बिधनू सीएचसी के डॉक्टरों की टीम ने आर्थिक कमजोर मजदूर के बेटे को दी जीवन की दिशा…
बिधनू में रहने वाले एक मजदूर का मासूम बेटा अब अपने हाथ से सुनहरा भविष्य लिखने को तैयार है। जिस हाथ से वह कुछ भी उठाने में लाचार था, उससे अब पेंसिल उठाकर अपना भविष्य संवार सकेगा। उसे यह तोहफा आरबीएसके (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम) की टीम व सीएचसी के डाक्टरों ने दिया है। इकलौते बेटे को ठीक देखकर माता पिता की भी खुशी का ठिकाना नहीं है।
जन्मजात था सिस्ट रोग से पीडि़त
बिधनू के मोहनपुर गांव निवासी गोविंद मजदूरी करते हैं और घर चलाते है। उनका सात वर्षीय इकलौता बेटा कंचन जन्मजात सिस्ट रोग से पीडि़त था, जिसकी वजह से वह दाहिने हाथ से कोई काम नही कर पाता था। उसके हाथों की अंगुलियां आपस में चिपकी थी और ज्वाइंट से मुड़ नहीं पाती थीं। जन्मजात बीमारी होने की वजह से माता पिता भी परेशान रहते थे। सात साल का हो जाने के बाद भी कंचन लिख नहीं पाता था। आॢथक स्थिति ठीक न होने से माता-पिता उसका इलाज नहीं करा पा रहे थे।
आरबीएसके की टीम बनी भगवान
कहते हैं डॉक्टर भी भगवान का रूप होते हैं, कंचन के लिए भी 11 फरवरी को भैरमपुर के प्राथमिक विद्यालय में आई बिधनू चिकित्साधीक्षक डॉ. एसपी यादव की अगुवाई में आरबीएसके की टीम भगवान की तरह साबित हुई। गोविंद भी पत्नी सीता संग बेटे कंचन को लेकर पहुंचा। डॉ. गौरव त्रिपाठी, डॉ. शशिकांत मिश्र, डॉ. अमित श्रीवास्तव, डॉ. अभिषेक गुप्ता, डॉ. सना इकबाल व डॉ. पूनम ने कंचन के ऑपरेशन की बात कही। गोविंद ने कहा, उसके पास पैसा नहीं है तो डाक्टरों ने मुफ्त ऑपरेशन के लिए बेटे को सीएचसी में भर्ती करने के लिए कहा। 10 मार्च को गोविंद ने बेटे को सीएचसी में भर्ती कराया। मंगलवार को सर्जन डॉ. मिनी अवस्थी के नेतृत्व में टीम ने सफल ऑपरेशन किया। गोविंद और सीता ने डॉक्टरों को धन्यवाद देते हुए कहा अब उनका बेटा भी लिख पढ़कर अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा।
क्या होता है सिस्ट
सर्जन डॉ. मिनी अवस्थी ने बताती हैं कि सिस्ट एक तरह रोग है, जो किसी को भी तीन तरह से हो सकता है। यह वायु यानी गैस, द्रव्य यानी पस तथा ठोस यानी गांठ के रूप में होता है। इसकी वजह से संबंधित अंग काम नहीं करता है। सिस्ट की वजह से ही कंचन के हाथ की अंगुलियां नहीं मुड़ती थीं। हाथ में पस के गुब्बारे बन गए थे और जोड़ों में पस की वजह से अंगुलियां नहीं मुड़ती थी। जन्म से होने वाले कुछ तरह के सिस्ट रोगी में समय के साथ खत्म हो जाते है लेकिन कुछ आजीवन बने रहते हैं।