हरियाणा में आर्थिक समस्या से जूझ रहे लोगों ने लॉकडाउन और कर्फ्यू से की तौबा

अनलॉक दो में लॉकडाउन या कफ्र्यू जैसे शब्द सुनकर लोग सहम जाते हैं। 24 मार्च से 31 मई तक लगातार लॉकडाउन और कर्फ्यू के चलते ठप हुई आर्थिक गतिविधियों से परेशान लोग अब लॉकडाउन या कर्फ्यू से तौबा करते हुए कह रहे हैं कि जिंदगी कोरोना के साथ पटरी पर लौट रही है। इसे ऐसे ही चलने दिया जाए नहीं तो और मुश्किल खड़ी हो जाएगी।

फरीदाबाद, गुरुग्राम, सोनीपत,झज्जर के जनप्रतिनिधि चाहते हैं सख्ती हो मगर लॉकडाउन नहीं

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हालांकि दिल्ली एनसीआर में कोरोना की स्थिति का जायजा लेते हुए 18 जून की पहली बैठक में ही तय कर दिया था कि अब दिल्ली या इससे लगते बड़े शहरों में कोरोना को लेकर एक जैसे निर्णय होने चाहिए। इसके अलावा उन्होंने यह भी साफ कर दिया था कि दिल्ली से लगते हरियाणा या उत्तर प्रदेश बॉर्डर सील करने संबंधी कोई निर्णय सरकार अपने स्तर पर नहीं ले।

बढ़ते कोरोना मामलों को लेकर गृहमंत्री अनिल विज के विचार से सहमत नहीं जनप्रतिनिधि

दिल्ली से लगते इन जिलों में बढ़ते कोरोना मरीजों की संख्या के मद्देनजर हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज कह रहे हैं कि इन जिलों में कफ्र्यू या लॉकडाउन से ही स्थिति काबू आएगी। इन जिलों के जनप्रतिनिधि भी चाहते हैं कि अब यहां लॉकडाउन की जरूरत नहीं है।

फिलहाल कर्फ्यू लगाने के पक्ष में नहीं दुष्यंत चौटाला

उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का कहना है कि मौजूदा स्थिति में पूरे देश में कोरोना जिस तरीके फैला है, हरियाणा में फिर भी काफी नियंत्रित है। अधिकतम कोरोना मरीज एनसीआर में ही हैं, मगर इसके बावजूद भी वहां स्थिति बिगड़ी नहीं है। प्रदेश सरकार के पास स्वास्थ्य सुविधाओं से लेकर अन्य संसाधन भी पूरे हैं इसलिए टेस्टिंग बढ़ाई गई है। इससे ज्यादा मामले दिख रहे हैं।

उनका कहना है किे अगर स्थिति बदतर भी होती है तो परिस्थितियों के अनुसार फैसला लेंगे। फिलहाल कोविड-19 को जिंदगी का हिस्सा बनाकर जीना पड़ेगा। आज के दिन दिल्ली भी कफ्र्यू की तरफ नहीं जा रहा है तो हरियाणा के लिए फिलहाल इस बाबत सोचना भी ठीक नहीं है।

भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में सख्ती हो मगर कर्फ्यू नहीं: सिंगला

गुरुग्राम से भाजपा विधायक सुधीर सिंगला का कहना है कि आज से 20 दिन पहले जब गुरुग्राम की स्थिति ज्यादा खराब थी तब उन्होंने ही मुख्यमंत्री से कर्फ्यू की मांग की थी मगर अब धीरे-धीरे स्थिति काबू में आ गई है। ऐसे में कर्फ्यू के बारे में सोचना भी ठीक नहीं है, क्योंकि अब आर्थिक गतिविधियां पटरी पर आ गई हैं। जरा कर्फ्यू या लॉकडाउन के बारे में सोचते ही डर लगता है। पहले दौर के कर्फ्यू व लॉकडाउन से जहां जान बची वहां जहान का काफी नुकसान हुआ। अब तो मजदूर भी अपने कारखाने के मालिक के बुलावे पर आ रहे हैं, इसलिए कोरोना के साथ ही जिंदगी की रफ्तार तेज करनी होगी। हां, कुछ क्षेत्रों में जहां ज्यादा भीड़भाड़ होती है वहां सख्ती करने की जरूरत है।

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