घर के बाहर लिखें इस वाक्य से नहीं आते सांप, जानिए कथा
आप सभी जानते ही होंगे हमारे हिन्दू समाज में आज भी कई ऐसी पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं जो अजीब हैं. वहीं कई ऐसी मान्यता हैं जिनसे व्यक्ति अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है. वैसे तो सांप का नाम सुनते ही सभी का मन डर जाता है क्योंकि सांप को काल (मृत्यु) का प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है. वैसे अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं प्राचीन समय में प्रचलित एक परंपरा के बारे में. जी दरअसल आज भी कई लोग अपने घर की बाहरी दीवार पर ‘आस्तिक मुनि की दुहाई’ नामक वाक्य लिखते हैं. जी दरअसल इसके पीछे एक कहानी है जो हम आपको बताने जा रहे हैं. जी दरअसल कहा जाता है ‘आस्तिक मुनि की दुहाई’ नामक वाक्य घर की बाहरी दीवारों पर लिखने से उस घर में सांप घर में नहीं आता है. वैसे इस मान्यता के पीछे एक पौराणिक कथा है.
कथा – कलयुग के प्रारंभ में जब ऋषि पुत्र के श्राप के कारण राजा परीक्षित को तक्षक नाग ने डस लिया, तो इससे उनकी मृत्यु हो गई. जब यह बात राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को पता चली तो उन्होंने क्रुद्ध होकर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए इस संसार से समस्त नाग जाति का संहार करने के लिए ‘सर्पेष्टि यज्ञ’ का आयोजन किया. इस ‘सर्पेष्टि यज्ञ’ के प्रभाव के कारण संसार के कोने-कोने से नाग व सर्प स्वयं ही आकर यज्ञाग्नि में भस्म होने लगे.
इस प्रकार नाग जाति को समूल नष्ट होते देख नागों ने आस्तिक मुनि से जाकर अपने संरक्षण हेतु प्रार्थना की. उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर आस्तिक मुनि ने नागों को बचाने से पूर्व उनसे एक वचन लिया कि जिस स्थान पर नाग उनका नाम लिखा देखेंगे, उस स्थान में वे प्रवेश नहीं करेंगे और उस स्थान से 100 कोस दूर रहेंगे. नागों ने अपने संरक्षण हेतु आस्तिक मुनि को जब यह वचन दिया तब आस्तिक मुनि ने जन्मेजय को समझाया. आस्तिक मुनि के कहने पर जन्मेजय ने ‘सर्पेष्टि यज्ञ’ बंद कर दिया. इस प्रकार आस्तिक मुनि के हस्तक्षेप के कारण नाग जाति का आसन्न संहार रुक गया. इसी कथा के अनुसार यह मान्यता प्रचलित है कि आस्तिक मुनि को दिए वचन को निभाने के लिए आज भी सर्प उस स्थान में प्रवेश नहीं करते, जहां आस्तिक मुनि का नाम लिखा होता है.