विकास दुबे के मददगार अफसरों तथा उस पर मेहरबान लोगों का कच्चा चिट्ठा खोलेगी SIT

दुर्दांत हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद अब इस मामले की जांच कर रही एसआइटी की निगाहें उसकी मदद करने वाले सभी अफसरों के साथ राजनीतिक आकाओं पर भी है। बेहद सख्त माने जाने वाले अपर मुख्य सचिव संजय आर भूसरेड्डी के नेतृत्व में गठित स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम(एसआइटी) ने तैनाती होने के अगले ही दिन कानपुर के चौबेपुर के बिकरू गांव जाकर छानबीन शुरू कर दी है। एसआइटी को अपनी जांच रिपोर्ट 31 जुलाई तक देनी है। इसके तहत पहले ही दिन 50-55 लोगों से पूछताछ की गई है।

कानपुर के चौबेपुर के बिकरू गांव में दो-तीन जुलाई की रात में सीओ सहित आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में मुख्य आरोपित विकास दुबे की मदद करने वाले चौबेपुर के तत्कालीन थाना प्रभारी विनय तिवारी के साथ क्षेत्र के दारोगा केके शर्मा तो जेल में हैं। अब बारी विकास दुबे के अन्य मददगार अधिकारियों के साथ उसको राजनीतिक शरण देने वालों की है। अपर मुख्य सचिव संजय आर. भूसरेड्डी की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय एसआईटी ने पहले ही दिन ही अपने तेवरों से जाहिर कर दिया कि काले कारोबार को चलाने वाले गैंगस्टर विकास दुबे पर मेहरबान रहे अफसरों पर शामत आने वाली है। अपर मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन किया गया है। इसमें अपर पुलिस महानिदेशक हरिराम शर्मा और पुलिस उप महानिरीक्षक जे रवींद्र गौड़ एसआईटी के सदस्य हैं। इनसे शासन ने 31 जुलाई तक जांच रिपोर्ट तलब की है।

एसआइटी को विकास दुबे और उसके सहयोगियों के पूरे साम्राज्य की कुंडली खंगालने में खासी मशक्कत करनी होगी। उसके मददगारों की सूची भी इतनी लंबी हो सकती है कि उन तक पहुंचने में समय लग सकता है। इसके बाद भी तय समय में रिपोर्ट देने की मंशा को एसआईटी ने गठन होने के अगले ही दिन घटनास्थल पर पहुंचकर जाहिर कर दी है। विकास दुबे और उसके साथियों की काली कमाई से जुटाई गई संपत्तियों का ब्योरा जुटाने के लिए ईडी की एक टीम फिर कानपुर जाने की तैयारी में है। अपनी जांच शुरू करने से पहले पुलिस से अबतक सामने आए सभी तथ्य जुटाने में लगी है ईडी। आयकर विभाग से भी संपर्क साधा गया है।

गांव में खुलने लगी आतंक की कहानी

एसआइटी के सामने दिल दहलाने वाले बिकरू कांड और विकास दुबे से आतंक की कहानी खुलकर सामने आने लगी है। विकास के खौफ के साए में जी रहे लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिया तो सामने आकर उन्होंने दर्द बयां किया। कभी न बोलने वाले, रास्ता बदलकर गुजरने वाले लोगों ने अपनी पीड़ रखी। किसी ने अपनी जमीन पर कब्जे की शिकायत की तो किसी ने थाने में पीटने की जानकारी दी। इस जांच दल ने ग्रामीणों से भी विकास की करतूतों पर चर्चा की। विकास और उसके गुर्गे नहीं थे तो गांव के लोगों ने खुलकर बात रखी। गफूर ने बताया कि 1993-94 में उन्होंने राशन नहीं मिलने की शिकायत की थी। इसके बाद विकास ने शिवली थाने बुलवाया।

पुलिस की मौजूदगी में उसे थाने के भीतर पीटा गया। सुशील पांडेय ने बताया कि पहले उनके पिता अटल बिहारी पांडेय ग्राम प्रधान हुआ करते थे। विकास ने बूथ कैप्चरिंग कराकर प्रधानी पर कब्जा किया तो अभी तक उसके चंगुल से मुक्त नहीं हो पाई। उसके भय से लोग वोट डालने से कतराते थे। गोकुल ने बताया कि विकास अपनी सरकार चलाता था। गांव में यदि किसी का विवाद होता था तो गुर्गों को भेजकर घर पर बुलवा लेता था। घर के अपने लोगों से पिटवाता था। बकरुद्दीन ने एसआईटी को बताया कि उसे पट्टे पर जमीन मिली थी। विकास ने अपने खास को कब्जा दिला दिया। यह लोग आज तक कई तहसील व थाने के चक्कर आज तक लगा रहे हैं लेकिन उसे कब्जा नहीं मिल पाया। राजू ने बताया कि उसने शिवराजपुर की एक एजेंसी से ट्रैक्टर खरीदा था। किस्त नहीं जमा कर पाया तो ट्रैक्टर सरेंडर कर दिया। बदले में 1.30 लाख रुपए मिलने थे, लेकिन विकास ने किसी दूसरे को ट्रैक्टर दिलवा दिया। ट्रैक्टर की किस्त आज भी वह भर रहा है।

एसटीएफ का शिकंजा विकास दुबे की जमानत लेने वालों पर

एसटीएफ ने हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के दो मददगारों से पूछताछ की। इनमें से एक ने विकास की एक मुकदमे में जमानत भी ली थी। दोनों ने एसटीएफ को बताया कि बिकरू कांड के बाद विकास दुबे से उनका सम्पर्क नहीं हुआ था। इन दोनों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया। इन दोनों को लखनऊ के कृष्णानगर और बंथरा से बुलाया गया था। यह लोग विकास के सम्पर्क में पिछले दस वर्ष से थे। इन दोनों ने यह भी बताया कि लखनऊ और कानपुर की जमीन के लिये स्टाम्प पेपर भी उनके माध्यम से ही खरीदे गए थे। विकास को जब उनसे काम होता था तो वह कानपुर से उन लोगों के लिये गाड़ी भिजवाता था। इसके अलावा कोई भी काम होता था तो उसके लिये मेहनताना के तौर पर कुछ रकम जरूर देता था। इतना ही नहीं विकास के लिये इन लोगों ने कई लोगों से सम्पर्क किया था जो विकास दुबे के लिये जमानत लेते थे।

पिछली कार्रवाई की भी पड़ताल होगी

एसआईटी विकास दुबे के खिलाफ पहले से हुई पुलिस कार्रवाइयों और उससे की गई पूछताछ में सामने आए तथ्यों की भी पड़ताल कर सकती है। एसटीएफ से भी ऐसे कई तथ्य उसे हासिल हो सकते हैं। बिकरू कांड में शहीद हुए सीओ बिल्हौर देवेन्द्र मिश्रा की तत्कालीन थानाध्यक्ष चौबेपुर विनय तिवारी के खिलाफ तत्कालीन एसएसपी को लिखी गई चिट्ठी तो पहले से ही एसआईटी के पास है। चिट्ठी अपने-आप में थाने की कार्यशैली बयां करने के लिए पर्याप्त है। इसके अलावा कानपुर नगर और कानपुर देहात जिले की पुलिस तो पूरी तरह जांच के दायरे में होगी। दोनों जिलों में उसके विरुद्ध दर्ज मुकदमों की लिस्ट काफी लंबी है।

राजस्व विभाग की टीम की एसआइटी के रडार पर

विकास दुबे की अकूत संपत्ति के मामले में राजस्व विभाग की टीम भी एसआईटी के रडार पर है। कानपुर को साथ लखनऊ में जमीनों पर कब्जे और उसकी खरीद-फरोख्त में प्रशासनिक अमले के सहयोग से इनकार नहीं किया जा सकता।

थानेदार विनय तिवारी व दारोगा केके शर्मा पहले ही गिरफ्तार

विकास दुबे के काले कारोबार को दबाने के मामले के साथ ही उसको पुलिस की दबिश की जानकारी देने के मामले में पुलिस ने आठ जुलाई को ही चौबेपुर के तत्कालीन थानेदार विनय तिवारी व बीट इंचार्ज दारोगा केके शर्मा को 120बी के तहत गिरफ्तार किया था। इनको तो छोटी मछली माना जा रहा है। विनय तिवारी पर विकास दुबे के बचाव का आरोप है। इसके साथ केके शर्मा को विकास ने फोन पर पुलिस टीम गांव में ना भेजने की हिदायत दी थी। केके शर्मा को डर है कि पुलिस कहीं उसका भी एनकाउंटर न कर दे।

ईडी और कानपुर आयकर विभाग भी जांच में जुटा

ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) की टीम ने भी रविवार को बिकरु गांव का दौरा किया। ईडी ने गांव वालों से बात की। पुलिस वालों से पूछताछ की है। ईडी ने विकास दुबे की संपत्तियों का ब्योरा जुटा है।

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