पांडवों ने कौरवों से मांगे थे ये पांच गांव, जानिए इनके बारे में
महाभारत की पटकथा धृतराष्ट्र के नेत्रहीन होने, दुर्योधन की महत्वाकांक्षा और शकुनि के कपट से लंबे समय से लिखी जा रही थी। पांडवों और उनके सखा श्रीकृष्ण ने हमेशा युद्ध को टालने की कोशिश की। जुए में राजपाट हारने और तेरह साल के वनवास के बाद पांडवों ने सिर्फ पांच गांवों को उनको देने की मांग की थी और साथ ही यह भी कहा था कि वह हस्तिनापुर की राजगद्दी पर दावा छोड़ देंगे।
पांडवों को महाराजा धृतराष्ट्र ने राज्य के बटवारे में खांडवप्रस्थ जैसा उजाड़, अनुपजाऊ और दुर्गम क्षेत्र दिया था। पांडवों ने कड़ी मेहनत के बल पर इस क्षेत्र को उपजाऊ बनाया और आबाद किया। खांडवप्रस्थ के ही पांच गांवों को पांडवों ने वनवास से वापस आने के बाद मांगा था, जिसको देने के लिए दुर्योधन तैयार नहीं हुआ था। अब बात करते हैं उन गांवों की जिनको पांडवों ने अपने लिए मांगा था।
पानीपत को पांडवों ने कौरवों से मांगा था। इस स्थान पर भारत का इतिहास बदलने वाली तीन बड़ी लड़ाईयां लड़ी गई। जिसकी वजह से भारत के शासन में बड़ा परिवर्तन हुआ। वर्तमान में पानीपत हरियाणा में हैं और कुरुक्षेत्र के नजदीक है। यह राजधानी दिल्ली से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। महाभारत काल में पांडवों के समय इसका नाम पांडुप्रस्थ था।
सोनीपत
सोनीपत उन पांच गांवों में से एक था जिसको पांडवों ने मांगा था। इसका प्राचीन नाम सोनप्रस्थ या स्वर्णप्रस्थ था। स्वर्णपथ का अर्थ होता है ‘सोने का शहर। स्वर्णपथ का नाम बाद में सोनप्रस्थ हुआ और वर्तमान में यह सोनीपत के नाम से जाना जाता है। यह स्वर्ण यानी सोना और प्रस्थ यानी जगह से मिलकर बना है। सोनीपत भी वर्तमान में हरियाणा में है।
इंद्रप्रस्थ
इंद्रप्रस्थ को कहीं-कहीं श्रीपत भी कहा जाता है। इंद्रप्रस्थ को पांडवों ने अपनी राजधानी के रूप में आबाद किया था। पांडवों ने खांडवप्रस्थ जैसी उजाड़ जगह पर इंद्रप्रस्थ शहर बसाया था। मयासुर ने यहां पर भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर महल और किले को निर्माण किया था। वर्तमान में दिल्ली की एक जगह के नाम इंद्रप्रस्थ है, जहां पर एक पुराना किला है। माना जाता है कि पांडवों का इंद्रप्रस्थ यहां पर था।
बागपत
बागपत को पहले व्याघ्रप्रस्थ कहा जा था। व्याघ्रप्रस्थ का मतलब होता है बाघों के रहने की जगह या बाघों का आवास स्थल। मान्यता है कि पौराणिक काल में इस जगह पर बाघों की बहुतायत पाई जाती थी, इसलिए इस जगह का नाम व्याघ्रप्रस्थ पड़ा। मुगलकाल में इसका नाम बदलकर बागपत कर दिया गया, जबसे इसको बागपत के नाम से जाने जाना लगा। बागपत वर्तमान में उत्तर प्रदेश में हैं। व्याघ्रप्रस्थ में ही दुर्योधन ने पांडवों को जलाकर मारने की साजिश की थी।