शहर के पिपलानी कटरा चौराहा पर सुराज की रसीली भाषा है इस कचालू की परिभाषा

शहर का पिपलानी कटरा चौराहा जो बनारस घराने के शास्त्रीय संगीत के कलाकारों के मुहल्ले और तरह-तरह की साइकिलों के लिए ख्यात है, वहीं आलू से बना चटपटा व्यंजन कचालू का ठेला भी सजता है। इस ठेले का संचालन करने वाले सुराज यादव की भाषा और उनका विनम्र व्यवहार खान-पान के शौकिन लोगों को उनका मुरीद बना देती है। कचालू के विक्रेता सुराज की बोली में अपनापन का भाव झलकता है जो खाने के शौकिनों को बरबस ही खींच लाता है।

लगभग 25 वर्षों से लोगों को कचालू के चटपटे व तीखे स्वाद का मुरीद बनाते आ रहे सुराज ग्राहकों से इस सलीके से आर्डर लेते हैैं कि जिसे सुनकर ग्राहकों के हंसी के फव्वारे छूट जाते हैैं। ग्राहकों के पहुंचते ही सुराज कहते हैैं कि ‘का गुरु का छुआईं, ग्राहक भी उसी अंदाज में सब छुआ दा, आउर संतुष्ट कर दा।’ फिर क्या, पत्ते पर तुरंत कचालू व सोहाल के साथ धनिया की तीखी और खट्टी चटनी के साथ परोस कर कहते हैैं ला गुरु छुआ। शाम पांच से रात आठ बजे तक पिपलानी चौराहे पर यह ठेला कचालू शौकिनों से गुलजार रहता है।

लोग खाने के साथ पैक करवाकर घर भी ले जाते हैैं। सुराज बताते हैैं कि उनके पूरे परिवार के साथ इस काम में वह आठ कर्मचारियों को भी लगा रखे हैैं। तीन घंटे की दुकानदारी के लिए कुल छह घंटे की मेहनत करनी पड़ती है जिससे अपने परिवार के साथ-साथ आठ कर्मचारियों के परिवार का भी भरण-पोषण होता है।

लोग बाइक और कार सड़क किनारे खड़ी कर ठेले पर जमे रहते हैैं और मजे की बात है कि इतनी भीड़ के बावजूद यातायात बाधित नहीं होता है। यही नहीं जो ग्राहक जल्दबाजी में रहता है उससे कहते हैं कि ‘मजा लेवे आयल हउआ त जल्दी का हव’। ठेले के साथ वह कचालू की पहुंच युवाओं तक रखने के लिए ऑनलाइन भी बेचते हैैं। इसके लिए वह कई ऑनलाइन कंपनियों से करार किए हैैं।

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