट रहे हैं। आइये जानें प्लास्टिक किन किन रूपों में इंसान के लिए खतरा पैदा कर रहा है और कैसे इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
पेट में पहुंच रहे नौ तरह के प्लास्टिक कण
मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ विएना और एनवायरमेंट एजेंसी ऑफ ऑस्ट्रिया के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि तकरीबन नौ तरह की प्लास्टिक के कण खाने-पीने एवं अन्य तरीकों से इंसान के पेट में पहुंच रहे हैं। प्लास्टिक के ये कण लसीका तंत्र और लीवर तक पहुंच कर इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित कर सकते हैं। आंतों और पेट की बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिए तो ये प्लास्टिक और भी ज्यादा खतरनाक होते हैं। प्लास्टिक के इन कणों से कोशिकाएं तो प्रभावित होती ही हैं साथ ही इससे रक्त के प्रवाह में भी बाधा आती है। पर्यावरणविद् और जल पुरुष के नाम से प्रख्यात मैग्सेसे अवार्ड विजेता राजेंद्र सिंह के अनुसार, प्लास्टिक के साथ लेड जैसे हानिकारक तत्व पानी में घुल जाते हैं जो शरीर को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।
हर हफ्ते पांच ग्राम प्लास्टिक निगल रहा इंसान
ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूकैसल द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि हर इंसान एक हफ्ते में औसतन पांच ग्राम प्लास्टिक निगल रहा है। प्लास्टिक कचरे का एक तिहाई से अधिक हिस्सा प्रकृति में मिल जाता है, खास कर पानी में जो शरीर में प्लास्टिक पहुंचाने का सबसे बड़ा स्रोत है। नल के पानी में प्लास्टिक फाइबर पाए जाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है। भारत में 82.4 फीसद तक प्लास्टिक फाइबर पाया जाता है। यानी प्रति 500 मिली पानी में चार प्लास्टिक फाइबर मौजूद होते हैं। एक अन्य शोध के मुताबिक, हर साल एक व्यक्ति 52 हजार से ज्यादा प्लास्टिक के माइक्रो कण खाने-पानी और सांस के जरिए निगल रहा है। प्लास्टिक के जलने से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा 2030 तक तिगुनी हो जाएगी। इससे ह्रदय रोगों के बढ़ने के मामलों में तेजी आएगी।
1.27 करोड़ टन प्लास्टिक जा रहा समुद्र में
जॉर्जिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक, 41 लाख टन से 1.27 करोड़ टन के बीच प्लास्टिक हर साल समुद्र में प्रवेश करता है, जो 2025 तक दोगुना होने की उम्मीद है। यही नहीं समुद्र में 90 फीसद प्लास्टिक तो दुनिया की दस बड़ी नदियों से ही पहुंचता है। एक आकलन में कहा गया है कि समुद्रों और महासागरों में हर साल करीब 10 लाख समुद्री पक्षी और एक लाख स्तनधारी प्लास्टिक प्रदूषण के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। प्लास्टिक के मलबे से समुद्री कछुओं की दम घुटने से मौत हो रही है और व्हेल इसके जहर का शिकार हो रही हैं। प्रशांत महासागर में द ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच समुद्र में कचरे का सबसे बड़ा ठिकाना है। अनुमान है कि यहां पर 80 हजार टन से भी ज्यादा प्लास्टिक जमा है।
जल, थल और वायु तीनों हो रहे प्रदूषित
अनुमान है कि समुद्र में 1950 से 2016 के बीच के 66 वर्षों में जितना प्लास्टिक जमा हुआ है, उतना अगले केवल एक दशक में जमा हो जाएगा। इससे महासागरों में प्लास्टिक कचरा 30 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। यही नहीं हर साल उत्पादित होने वाले कुल प्लास्टिक में से महज 20 फीसद ही रिसाइकिल हो पाता है। 39 फीसदी प्लास्टिक कचरा जमीन के अंदर दबाकर नष्ट किया जाता है और 15 फीसदी जला दिया जाता है। एक अध्ययन में बारिश के पानी में भी प्लास्टिक के कणों की मौजूदगी के बारे में पता चला है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि प्लास्टिक जल, थल और वायु तीनों को प्रदूषित कर रहा है। चूंकि, प्लास्टिक में कैंसर कारक तत्व पाए जाते हैं ऐसे में आने वाले दिनों में यह समस्या महामारी का रूप ले सकती है।
सालाना 40 अरब डॉलर का नुकसान
आंकड़े बताते हैं कि 2014 में दुनिया में हर साल 31.1 करोड़ टन सालाना प्लास्टिक का उत्पादन होता था जो 2050 तक तीन गुना बढ़ जाएगा। तब वैश्विक तेल की खपत का 20 फीसदी केवल प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल होगा। एलेन मैक्आर्थर फाउंडेशन का अनुमान है कि सिंगल यूज प्लास्टिक के निर्माण की लागत और उससे निकलने हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों से दुनिया को सालाना 40 अरब डॉलर का नुकसान होता है। एक रिपोर्ट कहती है कि प्रत्येक टन प्लास्टिक के बदले हम 33 हजार डॉलर (23 लाख 74 हजार रुपए) के पर्यावरणीय मूल्य का नुकसान करते हैं। यदि भारत की बात करें तो हर रोज 2,5940 टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है जो कि यह नौ हजार एशियाई हाथियों के वजन के बराबर है। सनद रहे कि वैज्ञानिक, स्टीफन हॉकिंस ने कहा था कि जिस तरह से धरती प्रदूषित हो रही है, उसे देखते हुए इंसानों को दूसरे ग्रह पर बस्तियां बसाने के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए।
पन्नियों का इस्तेमाल बेखौफ जारी
सिंगल यूज प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग काफी खर्चीली प्रक्रिया है। यही कारण है कि इस पर बैन लगाने की पहलकदमी शुरू हो गई है। साल 1998 में सिक्किम पहला राज्य था जिसने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया था। अब करीब 20 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इस आशय का नियम बना चुके हैं, लेकिन फिर भी पॉलीथीन की पन्नियों का इस्तेमाल बेखौफ जारी है। पचास माइक्रॉन से पतली प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है। उसके बावजूद आपको यह हर जगह आसानी से बिकती नजर आ जाएगी। अभी सिंगल यूज प्लास्टिक से सड़कें बनाने की बात हो रही है लेकिन इससे समस्या खत्म नहीं होने वाली है। ऐसे में यदि नियामक और स्वैच्छिक तरीकों से इसकी रिसाइकिलिंग और रिकवरी पर जोर दिया जाए तो यह समस्या काफी हद तक सुलझ जाएगी।
इस तरह होगा समस्या का निदान
सिंगल यूज प्लास्टिक के निस्तारण में कई कंपनियां आगे आई हैं। बनयान नेशन भारत की पहली एकीकृत प्लास्टिक रिसाइकिलिंग कंपनी है जिसने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। प्लास्टिक की रिसाइक्लिंग की दिशा में यह अपनी कोशिशों के चलते 2018 का पीपुल्स च्वाइस अवार्ड जीत चुकी है। यही नहीं नीदरलैंड की कंपनी परपेचुअल पीईटी बोतलों से उच्च गुणवत्ता वाले टिकाऊ (पॉली) ईस्टर तैयार कर रही है जिससे नए बोतल बनते हैं। पानी के कारोबार से जुड़ी कंपनी एवियन ने फैसला किया है कि वह 2025 से हर बोतल रिसाइकिल प्लास्टिक से ही तैयार करेगी। यह उच्च गुणवत्ता वाले प्लास्टिक रेजिन को बनाने में कामयाब हुई है। इससे नई प्लास्टिक नहीं बनानी होगी। इसके अलावा डिकंपोज हो जाने वाली पन्नियों के उत्पादन की पहल भी हो रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले वक्त में ये कोशिशें रंग लाएंगी।