अफगानिस्तान में शांति को लेकर 29 फरवरी को तालिबान और अमेरिका के हो सकता है बीच एक समझौता
अफगानिस्तान में तालिबान और अमेरिका के बीच होने वाले समझौते से पहले आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट काफी चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में अफगानिस्तान में संघर्ष के दौरान 3,400 से अधिक नागरिकों की मौत हुई है। अफगानिस्तान में मौजूद संयुक्त राष्ट्र के सहायता मिशन के मुताबिक इस दौरान 6,989 लोग घायल हुए। यह आंकड़ा इसलिए भी खास और हैरान-परेशान करने वाला है क्योंकि लगातार छह वर्षों से यहां पर इस तरह के संघर्षों में मारे गए लोगों की संख्या 10 हजार के पार रही है।
हालांकि यह आंकड़ा वर्ष 2018 की तुलना में मारे गए लोगों की संख्या से जरूर कम है, लेकिन इसके बावजूद चिंता अपनी जगह बरकरार और जायज है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दो दिवसीय दौरे पर भारत आए हुए हैं। इसके अलावा ट्रंप ने भारत दौरे के समय अहमदाबाद में जो संबोधन दिया उसमें इस समूचे क्षेत्र की शांति और स्थिरता की भी बात कही थी। साथ ही उन्होंने पाकिस्तान में जड़ें जमा चुके आतंकवाद को भी खत्म करने की अपनी प्रतिबद्धत्ता दोहराई थी।
इसके अलावा 29 फरवरी को तालिबान और अमेरिका के बीच समझौते पर मुहर लग सकती है। दोनों पक्षों के बीच इसको लेकर पिछले 18 महीनों से बातचीत चल रही है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस शांति समझौते से तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के बीच बातचीत का मार्ग प्रशस्त होगा। लेकिन इस समझौते से पहले जो समझौता सात दिनों के लिए लागू हुआ था उसको भी तालिबान ने सही से अमल में नहीं लाया है। इसका जीता जागता सुबूत अफगानिस्तान में एक रविवार-सोमवार को आठ जगहों पर तालिबान और अफगान सुरक्षा बलों के बीच झड़पें हैं।
आपको यहां पर ये भी बता दें कि अफगानिस्तान बीते दो दशकों से आतंकवाद और युद्ध की मार झेल रहा है।गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र के सहायता मिशन ने अफगानिस्तान में वर्ष 2009 में काम करना शुरू किया था और यहां पर हताहत और मारे गए नागरिकों की जानकारी एकत्रित करनी शुरू की थी। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के मुताबिक 2009-2019 के बीच अफगानिस्तान में एक लाख से अधिक लोगों ने संघर्ष के दौरान अपनी जान गंवाई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में 62 फीसदी लोग गैर सरकारी बलों की कार्रवाई में घायल हुए थे। इसके लिए तालिबान और आईएस को जिम्मेदार माना गया है।
दशकों से चली जंग की वजह से अफगानिस्तान में फैली राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के बीच यूएनएएमए के प्रमुख तादामिची यामामोतो ने कहा है इस वक्त का इस्तेमाल दोनों पक्षों को अपने विवाद सुलझाने और देश में शांति कायम करने के लिए करना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा है कि अफगानिस्तान लंबे समय से इस दंश को झेल रहा है। अब यहां के लोगों को शांति की दरकार है। ऐसे में वह यहां का नागरिक दोनों पक्षों की तरफ बड़ी उम्मीद से देख रहा है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि बीते 18 माह से तालिबान और अमेरिका के बीच शांति को लेकर वार्ता चल रही थी।
वहीं इन दोनों के बीच समझौते से पाकिस्तान और भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये भी एक बड़ा सवाल है। दरअसल, भारत शुरू से ही तालिबान से होने वाले समझौते को लेकर संशय में है। वहीं यदि अमेरिका की बात करें तो उसको वहां से अपनी फौज निकालनी है। ये एक ऐसा बड़ा वादा है जो राष्ट्रपति ट्रंप ने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में किया था और इसको अब तक वो पूरा नहीं कर पाए हैं। वहीं पाकिस्तान की बात करें तो तालिबान से पाकिस्तान का बेहद सीधा और करीबी संबंध है। तालिबान पाकिस्तान की जमीन और धन का इस्तेमाल भी करता रहा है। पाकिस्तान चाहता है कि ये समझौता हो। इससे पहले भी जब अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार थी तो पाकिस्तान ने ही उसको मान्यता दी थी।