श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने बताये थे योग के 18 प्रकार, जानिए योग के 5 प्रकारो के बारे में
हर साल आने वाला योग दिवस आने वाले 21 जून को है. आपको बता दें कि योग की उत्पत्ति प्राचीन काल में ही हो गई थी. जी दरअसल चिरकाल से इस क्रिया को किया जा रहा हैं. आप नहीं जानते होंगे देवों के देव महादेव भी कैलाश पर योग मुद्रा में विराजमान हैं कहते हैं कि सबसे बड़े तपस्वी भगवान शिव हैं जो हर समय ध्यान योग करते रहते हैं. जी हाँ, वहीं द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता उपदेश दिया और इस उपदेश में उन्होंने योग के 18 प्रकार बताए हैं. अब आज हम आपको उनमे से 5 बताने जा रहे हैं. आइए बताते हैं.
विषाद योग- कालांतर में जब अर्जुन के मन में भी भय और निराशा पैदा हुई थी तो उस वक्त भगवान कृष्ण ने उन्हें गीता उपदेश देकर उनका मार्ग प्रशस्त किया.
सांख्य योग – पुरुष प्रकृति की विवेचना अथवा पुरुष तत्व का विश्लेषण करना हैं. जब मनुष्य किसी अवसाद से गुजरता हैं तो उसे सांख्य योग अर्था पुरुष प्रकृति का विश्लेषण करने के लिए कहा जाता है.
कर्म योग- भगवान कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा कि ‘जीवन में सबसे बड़ा योग कर्म योग हैं इस बंधन से कोई मुक्त नहीं हो सकता हैं अपितु भगवान भी कर्म बंधन के पाश में बंधे हैं सूर्य और चंद्रमा अपने कर्म मार्ग पर निरंतर प्रशस्त हैं तुम्हें भी कर्मशील बनना चाहिए.’
ज्ञान योग – भगवान कृष्ण कहते हैं कि ज्ञान से बढ़कर इस दुनिया में कोई चीज नहीं हैं इससे न केवल अमृत की प्राप्ति होती हैं बल्कि मनुष्य कर्म बंधनों में रहकर भी भौतिक संसर्ग से विमुक्त रहता हैं.
कर्म वैराग्य योग- बहुत कम लोग जानते हैं कि यह योग बताता हैं कि मनुष्य को कर्म के फलों की चिंता नहीं करनी चाहिए बल्कि कर्मशील रहना चाहिए. क्योंकि ईश्वर बुरे कर्मों का बुरा फल और अच्छे कर्मों का शुभ फल मनुष्य को देता है.