ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव कई दूसरे देशों के लिए साबित हो सकता है नुकसानदेह
मिडिल ईस्ट एक बार फिर बुरी तरह से अस्थिर होता दिखाई दे रहा है। इसकी वजह अमेरिका द्वार ईरानियन रिवोल्यूशनरी गार्ड के मेजर जनरल और कमांडर कासिम सुलेमानी को मार गिराना है, जिसने यहां के हालात बद से बदतर कर दिए हैं। अमेरिका-ईरान में बीते वर्ष जो तनाव पैदा हुआ था वह नए साल में ऐसी करवट लेगा इस बारे में किसी ने नहीं सोचा था। आलम ये है कि मिडिल ईस्ट में एक बार फिर गल्फ वार जैसे हालात पैदा हो गए हैं। जानकार मानते हैं कि यदि लंबे समय तक यही तनाव कायम रहा तो यह स्थिति न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई दूसरे बड़े देशों के लिए भी काफी बुरी होगी। मिडिल ईस्ट में फैले इस तनाव के मुद्दे पर दैनिक जागरण ने विदेश मामलों के जानकार ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन प्रोफेसर हर्ष वी पंत से बात की।
ईरान करेगा जवाबी कार्रवाई
प्रोफेसर पंत का कहना है कि अमेरिका द्वारा की गई कार्रवाई के बाद ईरान की सरकार पर जवाबी कार्रवाई को लेकर दबाव बढ़ गया है। उनके मुताबिक ईरान आगामी दिनों में कार्रवाई तो करेगा लेकिन अमेरिका के खिलाफ सीधी लड़ाई में उतरने से वह बचेगा। ईरान न तो इसके काबिल है और न ही इसके लिए तैयार। पंत की मानें तो ईरान जवाबी कार्रवाई करने से पहले इस बारे में भी जरूर विचार करेगा कि यह हमला होमलैंड पर किया जाए या फिर अमेरिका के दूसरे समर्थकों या मित्र सेनाओं पर। इसमें ज्यादा संभावना मित्र सेनाओं पर हमले की है।अमेरिका ने ईरान पर हमला कर ये बता दिया है कि वह जो चाहे कर सकता है। हालांकि वह ये नहीं मानते हैं कि इस बार हालात खाड़ी युद्ध की तरह खराब होंगे, लेकिन वो इतना जरूर मानते हैं कि यह एक सीमित दायरे का युद्ध जरूर होगा। इसका असर भी व्यापक होगा।
नया युद्ध क्षेत्र बना इराक
जहां तक इराक की बात है तो अमेरिका और ईरान के बीच वह एक नया युद्ध क्षेत्र बन गया है। इस लिहाज से उसके ऊपर काफी दबाव है। इस दबाव से बाहर आना उसके लिए चुनौतीपूर्ण है। आपको बता दें कि इराक में इन दिनों सब कुछ सामान्य नहीं है। सरकार के खिलाफ लगातार वहां पर विरोध-प्रदर्शन हो रहा है। वहीं शिया और सुन्नी के मसले पर भी जबरदस्त तनाव है। कहा जा सकता है कि इराक एक बार फिर से वही दबाव झेल रहा है जो उसने खाड़ी युद्ध में सद्दाम की मौत के बाद झेला था। वहीं दूसरी तरफ ईरान की यदि बात की जाए तो उसकी अर्थव्यवस्था की हालत काफी खराब है। ईरान में डेमोक्रेट्स इस वक्त लीडिंग रोल में है और रिफॉर्मिस्ट काफी दबाव में है।
गलत साबित हुई धारणा
गौरतलब है कि दो दिन पहले ही इराक स्थित अमेरिकी दूतावास पर हमला हुआ था वहीं इससे पहले भी कई ऐसे वाकये सामने आए हैं जिसकी वजह से लगातार ये बात सामने आ रही थी कि अमेरिका ईरान के सामने कमजोर पड़ रहा है। ऐसा इसलिए था क्योंकि अमेरिका ईरान को जवाब नहीं दे रहा था। लेकिन अमेरिका के हालिया हमले ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। प्रोफेसर पंत का मानना है कि मिडिल ईस्ट का तनाव जल्द खत्म होने वाला नहीं है। उनके मुताबिक कम से कम छह माह तक ये तनाव कम नहीं होने वाला है।
यूरोपीय देश नहीं कर पाएंगे तनाव कम
इस तनाव के कम न होने की वजह एक ये भी है कि इसमें अमेरिका-ईरान के बीच हुई परमाणु डील में शामिल देश भी कुछ नहीं कर सकेंगे। अब ये मामला काफी आगे निकल गया है। दोनों देश अब आमने सामने हैं, ऐसे में कोई भी तीसरा देश इस तनाव को कम करने को मध्यस्थता की स्थिति में फिलहाल नहीं है। पंत का कहना है कि मौजूदा हालात में अमेरिका ने पहली बार सीधे ईरान को निशाना बनाया है। इससे पहले वो ईरानी समर्थक जिसमें आतंकी ग्रुप शामिल थे, को निशाना बना रहा था। वर्तमान में जो हालात बनें हैं उसमें ईरान को जवाब देना जरूरी होगा, लिहाजा हालात का बिगड़ना तय है।
खराब हुए हालात तो होगी मुश्किल
वर्तमान हालात के भारत और अन्य देशों पर पड़ने वाले असर के बाबत पंत का कहना था कि यदि हालात लंबे समय तक ऐसे ही रहते हैं तो यह भारत ही नहीं चीन के लिए भी खराब होगा। लंबे समय तक यूं ही हालात बरकरार रहने पर तेल आपूर्ति निश्चिततौर पर प्रभावित होगी और वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें भी बढ़ेंगी। चीन और भारत दोनों के लिए ही यह स्थिति सही नहीं होगी। यही वजह है कि भारत हमेशा ही क्षेत्र की स्थिरता को बेहद जरूरी मानता आया है। वहीं अमेरिका के लिए यह हालात काफी पॉजीटिव हैं। इसकी वजह है कि अमेरिका अब उस मात्रा में तेल नहीं खरीदता है जो गल्फ वार से पहले था। यहां पर एक बात और गौर करने वाली ये भी है है कि जिस तर्ज पर अमेरिका ने ईरान पर हमला किया है यह काबलियत अन्य देशों में नहीं है।