शहरों को छोड़ गांवों में पलायन कर चुके मजदूरों के लिए संजीवनी बनी मनरेगा

कोरोना वायरस से उपजे संकट में शहरों को छोड़ अपने गांवों में पलायन कर चुके मजदूरों के लिए मनरेगा संजीवनी बनकर सामने आई है। गांव पहुंचे ग्रामीण मजदूर रोजी-रोटी का जुगाड़ अब मनरेगा में ही ढूंढ रहे हैं। नतीजतन हरियाणा में मनरेगा मजदूरी की डिमांड दो गुना बढ़ गई है। अकेले जून में साढ़े तीन लाख मजदूरों ने काम मांगा है।

समूचा देश कोरोना वायरस की चपेट में है और शहरों में आर्थिक गतिविधियां ठप हो गई हैं। आजीविका कमाने गांवों से नगरों व महानगरों में आने वाले लाखों ग्रामीण मजदूर वापस अपने गांवों में विस्थापित हो गए हैं व गांवों में ही रोजगार के नए विकल्प तलाश रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार जून में एक्टिव मनरेगा मजदूरों की संख्या 11 फीसद बढ़ गई है और मजदूरी की डिमांड में 2 गुना से अधिक इजाफा हुआ है।

पिछले साल जून महीने में कुल 140975 मनरेगा मजदूरों ने काम मांगा था। जबकि इस वर्ष जून का पूरी महीने बीता भी नहीं है और 3.43 लाख मनरेगा मजदूर काम की मांग कर चुके हैं। भाजपा सरकार भी मनरेगा के महत्व को समझ रही है और लगातार बजट में इजाफा कर रही है।

सबसे अधिक हिसार में मनरेगा की डिमांड

मनरेगा में सबसे अधिक काम की डिमांड हिसार (44025 मजदूर) जिले में आई है। इसके बाद फतेहाबाद(39450मजदूर) व सिरसा(36003 मजदूर) का नंबर है। पलवल, फरीदाबाद व पंचकूला में मनरेगा काम की जून महीने में सबसे कम डिमांड है।

यूं बढ़ी 5 महीने में मनरेगा मजदूरी डिमांड

महीना   मजदूरी मांगी

जनवरी  142084

फरवरी  148835

मार्च      117300

अप्रैल     56811

मई        288505

जून        304368

2 महीने के अंदर यूं बदले हालात

(2020 वर्ष)      अप्रैल           जून             बढ़ोतरी

कुल वर्कर –     17.58 लाख   18.25 लाख   3.5 फीसद

एक्टिव वर्कर – 6.09 लाख     6.78 लाख     11 फीसद

मनरेगा 100 दिनों का काम देने में नाकाम

वर्ष 2006 में कांग्रेस शासन काल के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए मनरेगा की शुरुआत की गई थी। योजना के तहत साल में 100 दिन रोजगार देने का प्रावधान है, लेकिन पूरे 100 दिनों का रोजगार महज कुछ फीसद मजदूरों को ही मिल पाता है। इस साल जून तक औसतन केवल 14 दिन का रोजगार मजदूरों को मिल पाया है व पूरे प्रदेश में महज 35 मजदूरों को 100 दिन का रोजगार नसीब हुआ है। ऐसे में अकेले मनरेगा के बलबूते ग्रामीण बेरोजगारी से निपटना आसान नहीं है तथा सरकार अन्य विकल्पों पर भी गौर करना होगा।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगी मजबूती

कोरोना संकट में लाखों श्रमिक अपने गांवों की ओर कूच कर गए हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जानकारी रखने वाले लोगों का मानना है कि कोरोना वायरस के दौर में मनरेगा मजदूरों को अगर पूरी मजदूरी मिलती है तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इससे मजबूती मिलेगी जो देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में काफी हद तक कारगर होगी। लेकिन लाखों मजदूरों को सौ दिन का रोजगार देना सरकार के आसान काम नहीं होगा।

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