जनरल रावत को केंद्र ने सीडीएस का पद सौंप दी सबसे बड़ी जिम्मेदारी, जानें क्यों सरकार ने जताया भरोसा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान लालकिले की प्राचीर से जब थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बीच तालमेल सुनिश्चित करने और उन्हें प्रभावी नेतृत्व देने के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के पद का एलान किया था, तभी से सबकी निगाहें इस बात पर थीं कि इस पद पर पहला मौका किसे मिलेगा।
साल के अंतिम हफ्ते में यह लगभग साफ हो गया था कि यह पद तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को मिलेगा और 30 दिसंबर को आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि भी कर दी गई। नए साल के पहले दिन उन्होंने सीडीएस के तौर पर कार्य भी संभाल लिया। सबसे बड़ी बात यह है कि जनरल रावत पर सरकार को इतना भरोसा है कि उसने 30 दिसंबर को ही सीडीएस पद के लिए सेना के नियमों में संशोधन कर उम्र की सीमा को बढ़ाकर 65 साल करने का फैसला किया।
पिता से रहे हैं प्रभावित
जनरल बिपिन रावत बचपन से ही पिता लक्ष्मण सिंह रावत से काफी प्रभावित थे। सेना में उच्च पद पर कार्यरत उनके पिता का रौब, अनुशासन और देशभक्ति का जज्बा हर वक्त उन्हें सेना में जाने के लिए आकर्षित करता था। यही वजह रही कि उन्होंने 12वीं की पढ़ाई के बाद एनडीए (नेशनल डिफेंस एकेडमी) की परीक्षा दी और सफलता हासिल की। रावत गोरखा ब्रिगेड में कमीशन पाकर सेना प्रमुख के पद तक पहुंचने वाले पांचवें अफसर हैं।
शुरुआत से ही रहे अव्वल
16 मार्च, 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जन्मे बिपिन रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत लेफ्टिनेंट जनरल पद से सेवानिवृत हुए। कैंब्रियन हॉल स्कूल, देहरादून और सेंट एडवर्ड स्कूल, शिमला से स्कूली शिक्षा के बाद बिपिन रावत एनडीए की परीक्षा में सफलता हासिल करने के बाद इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून पहुंचे। वहां उन्होंने स्वॉर्ड ऑफ ऑनर पाने में कामयाबी पाई। इसके बाद उन्होंने डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन से स्नातक किया। उन्हें 16 दिसंबर, 1978 को 11 गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में कमीशन मिला। उनके पिता भी इसी बटालियन से संबद्ध रहे थे।
चुनौतियों की है जानकारी
मेजर के तौर पर उन्होंने उड़ी (जम्मू-कश्मीर) में एक कंपनी का नेतृत्व किया। कर्नल के तौर पर उन्होंने अपनी बटालियन का पूर्वी क्षेत्र में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के समीप नेतृत्व किया। इसके बाद बतौर ब्रिगेडियर उन्होंने राष्ट्रीय राइफल्स की पांच सेक्टरों का सोपोर में अगुआई की। वह दो बार डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड के मुखिया भी रह चुके हैं। जनरल रावत को अशांत इलाकों में काम करने का लंबा अनुभव है। सेना के पुनर्गठन, पश्चिमी इलाकों में आतंकवाद और पूवरेत्तर में जारी संघर्ष को जनरल रावत से बेहद करीब से देखा है।
हासिल कर चुके हैं कई मेडल
40 वर्षो से अधिक के कार्यकाल के दौरान जनरल बिपिन रावत परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, सेना मेडल, विशिष्ट सेवा मेडल और दो बार थलसेना प्रमुख व एक बार थलसेना कमांडर से प्रशंसा हासिल कर चुके हैं।
सरकार की भी पसंद
जनरल बिपिन रावत शुरू से ही केंद्र सरकार को पसंद रहे हैं। दिसंबर, 2016 में जब उन्हें सेना प्रमुख का कार्यभार सौंपा गया था तब सरकार ने उनसे वरिष्ठ दो अफसरों के दावों को खारिज कर दिया था। अब जब सीडीएस पद के लिए उम्र की बाधा सामने आई तो रक्षा मंत्रलय ने अधिसूचना जारी कर उम्र सीमा को बढ़ाकर 65 साल कर दिया।
लीक से हटकर सोचने वाले सैन्य अफसर
जनरल बिपिन रावत को देश की सुरक्षा व्यवस्था और सेना के समक्ष मौजूद चुनौतियों की जानकारी है। कई मोर्चो को संभालने के कारण वह यह भी जानते हैं कि संसाधनों की कमी के बीच सैनिकों को अपनी जिम्मेदारी निभाने में कितनी परेशानी आती हैं। उनकी सफलता का सबसे बड़ा राज यह है कि वे चीजों को एकपक्षीय नजरिये से नहीं देखते। वह हमेशा लीक से हटकर सोचते हैं और नया करने की कोशिश करते हैं। सेना प्रमुख रहते हुए वह सैन्य अधिकारियों को मिलने वाली सुविधाओं पर भी आपत्ति जता चुके हैं। उनका मानना है कि सेना और आम लोगों के बीच मेलजोल बढ़ना चाहिए, तभी ये एक-दूसरे के बारे में बेहतर समझ विकसित कर सकेंगे।
राष्ट्रीय सुरक्षा और नेतृत्व पर लिख चुके हैं कई लेख
जनरल बिपिन रावत ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ और ‘नेतृत्व’ पर कई लेख लिख चुके हैं जो विभिन्न पत्रिकाओं और प्रकाशनों में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से रक्षा अध्ययन में एमफिल की डिग्री हासिल की है। सैन्य मीडिया रणनीतिक अध्ययन पर शोध पूरा करने पर 2011 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ से उन्हें डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसफी (पीएचडी) से की उपाधि भी मिल चुकी है।