सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प के बाद हुई बैठक में देश की तैयार रणनीति, अपनी तरफ से सैन्य झड़पों को बढ़ाने की नहीं…
सोमवार शाम में पूर्वी लद्दाख स्थित गलवन क्षेत्र में भारतीय व चीनी सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प ने दोनो देशों की राजधानी में रणनीतिक व कूटनीति तापमान को बढ़ा दिया है। स्थानीय सैन्य कमांडरों ने सोमवार देर रात को नई दिल्ली रक्षा मंत्रालय को हालात से अवगत कर दिया था। मंगलवार को भी दिन भर रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के साथ पीएमओ का विमर्श चला रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ व तीनों सेनाओं के प्रमुखों, विदेश मंत्रालय एस जयशंकर के साथ दो चरणों में हुई बैठक हुई और फिर उसके बाद रक्षा मंत्री व विदेश मंत्री की तरफ से पीएम नरेंद्र मोदी को पूरी स्थिति पर ब्रीफिंग दी गई।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद भारत की रणनीति यही है कि वह अपनी तरफ से चीन के साथ सैन्य झड़पों को बढ़ाने की कोशिश नहीं करेगा लेकिन चीनी सैन्यकर्मियों की तरफ से किसी बी आक्रामक रवैये को बर्दास्त भी नहीं किया जाएगा।
चीन के सैनिकों ने एकतरफा तरीके से हालात को बदलने की कोशिश की
भारतीय विदेश मंत्रालय ने दिन भर चली बैठकों के बाद जो आधिकारिक बयान दिया है वह भी इस रणनीति की तरफ इशारा करता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने सोमवार की घटनाक्रम की पूरी जिम्मेदारी चीन पर डाली है। उन्होंने कहा है कि 6 जून, 2020 को दोनो पक्षों के बीच हुई बातचीत में यह सहमति बनी थी कि सीमा पर शांति बनाये रखने व यथास्थिति बहाल रखा जाएगा लेकिन चीन के सैनिकों ने एकतरफा तरीके से सोमवार को हालात को बदलने की कोशिश की। अगर चीनी पक्ष ने अधिकारियों के बीच बनी सहमति को जमीन पर लागू किया होता तो दोनों तरफ जो हानि हुई है उसे टाला जा सकता था।
भारत हमेशा से इस बात को लेकर स्पष्ट है कि उसकी सेना की गतिविधियां अपनी सीमा के भीतर ही है और उम्मीद करता है कि चीन की सेना भी ऐसा करे। श्रीवास्ताव ने आगे कहा है कि, भारत बातचीत के जरिए सीमा पर शांति व स्थायित्व बनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन हम भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाये रखने के लिए भी बहुत ही प्रतिबद्ध हैं।
चीन विदेश मंत्रालय ने उल्टा भारत पर लगाया आरोप
चीन के विदेश मंत्रालय और चीन क वेस्टर्न वार जोन के प्रवक्ता की तरफ से अलग-अलग बयान जारी किया गया है। चीनी विदेश मंत्रालय ने उल्टा यह आरोप लगाया है कि 15 जून को भारतीय सेना ने आश्चर्यजनक तौर पर पूर्व में बनी सहमति का उल्लंघन करते हुए दो बार सीमा को पार करने की कोशिश की और चीन के सैनिकों पर हमला किया। इसकी वजह से दोनों तरफ के बीच हुए शारीरिक संघर्ष हुआ है। चीन ने इस बात का विरोध दर्ज करा दिया है कि भारतीय सेना को सीमा पार नहीं करनी चाहिए व उकसाना नहीं चाहिए।
अंत में यह कहा गया है कि भारत व चीन आपसी मुद्दे को वार्ता से शांत करने को तैयार हैं व आगे सीमा पर शांति व स्थायित्व बनाये रखने के लिए कदम उठाएंगे। उधर चीनी सेना के वेस्टर्न वार जोन के प्रवक्ता सीनियर कर्नल झांग शुईली ने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया है लेकिन यह दावा किया है कि गलवन क्षेत्र हमेशा से चीन का हिस्सा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि वर्ष 1962 से यह क्षेत्र पूरी तरह से भारत के हिस्से में रहा है और भारतीय सेना वहां पर बेरोकटोक पेट्रोलिंग करती रही है।
कई स्तरों पर हुई बैठक ने भावी रणनीति का आधार बना
सूत्रों के मुताबिक नई दिल्ली में कई स्तरों पर हुई बैठक ने भावी रणनीति का आधार बना दिया है। रक्षा मंत्री की तीनों सेना के प्रमुखों साथ हुई बैठक जहां रक्षा तैयारियों को पक्का किया गया है। दो चरणों में हुई बातचीत में सिर्फ लद्दाख ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वी व पश्चिमी सेक्टर पर सैन्य तैयारियों की 360 डिग्री समीक्षा की गई है। इसके अलावा विदेश मंत्री व रक्षा मंत्री के बीच हुई बैठक ने भावी कूटनीतिक तैयारियों को धार देने का काम किया है। दिन भर की इन बैठकों के बारे में बाद में पीएम नरेंद्र मोदी को जानकारी दी गई है। भारतीय पक्ष मानता है कि जान-माल की हानि के बावजूद चीन की तरफ से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सैन्य ताकत दिखाने के चीन के रवैये को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।