फिदेल कास्‍त्रो के 40 साल बाद क्‍यूबा को मिलेगा पहला प्रधानमंत्री

क्यूबा में 40 साल से ज्यादा समय बाद प्रधानमंत्री का पद बहाल होने जा रहा है। राष्ट्रपति मिगेल डियाज-कानेल इसी हफ्ते प्रधानमंत्री उम्मीदवार के नाम का एलान करेंगे। क्यूबा के नए संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा नामित प्रधानमंत्री उम्मीदवार के नाम पर संसद की मुहर जरूरी है। इसके लिए शुक्रवार और शनिवार को संसद सत्र बुलाया गया है। नए प्रधानमंत्री के नाम पर पूर्व राष्ट्रपति राउल कास्त्रो के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की स्वीकृति भी लेनी होगी। यह हालांकि अभी साफ नहीं है कि प्रधानमंत्री पद पर किसकी नियुक्ति होगी। लेकिन यह अनुमान लगाया जा रहा है कि राष्ट्रपति कानेल अपने पांच उपराष्ट्रपतियों या मंत्रियों में से किसी को प्रधानमंत्री पद के लिए नामित कर सकते हैं।

गत अप्रैल में अपनाए गए नए संविधान में प्रधानमंत्री पद के लिए कई मानक तय किए गए हैं। इस पद के उम्मीदवार के लिए 605 सदस्यीय नेशनल असेंबली का सदस्य होना आवश्यक है। जन्म से क्यूबा का नागरिक होने के साथ ही उसके पास किसी दूसरे देश की नागरिकता नहीं होनी चाहिए। बता दें कि साल 2013 में मिगेल डियाज-कानेल क्यूबा के उप राष्ट्रपति बने थे। इन्हें फिदेल कास्त्रो के भाई राउल कास्त्रो का दाहिना हाथ माना जाता है।

फिदेल कास्त्रो थे अंतिम पीएम 

क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो ने 1976 में राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद प्रधानमंत्री का पद खत्म कर दिया था। साम्राज्यवादी व्यवस्था के विरोधी रहे कास्त्रो ने क्यूबा में शोषण के खिलाफ लड़कर साल 1959 में कम्युनिस्ट सत्ता स्थापित की थी। वह तब से 1976 तक देश के प्रधानमंत्री थे। वर्ष 2008 तक राष्ट्रपति रहने के बाद उन्होंने यह पद अपने भाई राउल कास्त्रो को सौंप दिया था।

क्‍यूबा की क्रांति में अहम भूमिका 

फिदेल कास्त्रो का क्‍यूबा की क्रांति में सबसे अहम योगदान रहा है। वे फरवरी 1959 से दिसंंबर 1976 तक क्यूबा के प्रधानमंत्री और फिर क्यूबा के राष्ट्रपति रहे। फरवरी 2008 में स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी परेशानियों के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।  25 नवंबर 2016 को उनका निधन हुआ था। क्‍यूबा के अमीर परिवार से ताल्‍लुक रखने वाले फिदेल ने कानून की डिग्री हासिल की थी। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हवाना विश्वविद्यालय से हुई थी। 

अमेरिका के आलोचक 

फिदेल कास्‍त्रो अमेरिका और बतिस्ता शासन के सबसे बड़े आलोचक थे। क्‍यूबा से बतिस्‍ता शासन को हटाने के लिए उन्‍होंने लोगों को अपने साथ संगठित किया। इसके लिए मैक्सिको तक गए। उन्‍होंने ही 1953 में मोंकाडा बैरकों पर हुए हमले का असफल नेतृत्‍व किया था, जिसमें वह गिरफ्तार कर लिए गए और फिर उनपर मुकदमा भी चला था। मामले में बरी होने के बाद वे मैक्सिको चले गए। यहां से वे दिसंबर 1956 में स्‍वदेश वापस लौटे।फरवरी 1959 से दिसंबर 1976 तक वे क्‍यूबा के प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद वे राष्‍ट्रपति बने और इस पद पर वे फरवरी 2008 तक रहे थे। 19 फरवरी 2008 को उन्होंने घोषणा की थी कि वे फिर से राष्ट्रपति और कमांडर इन चीफ नहीं बने रहना चाहते हैं। 

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