साध्वी पद्मावती की जिद, प्राण भले जाए, नहीं टूटेगा गंगा रक्षा का संकल्प
23 वर्षीय पद्मावती को गंगा रक्षा के निमित्त अन्न त्यागे 37 दिन हो गए हैं। वजन तेजी से घट रहा है। स्वास्थ्य गिर रहा है। लेकिन संकल्प अटूट है। उनकी मांग है कि गंगा के उद्धार को ठोस कदम उठाए जाएं ताकि गंगा की धार अविरल हो जाए। बावजूद इसके कि केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना- नमामि गंगे अपना निर्धारित समय पूर्ण कर चुकी है, किंतु गंगा की स्थिति में संतोषजनक सुधार नहीं हुआ है। लिहाजा, पद्मावती यह सुनिश्चित किए जाने की जिद पकडे़ हुए हैं कि ये सुधार कागजों पर नहीं, यथार्थ में नजर आने चाहिए। यह युवा साध्वी बीते 15 दिसंबर को हरिद्वार स्थित मातृसदन में आमरण अनशन पर बैठी थी।
साध्वी का कहना है कि यह संकल्प के साथ किया जा रहा एक तप है, जो संकल्प पूरा होने तक किसी भी हाल में नहीं टूटेगा, भले ही प्राण चले जाएं। कहती हैं, किसी आश्वासन नहीं, बल्कि सरकार की ओर से गंगा रक्षा के लिए ठोस कार्रवाई होने पर ही अन्न ग्रहण करेंगी, भले ही इसके लिए मुझे स्वामी निगमानंद और स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रो. जीडी अग्रवाल) की तरह प्राणों की आहुति ही क्यों न देनी पड़े…।
नालंदा, बिहार के सरमेरा प्रखंड स्थित बड़ी मलावां गांव निवासी सुलेखा ने 2018 में घर छोड़ हरिद्वार का रुख किया और अप्रैल 2019 में संन्यास दीक्षा लेकर साध्वी पद्मावती बनीं। उन्होंने राजनीति विज्ञान, दर्शन शास्त्र और इतिहास विषय से स्नातक किया है। बचपन से ही वह स्वामी रामकृष्ण परमहंस से प्रभावित हैं। अपने माता-पिता के साथ विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती रहती थीं। इसी अवधि में बिंद के रामकृष्ण भावाश्रम में एक ध्यान शिविर के दौरान स्वामी अरुण से उनकी मुलाकात हुई। स्वामी अरुण से ही उन्होंने स्वामी शिवानंद सरस्वती के बारे में जाना और तभी ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया। वर्ष 2009 में उनका अपने गांव की साध्वी ललिता मां से संपर्क हुआ, जो हरिद्वार के मातृसदन आश्रम से जुड़ी हुई थीं। आश्रम से जुड़ने के बाद उन्होंने संन्यास की राह पकड़ी।
पद्मावती बताती हैं, यहां आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद का सानिध्य मिला तो गंगा के लिए कुछ कर गुजरने की लालसा मन में जागी। हालांकि तब मन के भावों को स्वामी शिवानंद के सामने व्यक्त नहीं कर सकीं। लेकिन उनके सानिध्य में गंगा की उत्पत्ति, धार्मिक-सामाजिक महत्ता और दशा-दिशा पर चर्चा कर अपनी जिज्ञासाएं जरूर शांत करती। बकौल पद्मावती, वर्ष 2018 की गर्मियों में एक दोपहर भोजन के बाद मैंने स्वामी सानंद से प्रश्न किया कि उन्हें गंगा रक्षा को इतनी ऊर्जा और प्रेरणा कहां से मिलती है। स्वामी सानंद का जवाब था, समय आने पर तुम्हें भी यह शक्ति, ऊर्जा और प्रेरणा हासिल हो जाएगी। उनका कहा सच होने लगा और मेरी भी गंगा में आस्थाबढ़ने लगी।
इस बीच 11 अक्टूबर को स्वामी सानंद के अचानक देह त्यागने की घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। क्योंकि एम्स में भर्ती होने से पहले उन्होंने मुझसे जल्द मिलने का वादा किया था। लेकिन उनके अचानक यूं चले जाने की घटना ने मुझे उनके अधूरे काम को, गंगा रक्षा को तप करने की हिम्मत प्रदान की। मैं उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहती थी, लेकिन 24 अक्टूबर को स्वामी शिवानंद की प्रेरणा से गंगा रक्षा के निमित्त ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद के तपस्या पर बैठ जाने से तब यह मुराद पूरी नहीं हो पाई। अब मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है तो शरीर में प्राण रहते तक इस संकल्प को टूटने नहीं दूंगी…।
साध्वी पद्मावती बताती हैं कि चार मई 2019 को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्र मातृसदन पहुंचे। उन्होंने 15 दिनों के भीतर ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद की सभी मांगें मान लेने का भरोसा दिलाते हुए उनसे तप खत्म करने का आग्रह किया। आत्मबोधानंद तो मान गए, लेकिन उनके मन में गंगा रक्षा को तप करने का विचार प्रबल हो गया। सो, उन्होंने हिम्मत जुटाकर स्वामी शिवानंद से एनएमसीजी के वादा खिलाफी करने पर अगली तपस्या खुद करने की अनुमति ले ली। ऐसा ही हुआ भी और एनएमसीजी महानिदेशक के अपने वादे से मुकर जाने पर उन्होंने 15 दिसंबर से छह सूत्री मांगों को लेकर मातृसदन में तप शुरू कर दिया।
साध्वी पद्मावती बताती हैं कि 14 अप्रैल 2019 को उन्होंने स्वामी शिवानंद से ज्ञान दीक्षा (संन्यास) ग्रहण कर अध्यात्म सेवा को जीवन अर्पित कर दिया। हालांकि तब उनकी माता मनोरमा देवी व पिता संत कुमार ने मातृसदन पहुंचकर लोक-लाज व घर-परिवार का वास्ता देकर उन्हें घर ले जाने का प्रयास किया। लेकिन पद्मावती के दृढ़ निश्चिय के आगे उनकी एक न चली।
यह है पद्मावती की छह सूत्रीय मांग
- गंगा पर निर्माणाधीन व प्रस्तावित सभी बांधों को निरस्त किया जाए।
- गंगा पर बन चुके बांधों से गंगा में प्राकृतिक प्रवाह को दुरुस्त रखने के लिए ई-फ्लो (पर्यावरण प्रवाह) की ठोस व्यवस्था बनाई जाए। हरिद्वार भी इसमें शामिल हो।
- गंगा में खनन से संबंधित एनजीटी के आदेशों का अक्षरश: पालन करने को नोटिफिकेशन जारी हो।
- गंगा एक्ट के लिए सरकार राष्ट्रीय स्तर पर विस्तृत चर्चा करे और इसमें मातृसदन समेत अन्य गंगा प्रेमियों को भी शामिल किया जाए।
- एनजीटी के जज राघवेंद्र राठौर को गंगाद्रोही घोषित कर उन्हें निलंबित किया जाए और मातृसदन की शिकायतों का संज्ञान लेते हुए इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए।
- हरिद्वार एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णराज. एस को निलंबित कर उनकी जांच की जाए।
पद्मावती के प्राण गए तो दूसरा संत बैठेगा अनशन पर…
साध्वी पद्मावती का सोमवार को स्वास्थ्य परीक्षण किया गया, जिसमें उनका वजन तीन किलो कम होना पाया गया है। अनशन करते हुए साध्वी को 37 दिन हो गए हैं। जिला प्रशासन के साध्वी से अनशन खत्म करने के अनुरोध पर मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद का कहना है कि यदि जिला प्रशासन को चिंता है तो साध्वी की मांगें पूरी करें और उसके बाद ही अनशन तुड़वाएं, क्योंकि पद्मावती का संकल्प अटूट है और वह नहीं चाहतीं कि संकल्प टूटे। अत: अनशन जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन तब सुध लेता है, जब अनशनकारी की हालत बिगड़ जाती है। यदि पद्मावती के प्राण चले जाएंगे तो मातृसदन आश्रम के अन्य संत गंगा रक्षा की मांग को लेकर अनशन पर बैठेंगे। हम इस संकल्प को टूटने नहीं देंगे।
पद्मावती का जन्म नालंदा जिले के मलावां गांव निवासी मनोरमा देवी और संत कुमार के घर 25 दिसंबर 1996 को हुआ। उनकी मां गृहणी, जबकि पिता मिडिल स्कूल में प्रधानाध्यापक हैं।
माता-पिता स्वामी रामकृष्ण परमहंस से काफी प्रभावित थे। सो, उनके साथ बिंद के भावाश्रम से भी जुड़ाव हो गया। यहीं वर्ष 2008 में उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ब्रह्मचर्य का संकल्प लिया।
2014 में नालंदा के उच्च विद्यालय बिंद से हाईस्कूल और वर्ष 2016 में नालंदा के ही महिला कॉलेज से इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वर्ष 2018 में नालंदा कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली।