जानिए पितरों तक कैसे पहुंचता है आपका दिया हुआ भोजन ?
श्राद्ध या पितृ पक्ष पितरों को समर्पित त्यौहार होता है। पितरों की तृप्ति से इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व होता है। श्राद्ध में लोग अपने पितरों को भोजन कराते हैं। मृत्यु के पश्चात मृत्युलोक में पितरों का निवास रहता है। यहां 1 से लेकर 100 वर्ष की आयु तक आत्माएं पुनर्जन्म के बीच की स्थिति में स्थित होती है।
भोजन के लिए नीचे कैसे आते है पितृ ?
कहा जाता है कि पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में है। चंद्रमा पर निवास करने वाले पितृ सूर्य की मदद से पृथ्वी पर उतरते हैं। सूर्य की सहस्त्र किरण ‘अमा’ है और इसी की मदद से सूरज द्वारा त्रैलोक्य को प्रकाशित किया जाता है। उसी किरण में श्राद्ध के दिनों में चंद्र देव का भ्रमण होता है और इस दौरान पितृ पृथ्वी पर आ जाते हैं।
पितरों तक कैसे पहुंचता है भोजन ?
– पितृ पृथ्वी पर तो आ जाते हैं, लेकिन उन्हें भोजन कैसे मिलता है। देवता और पितृ अन्न के सार तत्व को ग्रहण करते हैं। इसमें गंध, रस और ऊष्मा शामिल होती है।
– गंध, रस और ऊष्मा इन तीनों से ही देवता और पितृ तृप्त हो उठते हैं। पितरों और देवताओं दोनों के लिए अलग तरह की गंध और रस होता है।
– वैदिक मन्त्रों के उच्चारण के साथ पितरों तक रस और गंध पहुंच जाती है।
– आपने अक्सर देखा होगा या किया भी होगा। एक कंडे को जलाया जाता है और फिर घी-गुड़ की मदद से उसमें गंध का निर्माण होता है। इसी पर अन्न चढ़ाया जाता है। यहीं भोजन पितरों तक पहुंचता है। भोजन के बाद देवताओं को उंगलियों बल्कि पितरों को अंगूठे से जल दिया जाता है।