सामाजिक सरोकार में बड़ी भूमिका निभाते ‘पेपे’ रोबोट, बच्चों को सिखा रहे अच्छी आदत

ना बहुत ज्यादा तकनीकी और ना बहुत महंगे, लेकिन व्यापक प्रभाव डालने वाले छोटे रोबोट सामाजिक सरोकार के नए प्रेरणास्रोत बन रहे हैं। शोधकर्ताओं द्वारा किया गया छोटा सा प्रयास बड़ा बदलाव लेकर आ रहा है। इन छोटे-छोटे प्रयासों से निम्न- मध्यम आय वाले देशों में बीमारियों से लड़ने में मदद मिल रही है…

बच्चों को सिखा रहा हाथ धोना

ब्रिटेन और भारत के शोधकर्ताओं ने एक नए रोबोट को विकसित किया है, जो बच्चों को हाथ धोने के लिए प्रेरित करता है। ‘पेपे’ नाम के इस रोबोट को हाल ही में केरल के एक प्राथमिक विद्यालय में लगाया गया है। केरल की अमृत विश्व विद्यापीठम यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर इस रोबोट को बनाने वाले ब्रिटेन के ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के अमोल देशमुख ने बताया कि पेपे से स्कूल में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। प्राथमिक विद्यालय के किसी भी बच्चे ने अभी तक किसी रोबोट से बात नहीं की थी। यह बच्चों को बताता है कि हाथ क्यों और कैसे धोएं।

करता है आकर्षित

वायनाड के प्राथमिक स्कूल में हाथ धोने की जगह के ठीक ऊपर इस रोबोट को लगाया गया है। स्कूल में पांच से 10 साल के 100 बच्चे पढ़ते हैं। इस हरे रंग के रोबोट का आकार हाथ जैसा है और इस पर लगी स्क्रीन मुंह का काम करती है। साथ ही इस रोबोट की आंखे भी हिलती हैं। इससे बच्चों को लगता है कि रोबोट उन पर ध्यान दे रहा है। यही सोचकर बच्चे हाथ धोने पर विशेष ध्यान देने लगे हैं।

हाथ धोने की आदत में 40 फीसद की हुई बढ़ोतरी

इस रोबोट ने बच्चों को अधिक प्रभावी ढंग से हाथ होने और स्वस्थ्य रहने के लिए प्रेरित किया। इससे बच्चों में हाथ धोने की आदत 40 फीसद ज्यादा बढ़ गई।

रोजाना 1300 बच्चों की मौत

डायरिया और अन्य बीमारियों से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और वाटरएड इंडिया के अनुसार, डायरिया व संक्रमण बीमारियों से हर साल दुनियाभर में 1300 बच्चों की मौत हो जाती है, जिसमें से 320 भारत के होते हैं। हाथों की सफाई से इनसे बचा जा सकता है। पहले भी बना चुके हैं ‘सोशल रोबोट’ केरल की अमृत विश्व विद्यापीठम यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन के ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता पहले भी सामाजिक सरोकार से जुड़े रोबोट बना चुके हैं। इससे पहले उन्होंने चार पहियों का एक रोबोट बनाया था, जो कुएं से 20 लीटर पानी की बोतलें घरों तक पहुंचाता था।

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