पूरी दुनिया में देखने को मिलेगा ब्रेक्जिट का असर, इससे भारत भी नहीं रहेगा अछूता….
ब्रेक्जिट के पश्चात भारत पर पड़ने वाले प्रभावों और भारत-ब्रिटेन संबंधों को कुछ अन्य बिंदुओं के माध्यम से भी समझा जा सकता है। इसका असर करेंसी अस्थिरता के रूप में दिख सकता है, क्योंकि पाउंड व यूरो के अवमूल्यन की आशंका है। कुछ अर्थविशेषज्ञों के अनुसार पाउंड में 20 प्रतिशत गिरावट की आशंका है, ब्रिटेन में वृद्धि हासिल कर रही भारतीय कंपनियों को इससे खासा नुकसान हो सकता है। हालांकि भारत सरकार लघु और मध्यम अवधि में करेंसी अस्थिरता से समग्र व्यापार पर पड़ने वाला प्रभावों का आकलन कर रही है। लेकिन भारत सरकार को ब्रेक्जिट को ध्यान में रखकर ‘सिंगल-करेंसी ब्लॉक’ के साथ साथ मुक्त व्यापार पर फिर से कार्य (री-वर्क) करने जरूरत होगी।
भारत की अहमियत
ब्रेक्जिट के बाद कमोडिटी और कच्चे तेल की कीमतों के लंबे समय तक कमजोर बने रहने की संभावना है। यह स्थिति भारत के लिए अनुकूल होगी। ब्रेक्जिट के पश्चात ब्रिटेन तुलनात्मक रूप से कमजोर होगा और उसे व्यापार तथा निवेश भागीदारों की ज्यादा जरूरत होगी। उस स्थिति में भारत ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन यह स्थिति स्वयं ब्रिटेन के हित में कितनी होगी? इस संशययुक्त परिणाम से दोनों देशों के संबंध निर्देशित होंगे। ब्रेक्जिट का असर वैश्विक आर्थिक विकासदर (ग्लोबल ग्रोथ) पर भी पड़ेगा। यह कमजोर पड़ेगी लिहाजा कमोडिटी की कीमतों में गिरावट आनी चाहिए। इस स्थिति का भारत पर मिश्रित असर होना चाहिए। लेकिन ब्रेक्जिट के पश्चात भारत की टाटा ग्रुप समेत कई कंपनियों के राजस्व पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है।
गेटवे ऑफ ईयू
ब्रिटेन भारतीय कंपनियों के लिए गेटवे ऑफ ईयू की तरह रहा है। इसलिए ब्रेक्जिट भारतीय कंपनियों के लिए अल्पकालिक संकट उत्पन्न कर सकता है। वैश्विक वित्तीय बाजार में चूंकि अस्थिरता की संभावनाएं हैं जिससे दुनिया भर के बाजारों में सिकुड़न पैदा हो सकती है। चूंकि पाउंड प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी के मुकाबले कमजोर होगा जिसे मजबूती की जरूरत होगी। इसे भारत अकेले मजबूती नहीं दे सकता यानी उसे अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी होगी। सेंसेक्स एवं निफ्टी के भी इस बदलाव से शार्ट-टर्म दबावों से गुजरने की आशंका है।
‘ब्यूरोक्रेटिक रेगुलेटरी स्ट्रक्चर’
यही नहीं, ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन जटिल ‘ब्यूरोक्रेटिक रेगुलेटरी स्ट्रक्चर’ से बाहर निकल आएगा। ऐसे में भारतीय कंपनियां ब्रिटेन में एक डीरेगुलेटेड और फ्री मार्केट की उम्मीद कर सकती हैं, जो उनके लिए दीर्घकाल में लाभ लेकर आ सकता है। ब्रेक्जिट से ब्रिटेन को नए ट्रेडिंग पार्टनर, पूंजी तथा श्रम के स्नोत खोजने की जरूरत होगी। ब्रिटेन को बहुत अधिक संख्या में कुशल श्रम की आवश्यकता होगी और अंग्रेजी बोलने वाली जनसंख्या के साथ भारत के लिए यह फायदेमंद होगा। यूरोप से माइग्रेशन न होने की वजह से ब्रिटेन अन्य देशों के माइग्रेशन के लिए सक्षम होगा, जो कि भारत के हित में है।
ईयू के साथ मुक्त व्यापार समझौते की कोशिश
भारत पिछले कई वर्षो से यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने की कोशिश में लगा हुआ था। पिछले वर्ष मार्च में ब्रसेल्स में भारत और यूरोपीय संघ की शिखर वार्ता हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रियता को देखते हुए माना जा रहा था कि इस मुद्दे पर निकट भविष्य में समझौता हो सकता है। कहा जा रहा था कि यूरोपीय संघ में ब्रिटेन के रहने से इस दिशा में तेजी से प्रगति होगी। लेकिन अब जब ब्रिटेन खुद यूरोपीय संघ से निकल रहा है, तो मुक्त व्यापार समझौते का भविष्य भी अधर में लटकता दिख रहा है।